विशाला यक्षिणी |
"यक्षिणी साधना संपूर्ण विधि विधान- भाग -11" “Yakshini Sadhana to Get Answers for Everything - Part-11”
(10) विशाला यक्षिणी
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साधन का समय-
रात्रि के तीसरे पहर में काले धतूरे के वृक्ष के नीचे छाया में गधे के चर्म का आसन बिछा कर उस पर बैठे और आहुति देने के हेतु अष्ट धातु का हवन कुण्ड त्रिभुजाकार बनवाये और उसके मध्य में आदित्य देव की मूति स्थापित करके उस पर तेल मर्दन करे। निम्नलिखित मन्त्र का एक सौ आठ बार प्रति दित जाप करता रहे।
ॐ अनंत वल्लभो देवि, विशालस्य नमित:।
स्वयं प्रिया महा वश्यम कुरु फट फट स्वाहा ॥
आषाढ़ बदी 15 आदित्यवार के दिन बिशाषा नक्षत्र में रात्रि के तीन बजे स्मशान भूमि में जावे और उपरोक्त मंत्र का जाप करे। प्रत्येक मंत्र के अन्तिम अक्षर पर तेल और चावलों की आहुति दे । अन्तिम आहुति मदिरा ओर माँस की देकर सीधा चला आवे पीछे को न देखें ।
विशाला यक्षिणी का आगमन-
इसके आने से पूर्व अनेकों हिंसक जानवर शोर करते हुये दिखाई देते हैं। फिर वह अंतर्ध्यान हो जाते हैं केवल दक्षिण दिशा में मनुष्य से बातंचीत करने का शब्द सुनाई देता रहता है । साधक को उस समय अपना ध्यान नहीं हटाना चाहिये । यदि उसका ध्यान उस ओर से हट गया अथवा भयभीत हो गया तो घर आते ही बीमार हो जायगा । अथवा जिधर जावेगा उधर ही उसको वह शब्द सुनाई देगा । इसीलिये साधक को चाहिये कि हृदय को कड़ा करके इसकी साधना करे ।
विशाला यक्षिणी का स्वरूप-
इसकी लम्बाई एक पीपल के पूरे और ऊँचे पेह के बराबर होती है। पैरों को पृथ्वी पर बड़े जोरोंसे मारती है और अनेक प्रकार के उपद्रव उठाती हुई जाती है। सिर के बाल आगे की ओर लटके हुये होते हैं। लम्बाई के कारण इमके उमर की तादात नहीं हो सकती । जितनी यह लम्बी होती है उसी के अनसार हाथ पैर लम्बे व चौड़े होते हैं । सिर इसका बड़ा और दाँत आगे को निकले हुये और बड़े होते है।
प्रभाव- साधक इसको यदि प्रसन्न रक्खे तो माला माल कर देती है और. अप्रसन्न होने पर सकुटुम्ब उसका नाश कर देती है ।