सुर सुंदरी यक्षिणी |
"यक्षिणी साधना संपूर्ण विधि विधान- भाग -3" “Yakshini Sadhana to Get Answers for Everything - Part-3”
(2) सुन्दरी यक्षिणी
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सिद्ध करने का समय--
यह यक्षिणी रात्रि के दूसरे पहर में सिद्ध की जाती है । इसको शमशान भूमि में अस्थियों पर बैठ कर सिद्ध करे और मुर्दे की चिता पर पके चावल इसको बलिदान में दे । जब यह प्रसन्न होती है तब अपने बलिदान को स्वयं उठाकर ले जाती है और उसको भक्षण कर लेती है।
सिद्ध करने का मन्त्र--
ॐ हीं क्लीं यक्षिणी सुन्दर्य नमः ।
क्रिया-इस मन्त्र को पाँच हजार बार जाप करे और प्रत्येक मन्त्र के साथ घृत और कपूर की आहुति दे ।
आहुति हवन कुण्ड बनाना
विशाषा नक्षत्र में रविवार के दिन कपिला गाय के गोबर से सिंदूर मिलांकर त्रिभुजाकार चौका दे । उसके मध्य में त्रिभुजाकार एक बालिश्त नीचा गडढा खोदे उसकी जगह पर सिंदूर के पाँच बिन्दु इस प्रकार लगावे कि चारों ओर चार बिन्दु रहें और मध्य में एक आवे उसके ऊपर कंवारे मुर्दे की हड्डियों को चुन अग्नि दीपक करे, उसमें कपूर की आहुति उपरोक्त मन्त्र के साथ दे । इसके पदचात् यक्षिणी प्रकट होगी ।
सुन्दरी का आगमन--
जिस समय यह आती है चारों ओर धुर्यें का अंधकार हो जाता है। साधक को कुछ दिखाई नहीं. देता, कभी ऐसा भी होता है कि अग्निकुन्ड में से आग कौ लपटें उठकर साधक की ओर आती हैं । उस समय साधक को भयभीत नहीं होना चाहिये |
सुन्दरी यक्षिणी का स्वरूप-
गोरे बदन वाली षोडश वर्षीया बालिका के रूप में, बसन्ती साड़ी पहिने हुये गले में सफेद पुष्पों की माला धारण किये हुये भुजाओं में लाल रंग की चुस्त चोली पहिने नाक में भलकदार, नथ पहिने हुये साधक को दर्शन देती है ।