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जहाँ मिलती है रोगों से मुक्ति- ऐसा अद्भुत धाम- सूर्य देव (औरंगाबाद, बिहार)

आज मैं आपको अपनी ब्लॉग यात्रा में एक ऐसे स्थान पर लेकर जा रहा हूँ जहाँ के बारे में जानकर आप हैरान रह जायेंगे क्योकि यहाँ भगवान् सूर्य देव पश्चिम दिशा से दर्शन दे रहे है और साथ ही साथ सभी भक्तो को उनके कष्टो से मुक्त कर रहे है।    

मंदिर के नजदीक रेलवे स्टेशन 

आप सब को पता ही है कि सूर्यदेव मात्र प्रकाश के मुख्य स्रोत ही नहीं बल्कि इन्हे जीवनदाता भी माना जाता है। उनकी किरणें पृथ्वी पर जीवन को सरल बनाती हैं। अगर सूर्य में तेज प्रकाश न होता तो यहां जीवन जीना संभव ही नहीं होता। ना तो ऋतुएं बदलतीं और ना ही दिन-रात का वजूद होता। हिंदू धर्म में सूर्यदेव की पूजा एवं उन्हें जल अर्पण करने की परंपरा इसीलिए है क्योंकि वे सुख-सौभाग्य का वरदान देकर व्यक्ति के जीवन को ऊर्जावान बनाते हैं।

भगवान् सूर्य देव 

ये हमेशा पूर्व से उदय और पश्चिम में अस्त होते है लेकिन क्या इसके विपरीत भी हो सकते है? और हम कहेंगे हाँ क्योकि ऐसा बिहार के औरंगाबाद जिले में देखने को मिलता है, हालाँकि पूर्व ही सूर्यदेव की दिशा है। यहीं से वे रोज उदय होते हैं और पश्चिम दिशा में उनका रथ चला जाता है। अगले दिन वे वापस पूर्व में दर्शन देते हैं। इसी तरह यह क्रम निरंतर चलता रहता है। 

सूर्य देव धाम औरंगाबाद 

लेकिन बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित सूर्यदेव का प्राचीन मंदिर इसका उल्टा है। यहां सूर्यदेव का मुख पश्चिम दिशा की ओर है। भगवान सूर्य देव का यह मंदिर बिहार राज्य के औरंगाबाद जिला के दक्षिण पूर्व दिशा में तथा अनुग्रह नारायण रोड रेलवे स्टेशन से बीस किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है।  यह भगवान सूर्य का प्राचीन प्रसिद्ध मंदिर है। प्रतिवर्ष कार्तिक और चैत्र मास में छठ व्रत का मेला यहॉ लगता है। सुदूर प्रान्तों के लाखों नर-नारी छठ व्रत कर भगवान् सूर्य के प्रभाव से अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। मंदिर से थोडी दूरी पर सूर्य कुण्ड नामक विशाल तालाब है।  कार्तिक एवं चैत्र के छठ पर्व एवं प्रति रविवार को असंख्य् श्रद्धालु भक्त  इस कुण्ड में स्नान कर भगवान सूर्य की पूजा आराधना करते हैं। कुण्ड् के चारों ओर बने हुए सुन्दर घाट एवं छोटे-छोटे मंदिर तथा धर्मशालाऍ कुण्ड की शोभा बढाते नजर आते है। 
इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की तीन मूर्तियॉ हैं। 
उदय ब्रहानो रुपं मध्या हे तू महेश्वरः
अस्त्माने स्व्यं विष्णु त्रिमुर्ति च दिवकरः।।
अर्थात भगवान सूर्य का रुप उदय काल में ब्रह्मा का, मध्यांतर में शिव का और अस्त  के समय विष्णु का है जिसका प्रमाण देव मंदिर में सूर्य की तीन मूर्तियॉ के रुप में हैं।  यह शास्त्र  सम्मत है कि शिव पुराण के अनुसार वह एक ही महाशक्ति है उसी से यह सारा विश्व  आच्छा्दित है "एक एव तदा रुद्रो न द्वितीयों अस्ति कश्च नः" अर्थात सृष्टि के आदि में रूद्र हीं था, किन्तु  सृष्टि के उत्पादन, पालन और संहार के गुणों के कारण ब्रह्मा, विष्णु  और शिव तीन भेद हुए हैं। 

