दिल्ली में कचरे के माउंटेन जल क्यो रहा है। रीजन हीट वेव्स, गर्मी इतनी ज्यादा है कि डायरेक्टली गर्मी की वजह से आग लग रही। दिल्ली जैसे शहरों में दिन में 47 डिग्री टेंपरेचर हमें पिंगला रहा है। पिछले 122 सालों में ये साल सबसे गर्म साल होने वाले। सोचिए अगर अप्रैल में ये हाल है तो मई और जून में क्या होगा।
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जब हमे टेम्प्रेचर कंट्रोल करने के लिए इलेक्ट्रिसिटी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। तब पूरे देश में पावर कट रहे हैं, लेकिन क्यों?
चलिए इस डुअल क्राइसिस को समझते हैं और सोचते हैं कि हम क्या कर सकते हिस्ट्री में पहली बार भारत और पाकिस्तान दोनों एक बात पर अग्री कर सकते हैं कि गर्मी बहुत पड़ी। हीट वेव ने दोनों देशों को परेशान कर दिया। अब पूरे वर्ल्ड में सबसे ज्यादा टेंपरेचर भारत और पाकिस्तान के कुछ शहरों में रेकॉर्ड है और ये बात हम सबके लिए डेंजरस हैं।
लेकिन हीट वेव होती क्या है।
जब नॉर्मल टेंपरेचर से साढ़े चार डिग्री ज्यादा गर्मी होती है तब एक हीट वेव डिक्लेयर होता है। इस बार टेंपरेचर साढ़े छह डिग्री से ज्यादा। राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के विदर्भ में बार बार ऑरेंज अलर्ट डिक्लेयर हो रहा है।
लेकिन एक और डिग्री टेंपरेचर बढने से क्या फर्क पड़?
पिछले 20 सालों में दुनिया में 1,66,000 लोग हीटवेव की वजह से मरे हैं। शिकागो में 1995 में एक हीट वेव ने 692 लोगों की जान ली थी और 3000 से ज्यादा लोगों को हॉस्पिटलाइज भी होना पड़ा था, जो लोग हॉस्पिटलाइज हुए थे। उनमें से 1/3 लोग हॉस्पिटलाइजेशन के बाद एक साल में गुजर गए।
2015 में भारत में भी ऐसी एक हीट वेव ने 2500 लोगों की जान ली। हीट वेव कोई जोक नहीं, भारत में कई लोग कड़ी धूप में काम करते हैं। वो भी बिना किसी प्रोटेक्ट के गियर। यूजली ही रात को टेंपरेचर कम होता है तो बॉडी को एक मौका मिलता है। कूल डाउन करने लेकिन एक हीट वेव के दौरान बॉडी को डाउन नहीं कर पाती है। क्योंकि रात को भी टेंपरेचर ज्यादा होता है।
हीट वेव होती क्यो है?
कई फैक्टर्स हो सकते हैं। ज्योग्राफिक फैक्टर्स, विंड बारिश का कम होना। उधारण के तौर पर मार्च के महीने में कुछ एरिया में लाइट रैनफल होता है, जिसकी वजह से एयर कूल होती है, लेकिन इस बार मार्च में बिल्कुल बारिश नहीं हुई। लेकिन सबसे बड़ा फैक्टर्स जो आने वाले समय में हीट वेव को बढ़ाने वाला है, वो है क्लाइमेट चेंज।
आज एक हीट वेव आने के चांसेस 30 गुना बढ़ गए। गर्मियों में हीट बढ़ने की वजह से हम एसी चलाते हैं। कूलर्स चलाते हैं, लेकिन इन सारी चीजों के लिए इलेक्ट्रिसिटी भी तो होनी चाहिए।
भारत में 75% इलेक्ट्रिसिटी कोल से आती है। 10 में से छह प्लांट में कोल क्रिटिकली लो लेवल तक पहुंच गया। रशिया यूक्रेन वॉर के चलते दुनिया भर में एनर्जी क्राइसिस हो रहा, जिसके कोल की कीमत जो नॉर्मली $50 टन होते हैं। वो आज $250 टन तक बढ़ गए हैं। सो बेसिकली आज हमारा देश इलेक्ट्रिसिटी के लिए पहले सिर्फ पांच गुना ज्यादा पे कर रहा है। आज भारत पिछले छह सालों में सबसे ज्यादा पॉवर कट का सामना कर रहा है।
गर्मी जब तक पसीने छुटा रही है तब तक ठीक है। लेकिन जब गर्मी आग लगाती है तब बड़ा प्रॉब्लम है। आज भारत के कई शहरों में भी वेस्ट एग्रिकेशन के लिए प्रॉपर नियम नहीं है। जब हम वेड वेस्ट जैसे बचा हुआ खाना फल सब्जी कचरे में बिना सेग्रिगेशन के फेंकते हैं, तब ये चीजें मिथेन गैस रिलीज करती और तपता सूरज इस मीथेन गैस को आग लगा देता है। हमारी और हमारी म्यूनिसिपल बॉडीज की inaction की वजह से हमारा शहर जलता है और उसका धुंआ फिर हमें ही खाने को दौड़ है।
ऐसी कहानी आपने आपके शहर के बारे में आज या कल सुनी होगी। दिल्ली के फायर एक फायर नहीं एक सिग्नल है। एक वेकअप कॉल है कि अब बाते करने का टाइम चला गया। अब एक्शन लेने का समय आ गया।
सोचने जैसी बातें आप और हम जैसे लोग प्रिविलेज हम एक बटन से एसी चलाते हैं। गर्मियों में हिल स्टेशन जाते हैं। अगर गर्मी ज्यादा हो तो नींबू पानी पीता है। लेकिन उन लोगों का क्या जो ये अफोर्ड नहीं कर सकते? इनसानों का छोड़िए उन पेड़ों का क्या जो पूरा दिन गर्मी में बिताते हैं उन पंछियों का क्या जो गर्मी की वजह से उठने पर क्लाइमेट चेंज से दरवाजे पर दस्तक नहीं दे रहा। दरवाजा तोड़कर अंदर आ रहा।
ये चार्ट ये रिप्रेजेंट करता है कि आज तक क्लाइमेट चेंज के लिए सबसे ज्यादा रिस्पॉन्सिबल कौन है। यूरोप और अमेरिका में जिस तरह पिछले सेंचुरी में पूरी दुनिया का इस्तेमाल किया है उसका भुगतान हम सबको आज देना पड़ रहा है। भारत जैसे कौशल देश जहा आज भी एग्रीकल्चर कई लोगों की रोजी रोटी है क्लाइमेट चेंज इम्पैक्ट ओर भी ज्यादा होने वाले है।
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