आज मैं अपने ब्लाॅग की यात्रा में आप लोगों को नेपाल लेकर चलता हूॅ यहाॅ नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में एक बडा शहर है जिसका नाम है बिराटनगर और इससे लगभग 40 कि0मी0 दूर नेपाल के सुन्दर पर्वतीय क्षेत्र मे एक छोटा सा शहर है धरान, जिसकी मनमोहक छवि अनायास ही सबके मन को आकर्षिक कर लेती है।
इसी शहर की वादियों में देवी का एक सिद्व शक्तिपीठ है, दन्त काली मन्दिर। यह मन्दिर समुद्र तल से 1572 फीट उॅचाई पर विजयपुर पहाडीं के उपर स्थित है।
पौराणिक कथा के अनुसार जब एक बार दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा। फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। लेकिन दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती के लिए अपने पति के विषय में अपमानजनक बातें सुनना हृदय विदारक और घोर अपमानजनक था। यह सब वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और इस अपमान की कुंठावश उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।
सती को दर्द इस बात का भी था कि वह अपने पति के मना करने के बावजूद इस यज्ञ में चली आई थी और अपने दस शक्तिशाली (दस महाविद्या) रूप बताकर-डराकर पति शिव को इस बात के लिए विवश कर दिया था कि उन्हें सती को वहां जाने की आज्ञा देना पड़ी। पति के प्रति खुद के द्वारा किए गया ऐसा व्यवहार और पिता द्वारा पति का किया गया अपमान सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और यज्ञ कुंड में कूद गई। बस यहीं से सती के शक्ति बनने की कहानी शुरू होती है।
यह दुखद खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए।
इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का जिक्र है, तो देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गई है। वर्तमान में भी 51 शक्तिपीठ ही पाए जाते हैं, हालांकि इस शक्ति पीठ की गिनती देवी के 51 शक्ति पीठों में नही होती परन्तु यह कहा जाता है कि इस स्थान पर देवी के दान्त गिरे थे जिसकी वजह से इसका नाम दन्त काली पडा। यह दान्त आज भी मानवीय दान्त की तरह ही प्रतीत होता है। भले ही यह शक्ति पीठ देवी के 51 शक्ति पीठों मे ना आता हो, परन्तु इस स्थान की महत्ता उन सबसे कम नही है। क्योंकि यह अपने आप में एक सिद्व पीठ है और यह माना जाता है कि यहाॅ आने वाले की हर मनोकामना देवी पूरी करती है। इसी कारण यहाॅ के लोग इनको क्षेत्र देवी के रुप मे भी पूजते हैं।
सती को दर्द इस बात का भी था कि वह अपने पति के मना करने के बावजूद इस यज्ञ में चली आई थी और अपने दस शक्तिशाली (दस महाविद्या) रूप बताकर-डराकर पति शिव को इस बात के लिए विवश कर दिया था कि उन्हें सती को वहां जाने की आज्ञा देना पड़ी। पति के प्रति खुद के द्वारा किए गया ऐसा व्यवहार और पिता द्वारा पति का किया गया अपमान सती बर्दाश्त नहीं कर पाई और यज्ञ कुंड में कूद गई। बस यहीं से सती के शक्ति बनने की कहानी शुरू होती है।
यह दुखद खबर सुनते ही शिव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव ने तांडव नृत्य किया। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा सती के शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए।
इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का जिक्र है, तो देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गई है। वर्तमान में भी 51 शक्तिपीठ ही पाए जाते हैं, हालांकि इस शक्ति पीठ की गिनती देवी के 51 शक्ति पीठों में नही होती परन्तु यह कहा जाता है कि इस स्थान पर देवी के दान्त गिरे थे जिसकी वजह से इसका नाम दन्त काली पडा। यह दान्त आज भी मानवीय दान्त की तरह ही प्रतीत होता है। भले ही यह शक्ति पीठ देवी के 51 शक्ति पीठों मे ना आता हो, परन्तु इस स्थान की महत्ता उन सबसे कम नही है। क्योंकि यह अपने आप में एक सिद्व पीठ है और यह माना जाता है कि यहाॅ आने वाले की हर मनोकामना देवी पूरी करती है। इसी कारण यहाॅ के लोग इनको क्षेत्र देवी के रुप मे भी पूजते हैं।
देवी के नवरात्रों में यहाॅ भक्तों का जबरदस्त जमावडा रहता है हालांकि यहाॅ पर अभी भी बलि का प्रचलन है और इसी कारण यहाॅ यह माना जाता है कि बलि देने से देवि प्रसन्न होती है।
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