मथुरा (Mathura) के बरसाना में आज विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली का आयोजन किया गया. होली (Holi) खेलने के लिए नंदगांव के हुरियारे दोपहर दो बजे प्रिया कुंड पर पहुंचे. यहां पर बरसाना के लोगों ने उनका स्वागत किया. स्वागत में हुरियारों को भांग की ठंडाई पिलाई गई. भांग की मस्ती में झूमते हुरियारे ने अपनी पाग बांध कर खुद को लठामार होली के लिए तैयार किया. बरसाना (Barsana Holi) पहुंचते ही हुरियारे सीधे लाडली जी (राधारानी मंदिर) के मंदिर में पहुंचे. बरसाना और नंदगांव के गोस्वामियों ने होली के आयोजन के दौरान खूब फाग गाए. गायन के दौरान दोनों पक्ष एक-दूसरे पर प्यार भरे कटाक्ष करते नजर आए. इस दौरान समाज गायन के बाद हुरियारे रंगीली गली में उतरे.
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रंगीली गली में हुरियारिनें हाथ में लाठियां लिए उनके स्वागत को तैयार थीं. लट्ठमार होली (Lathmar Holi) के दौरान हुरियारिनों ने नंदगांव के हुरियारों पर प्रेमपगी लाठियां बरसाईं. लट्ठमार होली के दौरान हुरियारे बड़ी कुशलता से खुद को हुरियारिनों के लाठी प्रहार से बचा रहे थे. वह लाठी के प्रहारों को अपनी ढालों पर झेले रहे थे. इस अनूठी परंपरा को देखने के लिए बरसाना में हजारों लोगों की भीड़ मौजूद रहे. बता दें कि बरसाना की होली दुनियाभर में मशहूर है. मथुरा के बरसाना में होने वाली लट्ठमार होली का रिश्ता भी प्रेम से है.
प्रेमपूर्वक मनाई जाती है लट्ठमार होली
मान्यता है कि जब प्यार का रंग बिखरा था तभी लट्ठमार होली की शुरुआत हुई थी. राधा-कृष्ण के प्रेम का रंग होली के त्योहार पर भी चढ़ गया और आज तक लट्ठमार होली प्रेमपूर्वक मनाई जाती है. देश-विदेश के लोग हर साल होली के मौके पर बरसाना जाते हैं और इस विशेष होली में शामिल होकर एक-दूसरे को रंगों में रंगते हैं. ब्रज में होली का महोत्सव डेढ़ माहीने से भी लंबे समय तक मनाया जाता है. दरअसल ब्रज के हर तीर्थस्थल की अलग परंपरा है और होली मनाने का भी तरीका एक-दूसरे से अलग है.
जितनी अच्छी लाठी उतना अच्छा इनाम
लेकिन बरसाना और नंदगाव की लट्ठमार होली की परंपरा सबसे अलग है. दोनों जगहों की गोपियां लाठियां बरसाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती हैं. वह अच्छा खाना खाकर अपनी ताकत बढ़ाती हैं, वहीं ग्वाले भी ढालों को दुरस्त करने में जुट जाते हैं. जो जितनी अच्छी लाठी चलाता है उसे उतना ही अच्छा पुरस्कार भी दिया जाता है. नंदगांव के हुरियारे बरसाना की हुरियारनों की लाठियों की मार अपने हाथों में ली हुई चमड़े की या धातु से बनीं ढालों पर झेलते हैं.
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