लक्ष्मी यक्षिणी |
"यक्षिणी साधना संपूर्ण विधि विधान- भाग -13" “Yakshini Sadhana to Get Answers for Everything - Part-13”
(12) लक्ष्मी यक्षिणी
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साधन का समय- इसकी साधना प्रातःकाल चार बजे की जाती है। इसकी साधना के लिये पवित्र स्थान की आवश्यकता पड़ती है । जिस जगह पर इसकी आराधना की जावे उस मकान में कोई अपवित्र मनुष्य न जाने पावे और न कोई स्त्री उस मकान का स्पर्श करे । साधना करने से प्रथम मकान की सफाई लिपाई पुताई कराकर उसको धूप चन्दनादि की धूनी देकर पुष्पों की मालाएँ लटका दे और सुगन्ध्रित इत्र की खूशबू उसमें बसा कर जाप आरम्म करे।
साधन मंत्र
लक्ष्मी कान्तम् कमल नयनं सिंदूर शोभावरम्।
भालेन्द्रतिलकललाट मुकुटम् वाणीवरमवरदायक्रम् ॥
उत्तरा भाद्र पक्ष नक्षत्र में लक्ष्मी की मूर्ति अष्टधातु की बनाकर स्थापित करे और प्रात: काल उसको गंगाजल से स्नान कराकर उसक़े मस्तक पर केशर और कस्तूरी का तिलक लगावे और स्वयं कुशासन पर बैठकर पीताम्बर वस्त्र धारण करे। फिर स्नान कराये हुये जल का भक्ति भाव से पान करे और हृदय में मूति का चित्र धारण कर तुलसी की माला हाथ में लेकर एक सौ आठ बार जाप कर ओर भाँग के लड्डू बना कर सामने रखे । इस प्रकार इकत्तीस दिन तक जाप करता रहे । इकतीसवें दिन यक्षिणी दर्शन देगी ।
लक्ष्मी आगभन- जिस समय यह आती है उससे पूर्व राजा महाराजाओं की भाँति आगमन की तैयरियाँ देवगण कर जाते है चारों ओर शांति स्थापित हो जाती है। भय का कुछ काम नहीं रहता । इसका स्वरूप साक्षात आँखों से दिखाई नहीं देता। तीसवें दिन स्वप्न में आकर साधक को दर्शन देती है।
लक्ष्मी का स्वरूप- सुन्दर गोरे वर्ण की अठारह उन्नीस वर्ष के अनुमान वाली स्त्री चन्द्रवदनी मृगलोचनी, बाहें चम्पे की डाल के अनुसार, नाक में स्वर्ण की नथ पड़ी हुई, साक्षात देवी अवतार, दोनों हाथों में कमल का फूल धारण किये हुये आती है।
प्रभाव- जब यह प्रसन्न होती है तब साधक को मालोमाल कर देती है और जब इसकी पूजा ठीक नहीं होती तो दरिद्री बना कर चली जाती है।