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श्री गणेश जी की व्रत कथा GANESH JI KI VART KATHA

GANESH JI KI VART KATHA : हिन्दू कथाओ और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है, की भगवान श्री गणेश जी का जन्म  भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर हुआ था और इनका जन्म उत्सव बड़े ही धूम धाम से महाराष्ट में मनाया जाता है और वहाँ नो दिन तक भगवान श्री गणेश जी की उपासना और पूजा अर्चना की जाती है।

GANESH JI KI VART KATHA

महाराष्ट में जगह – जगह भगवान श्री गणेश जी GANESH JI KI VART KATHA : की प्रतिमा बनायी जाती है और बड़े – बड़े पंडाल भी लगाए जाते है यहाँ सभी लोग बड़ी ही धूम धाम से भगवान श्री गणेश जी की पूजा – अर्चना करते है, और सभी भक्तगण नई -नई ड्रेस कपडे पहनते है ,और इस तरह यह त्योहार की तरह मनाया जाता है जैसे होली को मानते है। GANESH JI KI VART KATHA

और सभी घर घर में गणपति जी की मूर्ति को स्थापित किया जाता है और नौ  दिन बाद इनको नदी में विसृजन किया जाता है ,सभी भक्तगण इसे बड़े ही खुशी और उलाश के साथ मानते है ,और गणपति जी को लडुओ और मोदक का भोग लगाते है। यह गणपति जी को अति प्रिय है।

और कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणपति जी की पूजा अर्चना की जाती है ,और मन में ॐ गणेशया नमः  का जाप भी मन में करना होता है और शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश जी का पिर्य दिन बुधवार होता है और इस दिन पूजा करने से भगवान श्री गणेश जी इच्छा वाला फल देते है। भगवान श्री गणेश जी का व्रत GANESH JI KI VART KATHA करने से सभी कास्ट दूर होते है

श्री गणेश जी भगवान की उत्पति कैसे हुई ?

GANESH JI KI VART KATHA : जैसा की हम सभी जानते है की श्री गणेश जी भगवान माता गौरी और भगवान शिव भोलेनाथ के पुत्र है श्री गणेश जी भगवान की उत्पति कैसे हुई ? जब माता गौरी कैलाश पर्वत पर रहती थी ,तब एक दिन वह नहाने को जा रही थी।

तब माता गौरी ने नंदी जी से कहा – हे नंदी में स्नान करने को जा रही हूँ ,इसलिए तुम किसी को भी अन्दर मत आने देना। माता गौरी की बात मानकर नंदी जी वही पर पहरा देने लगे , और थोड़ी देर बाद ही वहाँ भोलेनाथ जी आ जाते है , और अन्दर जाने लगते है।

पर नदी जी उन्हें रोक नहीं पाते है और वह अन्दर चले जाते है ,इस बात पर गौरी माता ने नदी जी से कहा – ” की जब मैने किसी को भी अन्दर आने से मना किया था ,तो शिव जी अन्दर कैसे आये ? तब नदी जी ने कहा – “है माता में कैसे अपने शिव भोले नाथ को अन्दर जाने से रोक सकता था ? वह तो शिव भोलेनाथ है,

 तब माता ने सोचा की में ऐसा कोई पुत्र बनाऊ जो की मेरी आज्ञा का पालन करे ,तब माता गौरी ने अपने उबटन से एक पुतला बनाया ,और अपनी शक्ति से उसमे जान डाल दी।

और उसका नाम श्री गणेश रखा ,तब माता ने कहा – ” है पुत्र तुम एक आज्ञाकारी पुत्र बनकर रहना है ,और मुझे तुम पर विस्वाश है। तब हाथ को जोड़कर वह माता को शीश झुकाते है।

और फिर अगले दिन स्नान करने को गई , और द्वार पर गणेश जी को खड़ा कर दिया ,और कहा – पुत्र जब तक में नहा के ना आ जाऊ तब तक तुम किसी को भी अन्दर नहीं आने देना , गणेश जी बोले जैसी आपकी आज्ञा माता।

