काशी (kashi) के स्वामी महादेव हैं. काशी में महादेव विश्वनाथ यानी विश्व के स्वामी के रूप में विराजमान हैं. यहां अविमुक्तेशवर हैं तो मा गंगा (Ganga) की अविरलता भी है. काशी कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) का निर्माण पूरा होने पर पूरी दुनिया की नजरें काशी पर थी. काशी विश्वनाथ की जितनी मान्यताएं हैं, उतनी ही कथाएं भी हैं.
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कहीं शक्ति द्वारा इस शिवलिंग की स्थापना की कथा कही जाती है, तो कहीं विष्णु द्वारा इसे स्थापित करने की बता कही जाती है. इतना ही नहीं कहीं सपने में बाबा के दर्शन और काशी में बसने इच्छा की बात भी कही जाती है. काशी विश्वनाथ बाबा का सबसे लोकप्रिय नाम है. बाबा का शास्त्रों में नाम विश्वश्वनाथ है. माना जाता है कि ज्योतिर्लिंगों में विश्वेश्वर शिवलिंग अद्भुत है. मत्स्य पुराण में अविमुक्तेश्वर, विश्नेश्वर और ज्ञान वापी का जिक्र आया हैं. ये स्थान शिव और पार्वती का आदिस्थान है.
क्या है इतिहासकारों की राय
इसलिए कई लोग अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम शिवलिंग भी मानते हैं. विश्वनाथ जी द्वादश ज्योतिर्लिंग में शामिल हैं, इनके स्वयंभी प्रकट होने की मान्य भी है. एक न्यूज वेबसाइट के अनुसार काशी के इतिहासकार बताते हैं कि ब्रह्मांड की दृष्टि से शिवलिंग में तीनों रूप हैं. सबसे नीचे तीन लेयर में सृष्टि रूप यानी ब्रह्मा, उसके ऊपर अष्टकोण में स्थिति रूप यानी विष्णु उसके ऊपर पिंड यानी गर्भ. इसके बाद शिवलिंग यानी शिव. इसका धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व है. इतिहासकार हैं कि महाभारत के वन पर्व में भी विश्वनाथ का वर्णन है.
अहिल्या बाई ने कराया था पुननिर्माण
वहीं मंदिर के आक्रमण में क्षतिग्रस्त होने और रानी अहिल्या बाई द्वारा पुननिर्माण की बात स्पष्ट है. लेकिन शिवलिंग के बारे में कही-सुनी बातें हैं. आक्रमण से बचाने के लिए पुजारी शिवलिंग लेकर ज्ञानवापी कूप में थे. लेकिन इशकी मान्यता वैसी ही रही. इसके पीछे ये तथ्य है कि रानी अहिल्याबाई ने शास्त्र सम्मत तरीके के 11 रुद्रों के प्रतीक 11 अर्चकों के पूजा अर्चना द्वारा शिवलिंग को पूजित करवाया. मुख्य अर्चक के रूप में नारायण भट्ट की बात कुछ लोग कहते हैं तो कुछ लोग उनकी पहचान गुप्त बताते हैं.
वहीं विश्वनाथ शिवलिंग के बारे में गंगा महासभा के महामंत्री जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं कि सभी ज्योतिर्लिंगों में भी काशी के विश्वेश्वरनाथ विशेष हैं क्योंकि सिर्फ विश्वेश्वरनाथ ही मोक्ष प्रदान करत हैं. यही आख्यान मिलता है कि इनका प्राचीनतम वर्णन अविमुक्तेश्वर नाम से हैं. यानी जो जन्म मरण के चक्र से मुक्त कर दें. इसीलिए काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है.
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