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सुप्रीम कोर्ट ने कहा एक न्यायिक बौद्धिक बेईमानी है जमानत नहीं देना

सुप्रीम कोर्ट ने कहा एक न्यायिक बौद्धिक बेईमानी है जमानत नहीं देना लखनऊ के एक न्यायिक अधिकारी को जमानत दिए जा सकने वाले मामलों में उसके समक्ष आए याचिकाकर्ताओं को बेल नहीं देना महंगा पड़ गया. सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारी को कोई भी राहत नहीं देते हुए उसके इस कृत्य को बौद्धिक बेईमानी करार दिया, और इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के उसको ट्रेनिंग के लिए ज्यूडिशयल एकेडमी भेजे जाने के आदेश को भी बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, उस व्यक्ति को जमानत नहीं देना, जोकि जमानत दिए जाने की सभी योग्यताएं रखता हो यह बेईमानी है, यह बौद्धिक बेईमानी है. क्या है पूरा मामला? 2 मई 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के एक जज को फिर से ज्यूडिशयल अकादमी में ट्रेनिंग के लिए जाने का आदेश दिया था क्योंकि उन्होंने उस न्यायाधीश के कई आदेशों में यह पाया कि वह ट्रायल कोर्ट में नियमित रूप से आरोपियों की गिरफ्तारी का आदेश दे देते हैं और तय प्रक्रिया का पालन करने के बावजूद उनको जमानत नहीं देते हैं. सोमवार को न्यायिक अधिकारी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस पटवालिया ने सुप्रीम कोर्ट में न्यायिक अधिकारी का पक्ष रखा. पटवालिया ने पीठ से कहा, न्यायिक अधिकारी 30 जून को सेवानिवृत्त होने वाले हैं और वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए भी विचाराधीन हैं. वरिष्ठ वकील ने कहा कि न्यायिक अधिकारी के पास तीन दशकों से अधिक की सेवा करने का अनुभव है और वह 1990 में न्यायिक अधिकारी के रूप में नियुक्त किए गए थे. पीठ ने जवाब में कहा, अगर वह बीते 30 साल से न्यायिक अधिकारी हैं तो उनको सावधान रहना चाहिए था उनके लिए यह बेहद उपयोगी होगा अगर वह एक बार फिर से अपने कुछ दिन न्यायिक अकादमी में बिता कर आते हैं.


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