थोड़ी देर बाद भोलेनाथ जी वहाँ आ जाते है ,और और एक छोटे बच्चे को बैठा देख कर कहते है – ” हे बालक तुम कौन हो ? और यहाँ क्यों बैठे हो ? तब गणेश जी ने अपना परिचय दे दिया। तब  भोलेनाथ जी अन्दर जाने लगे तो उस बालक ने उनका रास्ता रोक  दिया।

तब  भोले नाथ जी ने कहा -” की हम गौरा के पति है , अपनी मर्जी सेआ जा सकते है ,हमें कोई नहीं रोक सकता ,तब गणेश जी बोले – ” मेरी माता का जब तक आदेश नहीं होगा में किसी को भी अंदर नहीं  जाने दूगा।

तब भोले नाथ जी नंदी जी से कहा – ” की इस बालक को यहाँ स हटाओ मुझे अंदर गौरा के पास जाना है ,नंदी जी ने भी उस हठी बालक को बार – बार समझाया , पर गणेश जी माने नहीं , जब गणेश जी बालक नहीं माने तो नदी ने अपना बल उस बालक पर आजमाया। बड़े ही बलशाली नदी जी उस छोटे से बालक से हार गये।

फिर नंदी के सारे घरवाले आ जाते है, पर वह भी गणेश जी को वहाँ से हटा नहीं पाते है ,फिर सारे देवगणो को भोले नाथ ने बुलाया था ,लेकिन कोई भी उस बालक को समझा  पाया था। 

फिर भोले नाथ जी को बड़ा ही क्रोध आया ,और उन्होंने अपने तिरसूल से उस छोटे बालक की गर्दन काट दी ,और वहाँ से चले गए , जब माता गौरी को यह पता चला तो उन्हें बहुत ही क्रोध आया ,और माता गोरी ने कहा – ” की अगर मेरा पुत्र जीवित नहीं हुआ ,तो में पुरे भरममाण्ड को खत्मं कर दूगी , और सभी देवता भी उनके पुत्र को जीवित नहीं कर पा रहे थे।

तब माता गौरी ने अपना विकराल रूप धारण कर के सम्पूर्ण भरममाण्ड में हाहकार मचा दिया ,और सब कुछ तहस – नहश होने लगा ,और सम्पूर्ण  भरममाण्ड कांपने लगा माता के क्रोध से सभी देवगण बड़े ही परेशान होकर ,भगवान भोलेनाथ जी के पास आये ,और उनसे कहा -” हे प्रभु माता गौरी को शांत करो। ”

उन्हें उनका पुत्र वापस कर दो अन्यथा कुछ भी शेष नहीं बचेगा , तब भोले नाथ  जी ने कहा – ‘ की ठीक है, में उस बालक का सर तो लगा दूगा, मगर वह शीश तो नस्ट हो गया है ,आप किसी ऐसे बच्चे का सर लाके दे , जिसकी माँ अपने पुत्र से करबट ले के सोई हो [यानि मुँह फेर के ] तब भगवान विष्णु जी ने कुछ देवताओ को सम्पूर्ण  भरममाण्ड में खोजने के लिये भेजा। ‘

तब सभी देवता जगह – जगह ढूंढ़ने लगे, उन्हें कोई भी नहीं मिला फिर अचानक से उन्हें एक हथनी को अपने बच्चे से करबट लेकर सोते देखा और वह उस के बच्चे का सर काट के ले आये ,और भोलेनाथ जी को दे दिया।

तब भोले नाथ जी ने उस हथनी के बच्चे एक सर गणपति जी को लगा दिया, और वह जीवित हो गए ,और सभी सर को झुकाके सभी को प्रणाम किया, और उस बालक का नाम गजान्द पड़ा सभी उनकी जय- जय कार करने लगे। तब माता गौरी ने अपने पुत्र को गले से लगा लिया , और सभी माता और गणेश जी की जय- जय कार  करने लगे।

