रात बरसात की थी, और आँखे कुछ नम
भीगा चिराग जलने में, वक्त तो लगता है
उनको अपना बनाना, बात ये मुश्किल है
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इक पत्थर घर बनने में, वक्त तो लगता है
बात जिनके दिल छू जाती, वही अपने है
आँख से आँसू बहने में, वक्त तो लगता है
लाख सौदे रोज होते है, इस दुनिया मे
सच्चा प्यार समझने में, वक़्त तो लगता है
इनकार का गम नही, तेरी मजबूरी का है
बेबस हालात समझने मे, वक्त तो लगता है
इस भीड़ में तनहा 'अकाब ' है तेरे बिना
खोने का डर भुलने मे, वक्त तो लगता है