महायक्षिणी |
"यक्षिणी साधना संपूर्ण विधि विधान- भाग -2" “Yakshini Sadhana to Get Answers for Everything - Part-2”
(1) महायक्षिणी -सिद्धि
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सिद्धि करने का समय
यह यक्षिणी रात्रि के तीसरे पहर में सिद्ध की जाती है, रात्रि को नियमित समय पर शमशान भूमि में जाने और सुष्मणानाड़ी के चलते समय वट वृक्ष के ऊपर चारो ओर से एकाग्र चित्त करके नीचे लिखे मन्त्र का पांच हजार बार जाप नित्य करे।
साधन मंत्र--
ॐ ह्लीं क्लीं महा यक्षिणी प्रदात्र्यैनमः ।
महायक्षिणी का आगमन--
यह यक्षिणी अनेक रूप धारण कर साधक को भय दिखाती है। आते समय भैंसे का रूप धारणकर लेती है । जिस समय यह आती है प्रथम अन्धकार और आँधी लाती है और हवा बड़े वेग से चलती है । बादल की घटा इतनी जोर की चारों ओर उठती हुईं दिखाई देती है कि हाथों हाथ कुछ नहीं दिखाई देता । फिर एक दम उजाला हो जाता है फिर काले रंग के बाल बिखेरे हुये एक स्त्री नाचती हुईं आती है जिसके दाँत आगे को निकले हुये सिर पर लाल रंग का कपष़ा लिपटा हुआ, मस्तक पर सिंदूर का टीका लगा हुआ, जिसकी सूरत देखते ही यह अनुमान हो जाता है कि ह॒बह काल की यही
निशानी है । ऐसे अनेकों उपद्रव एक सप्ताह तक बराबर होते रहते हैं । यदि साधक भयभीत न हुआ तो फिर महा यक्षिणी अपना दर्शन देती है। महायक्षिणी का स्वरूप--
पीत वर्ण वाली, तीस वर्ष की आयु वाली, स्वेत रंग की साड़ी पहिने हुये, जिस पर मोतियों की कालर लगी होती है मस्तक पर कस्तूरी और केशर की बिन्दी लगी होती है । एक हाथ में कमल का पुष्प दूसरे में तीर कमान धारण किये हुये साधक के सामने दिखाई देती है उस समय साधक जो जबरन माँगता है वंही देती है ।
प्रभाव---भयभीत हो जाने पर पागल बना देती है इससे भय न करना चाहिये । सिद्ध किया हुआ धन सुकर्म में लगाया जाय, कुकर्म में लगाने से सिद्धि निष्फल हो जाती है।
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