सबसे पहले क्यों पूजे जाते है गणपति जी ? GANESH JI KI VART KATHA

GANESH JI KI VART KATHA : एक दिन कार्तिक और गणपति जी में आपस में ही बहस होने लगी की हम दोनों में सर्वश्रेठ कौन है ? तब दोनों भाइओ ने ब्रम्हा जी से पूछा – हम दोनों में सर्वश्रेठ कौन है ? पर ब्रह्मा जी उनका उत्तर नहीं दे पाते है,और कहा की – ” भगवान विष्णु जी के पास होगा ,इसका उत्तर तो दोनों भाई विष्णु जी के पास जाते है ,और प्रणाम करके अपने सवाल का उत्तर पूछते है।

पर विष्णु जी ने दोनों भाईओ को ही प्रथम बताया ,पर दोनों भाई  उनके सवाल से सहमत नहीं हो पाते है , तब विष्णु जी ने कहा – भोले नाथ ही देंगे, आपके सवालों का उत्तर चलो उन्ही से पूछते है।

फिर भोले नाथ जी ने दोनों भाइओ से कहा – ” की जो भी इस पुरे भरमाण्ड का चकर लगा के सबसे पहले आयेगा वही सबसे उत्तम कहलाएगा ये बात सुनते ही कार्तिक अपने मोर पर बैठकर उड़ जाते है ,और गणेश जी मन ही मन मुस्काये की में तो मोर के पीछे जा नहीं सकता।

  जगल में ही अपने मूसक पर बैठ के घूम लूगा और अपनी बुद्धि का प्रयोग करके अपने माता – पिता का ही चकर लगा दिया। गणपति जी ने – कहा माता – पिता के चरणों में ही मेरी सारी सृस्टि है।

तब भोले नाथ जी बोले – ” की तुम्हारी दूर तक द्रस्टी है  ,और जब कार्तिक लोट के आते है ,तो देख़ते है ,की मेरे से पहले कैसे गणपति ने पूरा ब्रमाण्ड घूम  आये फिर भोले नाथ जी ने सारी बात कार्तिक को बता दी।

और कहा – ” अपने माता – पिता के चरणों में ही भरमाण्ड होता है , संसार  अब कार्तिक ने भी मान लिया था , गणपति को प्रथम बताया भोले नाथ जी ने गणपति जी को यह वरदान दिया ,की सबसे प्रथम तुम मानें जाओगे और सब देवो में सबसे पहले तुम्हारी पूजा होगी।

 सभी देवो ने गणपति जी की जय  – जय कार करी और इसलिए यह सब देवो में सबसे पहले पूजे जाते  है ,और इनकी पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य पूरा नहीं होता है ,जय हो गणपति बापा की। 

गणपति जी का विवाह GANESH JI KI VART KATHA

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गणपति जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि के साथ कैसे हुआ ?

GANESH JI KI VART KATHA : शास्त्रो के अनुसार गणपति जी की दो पत्निया थी , एक का नाम रिद्धि और सिद्धि एक बार की बात है ,की भगवान भोले नाथ और उनकी पत्नी दोनों कार्तिक और गणपति जी के विवाह की बात कर रहे थे।

तभी वहाँ गणपति जी आ जाते है, और माता – पिता को प्रणाम करके खड़े हो जाते है , तब माता कहती है – ” आओ पुत्र हम तुम्हारी ही बात कर रहे थे ,तब गणपति जी बोले -“वो क्या बात है माता ? माता बोली- ” हम तुम्हरे विवाह की बात कर रहे है ,तब  गणपति जी ने कहा-”  विवाह नहीं करुँगा ? अतः आप मेरे लिए परेशान ना हो।

यह कहकर वह तब के लिए एक जगल में चले जाते है ,और तप करने लगते है, तभी वहाँ एक राजकुमारी आ जाती है, और  वह गणपति जी का एक अजीब सा रूप देख कर उन पर मोहित हो जाती है और उनकी तपस्या भग करने लगती है।

जब गणेश जी की तपस्या भग हो जाती है तब वह उस स्त्री से कहते है की – ” हे स्त्री तुम कौन हो ? और मेरी तपस्या क्यों भग कर रही हो ?  उस स्त्री ने कहा -” हे प्रभु में तुलसी हूँ, और में वर की तलाश में निकली हूँ ,अतः अप्प मुझे अपने लिए योग्य लगे इस्लिये में आप की तपस्या भग कर रही थी।

