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मित्र मंडली - 36






मित्रों ,
"मित्र मंडली" का छत्तीसवाँ अंक का पोस्ट प्रस्तुत है। इस पोस्ट में मेरे ब्लॉग के फॉलोवर्स/अनुसरणकर्ताओं के हिंदी पोस्ट की लिंक के साथ उस पोस्ट के प्रति मेरी भावाभिव्यक्ति सलंग्न है। पोस्टों का चयन साप्ताहिक आधार पर किया गया है।  इसमें  दिनांक 18.09.2017  से 24.09.2017  तक के हिंदी पोस्टों का संकलन है।

पुराने मित्र-मंडली पोस्टों को मैंने मित्र-मंडली पेज पर सहेज दिया है और अब से प्रकाशित मित्र-मंडली का पोस्ट 7 दिन के बाद केवल मित्र-मंडली पेज पर ही दिखेगा, जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है  :-
HTTPS://RAKESHKIRACHANAY.BLOGSPOT.IN/P/BLOG-PAGE_25.HTML
मित्र-मंडली के प्रकाशन का उद्देश्य मेरे मित्रों की रचना को ज्यादा से ज्यादा पाठकों  तक पहुँचाना है। 

आप सभी पाठकगण से निवेदन है कि दिए गए लिंक के पोस्ट को पढ़ कर, टिप्पणी  के माध्यम से अपने विचार जरूर लिखें। विश्वास करें ! आपके द्वारा दिए गए विचार लेखकों के लिए अनमोल होगा।  

प्रार्थी 

राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

मित्र मंडली -36  

इस सप्ताह के नौ-रत्न रचनाकार 


सुनी गिलहरी --------- कविता ----- 




रेणु  बाला जी  

"बाल कविता - सुनी गिलहरी के माध्यम से निर्भीकता , मस्ती , स्वाभिमान  और बेफ्क्रि  के साथ  जीवन जीने की सीख देती सुन्दर  बाल कविता  ।


कास के फूल

श्वेता सिन्हा जी  

"  प्रकृति के अनमोल खजाने को देख हम मन्त्र-मुग्ध  होते रहते है जिसका नाम और उसकी उपस्थिति का महत्व हमें पता नहीं होता ऐसा ही एक फूल - "कास के फूल " के बारे में विस्तृत जानकारी एवं प्रकृति प्रेम को उजागर करती सुन्दर कविता।  श्वेता सिन्हा जी के शब्द - कास के फूल खिलने का मतलब बरसा ऋतु की विदाई और शरद का आगमन।मौसम अंगड़ाई लेने लगता है।हवा की गरमाहट नरम होने लगती है,मौसम सुहावना होने लगता है।।" 

कहानी है मेरी पड़ोसन की

सुधा सिंह जी  



"स्त्री के कोमल मन को  विस्तार देती सुन्दर कविता। सुन्दर  भावपूर्ण अभिव्यक्ति , इस कविता के स्त्री पात्रों की तरह हम सभी व्यवहार करें तो सभी घरों में शान्ति का निवास हो। 

आज जो जोगन गीत वो गाऊं.

विश्व मोहन जी


" श्रृंगार रस से सराबोर सुन्दर भावपूर्ण कविता। अधरों के सम्पुट क्या खोलूं , मूक कंठों से अब क्या बोलूं..........   कुछ भी लिखने से अच्छा है मैं तो इस कविता को बार-बार पढ़ कर आनंदित हो रहा हूँ, आप भी आनंद लें। 

मिथक कथा जो आज प्रासंगिक है....पाँच आश्चर्य....

दिग्विजय अग्रवाल जी 


" महाभारत में वर्णित यह कथा पाँच आश्चर्य के बारे में बताते हैं और आज इसे हम चरित्रार्थ होते देख रहें हैं। आँखें खोलती सुन्दर कथा। "  


आँखें

रवींद्र सिंह यादव जी 

" कौन कम्बख्त चाहता है अपनी मेहबूबा के आँखों में आँसू , बहुत ही रूमानी अंदाज में लिखी कविता, क़लम कहाँ लिख पाती,  पाकीज़गी-ए-अश्क़  के  उन ख़्यालों को, वाह क्या बात है, आप भी पढ़ें और आनंद लें।"  


खिलते हैं फूल पाँव के ठोकर से

राजीव कुमार झा  जी 



" दोहद परम्परा एवं अन्य लोक परम्परा के बारे में विस्तृत जानकारी देती सुन्दर आलेख। ऐसे मैंने भी महसूस किया है कि स्त्रियों को पेड़-पौधों से ज्यादा लगाव होता है और वे पेड़-पौधों को स्पर्श एवं आलिंगन कर ख़ुशी महसूस कराती हैं।  "

जहाँ तुम थे

जयंती प्रसाद शर्मा  जी

" किसी की उपेक्षा को दर किनार कर साधुजन अपना शुभकामनाएं, ‘सर्वेभवन्तु सुखिन' के लिए देते रहते है और इसी उद्देश्य के लिए अपना कर्म भी करते रहते हैं।  सुन्दर भावपूर्ण कविता। 

सैकत

पुरषोत्तम कुमार सिन्हा जी 

"असंख्य यादों के पल, मन को विचलित करते है परन्तु तन्हाइयों में भी, ये यादें जीने का मकसद भी दे जाते है।  सुन्दर भावपूर्ण कविता।"


आशा है कि मेरा प्रयास आपको अच्छा लगेगा ।  आपका सुझाव अपेक्षित है। अगला अंक 25  -09-2017  को प्रकाशित होगा। धन्यवाद ! अंत में ....


मेरी दो प्रस्तुति  : 

1.  जय अपराधी बाबा की



2. फोटोग्राफी : पक्षी 25 (Photography : Bird 25 )



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