ताज महल को हम प्यार की सबसे बड़ी निशानी कहते हैं, लेकिन ये सरासर झूठ। भारत में एक और ऐसी सीक्रेट जगह है जो ताजमहल से भी बड़ा आइकॉन ऑफ लव।
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इसके एंट्री फीस 0 है। ओर यह लाखों लोग रोते रोते आते हैं, ओर हंसते हंसते में चले जाते हैं।
यह कौन सी जगह है?
इस प्यार के मोन्यूमेंट के बारे में जानने से पहले जानते हैं। कि प्यार होता क्या है, प्यार क्या होता ये मैं नहीं जानता। इतने बड़े सवाल का जवाब मैं अकेले नहीं दे सकता। आई नीड आ फ्रेंड दोराबजी टाटा, रतन टाटा को हम सब जानते हैं। जेआरडी की महानता मानते हैं। जमशेदजी की आइकॉनिक स्टोरीज बच्चों को बताते हैं। लेकिन हमारी कहानी के हीरो हैं दोराबजी टाटा ने भारत की पहली टीम को ओलंपिक्स भेजने में इनका ही हाथ था। इन्होने पर्सनलाई हमारी हॉकी टीम को फंड की वही टीम जो बाद में भारत के लिए गोल्ड जीती।
14 फरवरी 1898 यानि वैलंटाइन्स डे पर उनकी शादी इस कहानी की हीरोइन मेहरबाई से हुई। जैसे हम प्यार में एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं। उन्होंने दो साल बाद अपनी एनिवर्सरी को एक छोटा सा गिफ्ट दिया एक डायमंड कोई साधारण डायमंड कोहिनूर हीरे से दो गुना बड़ा वज़न शून्य पाँच कैरेट कीमत 1 लाख पाउंड यानि आज के जमाने में 131 करोड़ इसका नाम था जूली डार्लिंग।
लंदन के जिन कारागिरो ने इस हीरे पर काम किया। उन्होंने सोचा इंग्लैंड की महारानी के सर का ताज होगा, लेकिन टाटा के कुछ और ही प्लान थे। उन्होंने अपनी वाइफ मेहर बाई के लिए भी हीरा खरीदा।
मेहरबाई थी ही इतनी स्पेशल, चाहे वो यूएस के प्रेसिडेंट से मिलना हो या फिर इंग्लैंड के राजा रानी से उस ड्रेस नही एक साड़ी पहने अपना कैल्चर शानो शौकत से दिखा दी। और इसी के साथ ये हीरा भी जो इंग्लैंड की महारानी का भी नहीं हो सका। वो टाटा ने अपनी बीवी के लिए खरीद। प्यार क्या होता है? सायद महंगे गिफ्ट देना ही प्यार होता है।
तो फिर ये डायमंड कहा गया?
जमशेद जी टाटा के बाद दोराबजी टाटा ने टाटा की सारे बिजनेस की डोर संभाली। टाटा भारत की सबसे बेहतरीन कंपनी तो थी, लेकिन स्टील सेक्टर में विश्व की सबसे बेहतरीन कंपनी बनने की कगार पर लेकिन, टाटा को भी किसी की बुरी नजर लगे। वर्ल्ड वार 1 के बाद टाटा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, पैसे नहीं थे, लेबरर्स प्रोटेस्ट कर रहे थे। 1924 मे टाटा को खबर है कि ट्रैजरी में से सारे पैसे खत्म हो गए। मजदूरों को मेहनताना देने तक पैसे नहीं।
अपने पति और उनकी कंपनी को मुसीबत में देख ममेहरबाई क्या किया?