तब गणेश जी बोले – ” हे स्त्री में तुम से विवाह नहीं कर सकता क्योंकी मेने विवाह ना करे की ठानी है।और में अपने माता – पिता के सेवा करना चाहता हूँ, बस में विवाह के चकर में नहीं पड़ना चाहता हूँ  ,अतः आप अपने लिए कोई और वर देख ले। फिर राजकुमारी तुलसी को क्रोध आ जाता है।

और वह गणेश जी को श्राप दे देती है ,और कहती है – तुमने मेरा अपमान किया है , और आगे जाके तुम दो स्त्रीओ के पति बनोगे और और अपमानित शब्द बोलने लगी  ,  तब गणेश ही को क्रोध आ जाता है।

और गणेश जी बोले – में विग्नहर्ता गणेश तुम्हे श्राप देता हूँ ,की तुम कल्कि युग में एक वृक्ष का रूप लोगी ,और असुर से तुम्हारा विवाह होगा यह श्राप सुनकर वह गणेश जी से माफ़ी मांगती है। और रोने लगती है, तब गणेश जी उसको रोता देख उसे माफ़ कर देते है।

और तुलसी को यह वरदान देते है की तुम काल्कियुग में पूजी जाओगी और श्री विष्णु जी की पूजा तुम्हारे बिना पूरी नहीं होगी। और मेरी पूजा से तुम दूर रहोगी ,और घर -घर मर तुम्हरी पूजा होगी , तुम सब पेड़ो में प्रथम रहोगी।

और वह वहाँ से चली जाती है , कुछ समय बाद गणेश जी को विवाह का मन करने लगता है ,और वह विवाह करना चाहते है ,पर कोई भी देवता गणेश जी का अजीब रूप देखकर अपनी पुत्री देना नहीं चाहता था।

,जब किसी भी देवता का विवाह होता तो गणेश जी  को बड़ा ही क्रोध आता था एक दिन गणेश जी  और  मूसक ने मिलकर एक प्लान बनाया और कहा – जब मेरा विवाह नहीं होता तो में किसी का भी विवाह नहीं होने दूगा।

और जब भी किसी देवता का विवाह होता मूसक वह जाके ,सब कुछ उथल पुथल कर देता था , सभी देवता यह सब देखकर बड़े ही परेशान हो गए ,और सब ने मिलकर ब्रम्हा जी के पास जाने का निर्णय लिया।

और ब्रम्हा जी ने कहा – ” ठीक है में कुछ करता हूँ ,और उन्होंने दो कन्या को बुला लिया एक रिद्धि दूसरी सिद्धि और कहा – ” तुम दोनों गणेश जी के पास मेरे साथ चलो ,और जो में तुम्हे कहु वही काम करना है। और वो तीनो गणेश जी के पास गये ब्रम्हा जी ने कहा – ” यह मेरी पुत्रिया है आप इन्हे ज्ञान दे।

गणेश जी ने दोनों को ही ज्ञान देना शुरू कर दिया ,और जैसे ही किसी का विवाह होता मूसक गणेश जी  के पास आ जाता ,और अपनी बात कहने लगता , वैसे ही रिद्धि और सिद्धि  गणेश जी का ध्यान अपनी और कर लेती थी ,ऐसे ही सभी देवियो का विवाह हो गया।

जब यह बात गणेश जी को पता चली यह बात पता चली ,तो वह क्रोध हुए , तभी वहा ब्रम्हा जी आ जाते है। और श्री गणेश जी  से कहते है ,” की आप मेरी दोनों पुत्रीओ से विवाह कर लो ,यह बात सुनकर गणेश जी  खुश हो जाते है। और बड़े ही धूम – धाम से श्री गणेश जी का विवाह रिद्धि और सिद्धि के साथ हो जाता है।

और कुछ समय गुजर जाने के बाद रिद्धि और सिद्धि के दो पुत्र होते है , रिद्धि का शुभ सिद्धि का लाभ और एक कन्या होती है जिसका नाम संतोषी होता है।

