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कौशिकी देवी - अल्मोड़ा

अल्मोड़ा वे 


कसार देवी मार्ग 
आज मैं अपने ब्लॉग की यात्रा में एक ऐसे स्थान के बारे में बताने जा रहा हूँ जो की अपने आप में कई चमत्कारिक शक्तियों को समेटे हुए है।  आज मैं बात कर रहा हूँ देवी पार्वती के शरीर से प्रकट हुई देवी कौशिकी के स्थान की  जो कि उत्तराखंड राज्य के अति सुन्दर स्थान अल्मोड़ा में स्थित है। यह स्थान आज कसार देवी के नाम से पूरे विश्व में विख्यात है।

अल्मोड़ा बागेश्वर हाईवे पर कसार  नामक गांव में स्थित ये मंदिर कश्यप पहाड़ी की छोटी पर एक गुफानुमा जगह पर बना हुआ है। 


मंदिर मार्ग 
इस मंदिर में देवी माँ कौशिकी के रूप में स्थापित है जिन्होंने शुम्भ निशुम्भ नाम के दानवों का नाश किया था। स्क्न्दपुरण - मानसखंड अध्याय ५२ के अनुसार है कि कौशिकीशाल्मलीमध्ये पुण्य: काषायपर्वत: आज कोशिकी और शाल्मली को इस समय कोसी तथा स्वाल कहते है । अल्मोड़े के काषाय पर्वत पर नगर से आठ मील पर कौशिकी देवी का स्थान है। यहाँ पर काषाय पर्वत से अभिप्राय कश्यप पर्वत से है। भगवती कौशिकी की उत्पत्ति दुर्गासप्तशती के पांचवे अध्याय में दी हुई है।

कसार देवी मंदिर 

पांचवे अध्याय के अनुसार जब शुम्भ और निशुम्भ ने सब देवताओ को परास्त कर दिया तब सब देवता मिलकर भगवती योगमाया की स्तुति करने लगे तब उसी समय वहां पार्वती जी आयी और सब देवताओ से पूछने लगी कि आप लोग किसकी स्तुति कर रहे हो तब उनके ही शरीर कोष से प्रकट होकर शिवा देवी बोली कि ये सब मेरी ही स्तुति कर रहे है।  पार्वती जी के शरीर कोष से अम्बिका का प्रादुर्भाव हुआ था इसीलिए वे समस्त संसार में कौशिकी के नाम से विख्यात हुई। 

कसार देवी मंदिर 

यही कौशिकी देवी इस कसार देवी के रूप में यहाँ विराजमान है और यह तीर्थ इतना अद्भुत और प्रभावशाली है कि इसकी सिद्धहस्त शक्तियों को यहाँ  आने वाला कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है। इस कसारदेवी मंदिर की अपार शक्ति से बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी हैरान हैं। दुनिया में केवल तीन ही पर्यटन स्थल ऐसे हैं जहां कुदरत की खूबसूरती के दर्शनों के साथ ही मानसिक शांति भी महसूस होती है। ये अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति के केंद्र भी हैं।

कसार देवी मंदिर 

हमारे लिए गर्व करने की बात ये है कि इनमें से एक उत्तराखंड में अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी शक्तिपीठ है। इन तीनों धर्म स्थलों पर हजारों साल पहले सभ्यताएं बसी थीं। अमेरिकी अंतरिक्ष विज्ञान संगठन नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इन तीनों जगहों के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं।

पर्यावरणविद डॉक्टर अजय रावत ने भी लंबे समय तक इस पर शोध किया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं।

कसार देवी
पिछले दो साल से नासा के वैज्ञानिक इस बैल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हुए हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है। अब तक हुए इस अध्ययन में पाया गया है कि अल्मोड़ा स्थित कसारदेवी मंदिर और दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में अद्भुत समानताएं हैं।

इन तीनों जगहों पर चुंबकीय शक्ति का विशेष पुंज है। डॉ. रावत ने भी अपने शोध में इन तीनों स्थलों को चुंबकीय रूप से चार्ज पाया है। उन्होंने बताया कि कसारदेवी मंदिर के आसपास भी इस तरह की शक्ति निहित है। स्वामी विवेकानंद 1890 में ध्यान के लिए कुछ महीनों के लिए यहां आए थे। बताया जाता है कि अल्मोड़ा से करीब 22 किमी दूर काकड़ीघाट में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई थी। इसी तरह बौद्ध गुरु लामा अंगरिका गोविंदा ने गुफा में रहकर विशेष साधना की थी। हर साल इंग्लैंड से और अन्य देशों से अब भी शांति प्राप्ति के लिए सैलानी यहां आकर कुछ महीनों तक ठहरते हैं। स्वामी विवेकानंद ने 11 मई 1897 को अल्मोड़ा के खजांची बाजार में जन समूह को संबोधित करते हुए कहा था कि यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का देश है। भारत जननी श्री पार्वती की जन्म भूमि है। 

यह वह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने को इच्छुक रहता है। विवेकानंद ने आगे कहा यह वही भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं। मेरे मन में इस समय हिमालय में एक केंद्र स्थापित करने का विचार है। संबोधन में आगे कहा कि इन पहाड़ों के साथ हमारी जाति की श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा। यह केंद्र केवल कर्म प्रधान न होगा बल्कि यहीं निस्तब्धता ध्यान तथा शांति की प्रधानता होगी। उल्लेखनीय है कि 1916 में स्वामी विवेकानंद के शिष्य स्वामी तुरियानंद और स्वामी शिवानंद ने अल्मोड़ा में ब्राइटएंड कार्नर पर एक केंद्र की स्थापना कराई जो आज रामकृष्ण कुटीर नाम से जाना जाता है।  

इन्ही विशेषताओ के कारण यह मंदिर एक ऊर्जावान शक्ति पीठ है।   


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