बिना किसी हैजेटेशन के अपनी सारी जूलरी गिरवी रख दी और उसकी टोटल वैल्यू थी उस जमाने की ₹1 करोड़। इसमें जुबली डायमंड भी शामिल था। तब बैंक से लोन लेकर टाटा ने अपने सारे मजदूरों को रोजगार दिया एक भी मजदूर को नौकरी गवानी नहीं पड़ी।
प्यार क्या होगा है? किसी अपने के लिए अपनी प्यारी चीज सैक्रिफाइस करना। शायद यही प्यार होता है। कुछ साल बाद इसी सैक्रिफाइस के वजह से कंपनी ने रिकवर किया। और फिर से टाटा स्टील दुनिया की बेस्ट स्टील कंपनी बनने की कगार पर आ गई।
मेहरबाई ओर दोराबजी टाटा की इस सैक्रिफाइस की वजह से ही आज टाटा कंपनी जिंदा है।
धीरे धीरे करके दोराब जी ने अपनी बीवी के सारे गहने भी बैंक से छुड़ा लिया। सब ठीक चल रहा था। लेकिन प्यार की असली परीक्षा अभी बाकी है। 1931 मे मेहरबाई ने अपनी गोल्डन जुबली मनाई। वो 50 साल की थी। तब उन्हें उनके कैंसर के बारे में पता चला। उनके पास ज्यादा समय नहीं दोराबजी ने बड़े से बड़े डॉक्टर को कंसल्ट किया, कोई कसर नहीं छोड़ी। जो इंसान अपने मजदूरों की इतनी चिंता करता है। उनके भले के लिए इस हद तक जाता है। उस इंसान ने अपने प्यार के लिए क्या क्या किया होगा। लेकिन इस लव स्टोरी का हैप्पी एंडिंग नहीं था। 1931 में मेहरबाई चलबासी और उसके अगले साल ही दोराबजी भी। लेकिन गुजरने से पहले उन्होंने अपने प्यार की एक निशानी पीछे ज़रूर थी। वो जुबली डायमंड याद है वही डायमंड बेचकर एक ट्रस्ट की शुरुआत दोराबजी टाटा ट्रस्ट जिसे मुम्बई में एक इमारत बनी जो हमारे हीरो हिरोइन के प्यार की निशानी टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल बना। प्यार क्या होता है, मैं नहीं जानता लेकिन ये जरूर जानता हूं कि हर साल 64 Thousand कैन्सर पेशेंट्स। टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में विजेट करते हैं। उनमें से 71% पेशेंट्स को उनकी सारी ट्रीटमेंट फ्री में मिलती है। जिस कैंसर ने मेहरबाई को हराया उस कैंसर को हराने की जंग आज भी जारी। हमारी हीरो हिरोइन को गुजरे 90 साल होने के बाद जब तक ये लोग टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में कैंसर से जीते रहेंगे, तब तक कैंसर नहीं जीतेगा।
प्यार क्या होता है? एक सुंदर बिल्डिंग या एक सुंदर सिंबल। एक बादशाह ने बिल्डिंग से इतना प्यार किया कि उसे बनाने वाले हाथों को काट दिया ताकि कोई और उसे कॉपी ना कर सके। लेकिन दोराब जी ने कहा कि इस सिम्बल की कॉपी बनाओ।
मुम्बई में ही नहीं कोलकाता में भी टाटा मेडिकल सेंटर है। तिरुपति, भुवनेश्वर, रांची, प्रयाग, मैंगलोर में काम हो रहा। सरकार के साथ हाथ मिलाकर आसाम, ओडिशा, झारखंड, तेलंगाना और नागालैंड में क्या कैंसर फसिलिटी नेटवर्क बन रहा है।
क्योंकि सिम्बल क्या है ये इम्पोर्टेड नही, गिफ्ट किया है ये इम्पॉर्टेंट नही। लेकिन वो क्या रिप्रेजेंट करता है ये इंपोर्टेंट है। इस आर्टिकल के बीच में मैंने आपसे झूठ बोला था कि दोराबजी और मेहरबाई टाटा की लव स्टोरी की एक हैप्पी एंडिंग नहीं है। लेकिन ये सच है कि आज जब भी कोई कैंसर से ठीक होकर घर लौटता है। तब उनके परिवार को एक हैप्पी बिगनिंग जरूर मिलेगी। हमारे हीरो हिरोइन इस कहानी की हैप्पी एंडिंग देखने के लिए जिंदा नहीं। लेकिन इसका मतलब ये नही की कहानी जिंदा नही।
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