सूर्य मंदिर में तीनो देव की प्रतिमाये 

यह सूर्य मंदिर स्थापत्य कला का उत्क्रष्ट उदाहरण है।  एक सांचे में ढले और कला की आत्मा से तरासे गये पत्थरों  का यह मंदिर अद्वितीय है।  पत्थरो की सजी हुई शिलाऍ, सुन्दर नक्काशी  और अनुपम कलाकर्ती मन को बरबस ही आकृष्ट कर लेती हैं। इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में किया गया था। धार्मिक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में किया था। मंदिर का निर्माण काले और भूरे पत्थरों से किया गया है। इसके निर्माण में पुरी के जगन्नाथ मंदिर की झलक साफ नज़र आती है।

सूर्य देव मंदिर प्रांगण 

इस मंदिर का पश्चिमाभिमुख होना इसकी एक खासियत है जो अक्सर किसी और सूर्य मंदिर में नहीं होती हैं। इसके पीछे एक कथा है एक बार इस मंदिर को तोड़ने के लिए एक लुटेरा दल आगे बढ़ा।  मंदिर के पुजारियो ने उस दल से बड़ी विनती की कि वे सूर्य भगवान् के इस मंदिर को न तोड़े। तब उस दल के मुखिया ने मजाक में यह कह दिया कि यदि यह मंदिर सच्चा है तो कल तक अपनी दिशा बदल कर दिखा दे। पूरी रात मंदिर के पुजारियो ने भगवान् से विनती की कि हे प्रभु चमत्कार दिखाओ और मंदिर को बचाओ। अगली सुबह सब विस्मित हो गए जब उन्होंने देखा कि मंदिर का मुख पूरब से पश्चिम हो गया। सभी भक्त सूर्य भगवान् की जय जयकार करने लगे। जब उस दल ने यह चमत्कार अपनी आँखों से देखा तो वे भी इस मंदिर के सामने नतमस्तक हो गए।  

मंदिर में अनेक मूर्तिया हैं जो काफी प्राचीन हैं। इसके अलावा इस मंदिर की एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि जो यहाँ आकर सूर्य कुंड में स्नान कर भगवान् सूर्य के इस मंदिर में प्रार्थना करता है तो उसके कुष्ट रोग समाप्त हो जाते है इसके पीछे भी एक रोचक कथा  जुड़ी हुई है।

सूर्य कुण्ड 

एक बार राजा ऐल जो की प्रयाग राज के राजा थे और जिन्हें  भागवत महापुराण में इला पुत्र कहा गया है ये एक समय भ्रमण करते हुए एक जंगल से होकर जा रहे थे। राजा को रास्ते में शौच लगी, शौच जाने वास्ते राजा ने अपने अनुसेवक से जल लाने को कहा। अनुसेवक इधर-उधर खोजते हुए एक गड्ढे में जाकर जल पात्र में जल भरकर लाया उसी जल से राजा ने शौच कर्म पूरा किया।  राजा ऐल का संपूर्ण शरीर श्वेत कुष्ट से पीड़ित था, शौच क्रिया से निर्वत होते समय जल का छींटा उनके शरीर पर जहॉ कहीं भी पडा वहॉ का कुष्ट स्वतः समाप्त होता चला गया और शरीर सोने की भॉति चमकने लगा। अपने शरीर में आश्चर्य जनक परिवर्तन को देख राजा ने अत्यन्त आनन्दित हो रात में वहीं विश्राम किया। स्वप्न‍ में भगवान सूर्य ने राजा से कहा कि जिस गड्ढे के जल से तुम्हारा कुष्ट दूर हुआ है उसके भीतर मेरी मूर्ति है उसे निकाल कर मंदिर निर्माण कर उसमें मूर्ति स्थापित करो। इस प्रकार के स्वप्न देखने के बाद जब राजा की निन्द्रा टूटी तब राजा ने सुबह होने पर उस गड्ढे से सूर्य की मूर्ति निकलवाकर मंदिर निर्माण कराकर मूर्ति स्थापना की। तब से लेकर आज तक वह गड्ढा सूर्य कुंड के रूप में लोगो के कुष्ट रोगों को समाप्त कर रहा है जोकि आज भी विज्ञान के शोधों से परे है। हालांकि सूर्य देव की मूल प्रतिमा विलुप्त हो चुकी है परंतु सूर्य देव स्वयं यहाँ विद्यमान होकर सभी भक्तो की मनोकामना पूर्ण कर रहे है। जैसे यहां राजा ऐल ने स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद पाया था वैसे ही आज भी अनेक श्रद्धालु यहां पर सौभाग्य व सुखी जीवन का वरदान प्राप्त करने आते हैं।  


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