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भारत में धर्म और जाति का एजेंडा गरीबी और अमीरी के एजेंडे से बहुत ऊपर निकल चुका श्याम बिहारी वर्मा

साफ-साफ भारत में धर्म और जाति का एजेंडा गरीबी और अमीरी के एजेंडे से बहुत ऊपर निकल चुका है नतीजा यह हुआ कि अमीरी के विरुद्ध गरीबी के पक्ष में लड़ने वाले कम्युनिस्टों को काफी पीछे जाना पड़ा । एक तरफ साम्राज्यवादी आर्थिक नीति व धर्म के संबल के साथ भाजपा है, तो दूसरी तरफ पूंजीवादी नीति के साथ धर्म का भी झंडा उठाए कांग्रेस सहित क्षेत्रीय दल है । धर्म से दोनों पक्ष अपने राजनीतिक हथियारों को धार दे रहे हैं । भाजपा और आर एस एस दोनों वर्ण व्यवस्था और तद्जनित जाति व्यवस्था बनाए रखना चाहते हैं । उन्होंने सामाजिक समानता। सादृश्य बराबरी ।यानी जातियां नहीं होंगी सभी बराबरी के हिंदू होंगे, के स्थान पर सामाजिक समरसता।समरस होने का भाव सामंजस्य ।यानी वर्ण व्यवस्था एवं ऊंची नीची जातियां बनी रहेंगी उनके आपस में समरस होने का भाव और सामंजस्य बनाया जाएगा। भाजपा r.s.s. देश के उत्पादन के साधनों को बड़े व्यवसायिक क्षेत्रों को निजी पूंजी पतियों के हाथों में देना चाहते हैं छोटे उद्योगों और छोटी कंपनियों को भी बड़े पूंजीपतियों के हाथों में पहुंचाना चाहते हैं कृषि क्षेत्र को घुमा फिरा कर दो या तीन प्रतिशत लोगों के स्वामित्व तक सीमित करना चाहते हैं , इस तरह से करोड़ों किसानों को कृषि क्षेत्र से निकालकर अन्य व्यापार केंद्रों में मजदूरी कराना चाहते हैं , इस तरह के कानून अमेरिका में बहुत पहले ही लागू हो चुके वहां पर किसानों की संख्या 2% रह गई सब जमीने इन्हीं के पास आ गई । सरकारी नौकरियों में बड़ी संख्या में कमी की जा चुकी है अधिकांश कर्मचारी आउट सोर्सिंग की मार्फत कंपनियों से लिए जा रहे हैं आठ 10,000 वेतन दिया जाता है सेना तक में यही व्यवस्था करना शुरू कर दिया गया है । धर्म के नाम पर मंदिरों और तीर्थ स्थलों पर भारी बजट खर्च करके वातावरण को धर्म मय बनाना चाहते हैं जिससे आदमी का ध्यान मूलभूत आवश्यकताओं की ओर से हटा रहे जो सरकार द्वारा पूरी नहीं की जा रही हैं । इस तरह की नीतियों को लागू करने से आम आदमी बर्बाद होने की कगार पर पहुंचना शुरू हो गया है वह प्राइवेट नियंत्रण में सस्ता मजदूर बन रहा है । अमेरिका की तरह है यहां भी सब कुछ चंद बड़े पूंजीपतियों के हाथों में पहुंचाया जा रहा है । अमेरिका में लगभग सभी सांसद या तो किसी कंपनी के पार्टनर होते हैं या महत्वपूर्ण पद पर नौकरी कर रहे होते हैं, संसद में रहते हुए अपनी कंपनी का फायदा पहुंचाते हैं सदस्यता का कार्यकाल पूरा होने के बाद फिर अपनी कंपनी में काम पर वापस आ जाते हैं यह सब भारत में बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। बिपक्ष विपक्ष को भी एक , दो को छोड़कर लगभग सभी पूंजीवाद के समर्थक हैं परंतु यह छोटी कंपनियों और छोटे पूंजी पतियों को बने रहने देना चाहते हैं। ऐसे लगभग सभी दलों की एक समान नीति है कि अपनी जाति के वोट के साथ मुस्लिम वोट जोड़कर सत्ता प्राप्त की जाए अनेक प्रदेशों में ऐसे दल सत्ता प्राप्त कर चुके हैं कांग्रेस जाति नहीं अपनी पार्टी के वोट के साथ मुस्लिम वोट जोड़ने का प्रयास करती है इसके लिए मुस्लिम धर्मगुरुओं सहित मुस्लिम माफियाओं तक से मदद लेते है। दरअसल लगभग सभी मुस्लिम माफिया इन्हीं पार्टियों के सहयोग से बने हैं। यह केवल मुसलमानों के लिए तमाम सहायता और रियायतों की घोषणा करते हैं परंतु गरीब मुसलमानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कुछ नहीं करते। इस मुस्लिम पॉलिटिक्स को ज्यादा नहीं थोड़ा लौटकर देखने की जरूरत है जिन्ना पाकिस्तान बनाए जाने के लिए सरकार पर दबाव डालना चाहते थे इसके लिए उन्होंने डायरेक्ट एक्शन के लिए 16 अगस्त 1946 का दिन चुना । इस दिन मुसलमानों ने गिरोह में निकल कर हिंदुओं पर जबरदस्त हमले किए बंगाल बिहार पश्चिम उत्तर तथा अन्य तमाम जगहों पर डायरेक्ट एक्शन किया गया। इस कार्यवाही में हिंदुओं के बहाए गए रक्त ने पाकिस्तान बनाए जाने पर मुहर लगा दी थी। परंतु यहां के मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए । मौलाना आजाद सहित तमाम मुस्लिम नेताओं ने उन्हे यहीं रुकने को कहा अब यह कहा जा रहा है कि डायरेक्ट एक्शन के क्षेत्रों में मुसलमानों ने रहने के लिए भारत को चुना ।तमाम धार्मिक और राजनीतिक मुस्लिम नेता यह चाहते थे कि पाकिस्तान तो बन ही चुका है यहां के मुसलमान अब यही रुके, जिससे आगे एक और बंटवारे की जमीन तैयार होती रहे ,4 हदीसों में ।गजवा ए हिंद ।हिन्द से युद्ध ,का विवरण दर्ज है ,और भारत के हिस्सों अफगानिस्तान ,पाकिस्तान और बांग्लादेश का इस्लामीकरण इसी गजवा ए हिंद का एक रूप है पाकिस्तान ने अपने यहां रह गये हिंदुओं और सिखों की समस्या तो हल कर ली । अगले बंटवारे की जब परिस्थितियां बनेंगी तो वह भी गजवा ए हिंद का ही एक रूप होगा । हदीसों में गजवा ए रूस या गजवा ए चीन के निर्देश नहीं है, लेकिन धर्मोन्माद आतंकवाद को जिस तरीके से रूस ने चेचन्या में और चीन ने शिंजियांग और पूरे चीन में हल किया है उससे अच्छा तरीका अभी तक तो खोजा नहीं जा सका हैं। उपरोक्त सब किन्हीं बयानों पर नहीं दस्तावेजी सबूतों के आधार पर लिखा गया है मगर यह तय है कि आगे कोई रास्ता निकलना निश्चित है । क्योंकि समाज के विकास की गति को कोई रोक नहीं सकता ।


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