तुम सा ना कोई सच्चा हमसफर ऐ मेरे प्यारे बिस्तर,
सुकून मिलता है जब मिलते हम तुम गले लगकर l
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जब रहता दिल दिमाग़ चलयमान और विचलित,
तब नहीं सूझता कुछ भी किंचित् l
निंदिया रानी भी रहती आँखों से कोसों दूर,
और ख्यालों में ही चलते, जाने निकल जाते कितनी दूर l
नींद ना होती पूरी जब भी, दिल भी रहता हरदम बेचैन,
आँखों में छाती लालिमा नहीं रहता शरीर को भी जुनून,
जब सोते आकर तुम पर, तब आता तुम को भी सुकून l
करना चाहते तब तुम बातें, पर निंदिया ले जाती मुझको,
तुमसे सपनों में बहुत दूर........
तुम सा ना कोई सच्चा हमसफर ऐ मेरे प्यारे बिस्तर.....