श्री गणेश जी का व्रत GANESH JI KI VART KATHA

GANESH JI KI VART KATHA : श्री गणेश जी का यह पावन व्रत बुधवार को किया जाता है और इस दिन सुबह नहा धोकर सच्चे मन से श्री गणेश जी का व्रत किया जाता है और अपने मन में यह द्रण्ड निस्चय किया जाता है, की हे प्रभु में सच्चे मन से आपके 7 या 11 दिनों तक व्रत करुँगी या करुँगा और इस दिन हरे रग का कपड़ा पहनते है ,और श्री गणेश जी का व्रत कोई भी बड़ा या छोटा स्त्री या पुरष कोई भी कर सकता है ,और अपने मन में श्री गणेश जी का जाप करते रहे।

श्री गणेश जी के व्रत में दिन में चाय और फल खा के व्रत रख सकते है और रात्रि में एक बार भोजन भी कर सकते है ,और पूजा आप अपने घर में या मंदिर में भी कर सकते है।

अगर आप घर में श्री गणेश जी का व्रत कर रहे है तो आप को एक चौकी लेनी होगी और उस पर  लाल रग का वस्त्र बिछा लेना है और उस पर भगवान श्री गणेश जी की एक शुद्ध मूर्ति को स्तापित किया जाता है ,शुद्ध यानि खण्डित मूर्ति ना हो , और गणेश जी को फूल अर्पण किये जाते है, फूल लाल या पीले रग के होने चाहिए , यह गणपति जी को अति प्रिय होते है।

और एक लोटे में गगाजल भरकर रख दे उस लोटे में थोड़ा सा गगाजल भी डाल ले और एक फूल ले के गगाजल में डूबा कर उस स्थान पर छींटे मार के शुद्ध कर ले ,और एक थाली में धूप ,अगरबत्ती ,घी रोली ,कलावा ,चावल ,गुड़ या लाडू प्रसाद के तोर पर ले सकते है।

और गणपति जी को फूल अर्पण करे ,और टिका लगा दे और अपनी इच्छा के अनुसार दान दक्षणा रख दे और दीपक जला के धुप जला के भगवान गणपति जी मन में नाम ले और कथा पढ़े और आरती कहे आप अपने सगे सम्बंदी को भी यह कथा कहे ,और बाद में सभी को प्रसाद दे।

और बाद में खुद ग्रहण करे। और हर बुधवार को इसी तरह व्रत करे और एक साथ दक्षणा किसी भी पंडित को दे दे ,और रात्रि में भोजन ग्रहण करे जय गणपति बापा मोरया।

गणपति जी का उद्यापन विधि GANESH JI KI VART KATHA

GANESH JI KI VART KATHA : श्री गणेश जी का उद्यापन विधि इस प्रकार है जब हमारे व्रत पुरे हो जाए तब आखरी व्रत पर हमें उद्यापन करना होता है उस दिन सवा कपडा हरे रग का ,सवा किलो लड्डू ,सवा किलो मुंग की दाल और दक्षणा सभी को पंडित जी को दे पूरी सारधा के साथ और और गणपति जी से अपनी इच्छा को पूरी करने की आरधना करे हे प्रभु मेने सच्चे मन सेआपके व्रत किये है आप मेरी मनोकाना पूरी करे। जय हो गणेश जी भगवान की। धन्यवाद

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आरती श्री गणेश जी की GANESH JI KI VART KATHA

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा

एक दंत दयावंत,

चार भुजा धारी ।

माथे सिंदूर सोहे,

मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा

पान चढ़े फल चढ़े,

और चढ़े मेवा ।

लड्डुअन का भोग लगे,

संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत,

कोढ़िन को काया ।

बांझन को पुत्र देत,

निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

‘सूर’ श्याम शरण आए,

सफल कीजे सेवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

—– Additional —–

दीनन की लाज रखो,

शंभु सुतकारी ।

कामना को पूर्ण करो,

जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश,

जय गणेश देवा ।

माता जाकी पार्वती,

पिता महादेवा ॥

गणपति जी का महा मन्त्र



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