सिक्किम में प्रवेश करते ही हमारे दोनों तरफ ही पांच - छह मंजिलो के मकानों की कतारे नजर आने लगी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम हिल स्टेशन पर हैं। सुन्दर साफ - सुथरा क़स्बा था। पहाड़ो के घुमावदार रास्तो से होते हुए लगभग 4.30 बजे हम गंगटोक पहुँच गए।
अब हमें शहर के अन्दर होटल डेन्जोंग जाना था पर पता लगा कि यह बड़ी टैक्सी शहर के अन्दर नहीं जा सकती। वहां पर जाने के लिए छोटी टैक्सी से ही जाना होगा और उसमे भी 4 लोगो से ज्यादा नहीं बैठ सकते। हाँ सुबह आठ बजे से पहले अवश्य यह टैक्सी वहां जा सकती हैं। शहर की परिवहन व्यवस्था इन छोटी टैक्सी पर ही टिकी हुई है। लोग या तो अपने वाहन से चलते है अन्यथा इन टैक्सी पर ही निर्भर रहते हैं। यहाँ पर ऑटो , टेम्पो , ग्रामीण सेवा आदि नहीं चलते हैं। सिर्फ छोटी कार वाली टैक्सी। इन छोटी टैक्सी का किराया भी ज्यादा नहीं है। पंद्रह रूपये सवारी के हिसाब से लोग सफर करते हैं।
हमें लाल बाजार, डेन्जोंग सिनेमा के साथ लगे हुए डेन्जोंग होटल जाना था , टूरिस्ट समझ कर हम लोगो से वहां पर टैक्सी वाले 150/- रूपये प्रति टैक्सी मांगने लगे। मैंने होटल फोन कर जानकारी ले लेना उचित समझा कि यह लोग ज्यादा पैसे तो नहीं मांग रहे हैं। होटल वाले ने बताया कि 90 - 100 रूपये से ज्यादा नहीं लगता है। आप लोग टैक्सी स्टैंड से बाहर आकर टैक्सी कर लो। टैक्सी स्टैंड से बाहर सड़क पर आये तो एक ने 100/- रूपये मांगे तो हमें लगा सही भाडा मांग रहा है उससे 4 लोग होटल रवाना हो गए दुसरे ने 80/- मांगे उसके बाद दो टैक्सी वाले 60/- रूपये में ही चल दिए। मतलब यह कि अगर आप मोल -भाव करना नहीं जानते या स्थानीय लोगो से नहीं पूछेंगे तो आपकी जेब ज्यादा हल्की हो जाएगी।
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