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ग़ज़ल: तुम्हें महलों में भी बस्ती पुरानी याद आयेगी

पुराने दोस्तों की मेज़बानी याद आयेगी
तुम्हें महलों में भी बस्ती पुरानी याद आयेगी

वो फुर्सत की दुपहरी और वो फरमाइशी नगमे
तुम्हें परदेस में आकाशवाणी याद आएगी

समंदर का सुकूं बेचैन कर देगा तुम्हें जिस दिन
नदी की शोख लहरों की रवानी याद आएगी

फकीरी सल्त्नत है हम फकीरों की तुम्हें इक दिन
हमारी सल्तनत की राजधानी याद आएगी

कभी जब आसमानों की हदों का ज़िक्र होगा तो
थके हारे परिंदों की कहानी याद आएगी

गले लग जाएगा आकर वो इक दिन देख लेना तुम
उसे खुद दी हुई अपनी निशानी याद आएगी

-राजीव भरोल


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