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रामनवमी (Ram Navami) के त्यौहार पर जाने कैसे पाएं आदि राम को?

वैसे तो दुनिया के हर देश में बहुत तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहां पूरे वर्ष मेले और त्यौहार मनाए जाते हैं। हर त्यौहार का अपना ही महत्व और मान्यता है। हर त्यौहार किसी न किसी तरह से इतिहास से जुड़ा होता है। उनमें से एक है रामनवमी का त्यौहार (Ram Navami in Hindi), जिसकी मान्यता है कि इस दिन भगवान राम जी का जन्म हुआ था। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से। 

कब है रामनवमी का त्यौहार? 

हिंदू पंचांग (Panchang) के अनुसार चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हर साल रामनवमी (Ramnavmi) का त्यौहार मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 21 अप्रैल को मनाया जाना है। मान्यता है कि यह त्यौहार भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम जी के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। 

रामनवमी का इतिहास (History of Ram Navami)

अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थी लेकिन किसी को संतान नहीं थी। राजा दशरथ ने ऋषियों के कहने से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। उसके बाद राजा दशरथ की सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया वहीं कैकेयी ने भरत को, सुमित्रा ने जुड़वा बच्चों लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने राम जी के रूप में जन्म लेकर लंका के राजा रावण का वध करने का फैसला लिया था। 

क्या दशरथ पुत्र राम पूर्ण परमेश्वर है? 

दशरथ पुत्र राम जी ने कई ऐसे चमत्कार किए जिसके कारण लोग उन्हें भगवान कहने लगे लेकिन वास्तव में वे चमत्कार उन्होंने पूर्ण परमात्मा की शक्ति से पूरे किए। जब सीता जी को रावण से आजाद करने के लिए समुद्र पर पुल बनाना था तब वह काम भी पूर्ण परमेश्वर ने ही पूरा कराया। जाने कैसे बना समुद्र पर पुल?

लेकिन यदि ये बात मान भी ली जाए कि समुद्र पर पुल दशरथ पुत्र राम ने बनाया तो इससे उन्हें भगवान नहीं माना जा सकता क्योंकि इन सातों समुद्र को अगस्त ऋषि ने पी लिया था जिससे यह साबित होता है कि वह श्रीराम से अधिक सामर्थ्य रखते थे।

कबीर, समुद्र पाटि लंका गये, सीता को भरतार।

ताहि अगस्त मुनि पीय गयो, इनमें को करतार।।

क्या सच में भगवान माँ के पेट से जन्म लेता है? 

अब आप सोच रहे होंगे क्या परमात्मा का जन्म आम इंसानों की तरह माँ के पेट से होता है? चलिए जानते हैं परमात्मा के जन्म के बारे में। तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ने बताया है कि परमात्मा की तीन प्रकार की स्थिति है। पहली स्थिति में वो ऊपर सतलोक में विराजमान रहता है, दूसरी स्थिति में वो जिंदा महात्मा के रूप अपने भक्तों को मिलता है और तीसरी स्थिति में वो विशेष बालक के रूप में एक तालाब में कमल के पुष्प पर प्रकट होकर धरती पर रहता है और कुंवारी गाय का दूध पीता है।

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वो प्रभु कोई और नहीं बल्कि कबीर साहेब हैं जो चारो युगों में आते हैं प्रमाण के लिए वाणी – 

सतयुग में सतसुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनिन्द्र मेरा।

द्वापर में करूणामय कहलाया, कलियुग में नाम कबीर धराया।।

कौन है वो अविनाशी परमात्मा?

यह तो हम सभी जानते हैं कि जो जन्म लेता है वो मरता भी है लेकिन अगर बात करें परमात्मा की तो वो तो जन्म – मृत्यु से रहित है वो माँ के पेट से जन्म नहीं लेता। अब आप सोच रहे होंगे आखिर कौन है अविनाशी परमात्मा? वैसे तो ऊपर की वाणी से आपको अंदाज़ा लग गया होगा कि कबीर साहेब ही अविनाशी परमात्मा है, लेकिन अब आपके मन में यह प्रश्न होगा इसका क्या प्रमाण है? हम कैसे यकीन करें? तो चलिए जानते हैं। 

गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में स्पष्ट किया है कि वो पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब हैं। नानक साहेब जी ने अपनी वाणी में बताया है कि कबीर परमेश्वर कोई और नहीं बल्कि वही कबीर साहेब हैं जो धानक रूप में काशी में रहते थे।

एक सुआन दुई सुआनी नाल, भलके भौंकही सदा बिआल।

कुड़ छुरा मुठा मुरदार, धाणक रूप रहा करतार।।

इसका प्रमाण श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29.

2. पूर्ण परमात्मा कविर्देव विशेष बालक के रूप में प्रकट होता है। उस परमात्मा का जन्म माँ के गर्भ से नहीं होता। वह बालक रूप में परमात्मा कुंवारी गाय का दूध पीता है l वह अपनी वाणी को सरल भाषा में अपने मुख से लोगों तक पहुंचाता है। 

प्रमाण-: ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र

3. गुरु नानक साहेब ने अपनी अमृत वाणी में कबीर साहेब का संदर्भ बताया है। नानक साहेब ने यह स्पष्ट रूप से लिखा है जो उन्हें जिंदा महात्मा रूप में मिले थे वो कोई ओर नहीं, बल्कि काशी वाले कबीर साहेब थे। नानक साहेब की वाणी में बहुत जगह यह प्रमाण है कि कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा हैं, वो ही इस सृष्टि के रचनहार हैं।

“हक्का कबीर करीम तू, बेएब परवरदीगार।

नानक बुगोयद जनु तुरा, तेरे चाकरां पाखाक

इसी का प्रमाण गुरु गुरुग्रन्थ साहेब पृष्ठ 721 पर अपनी अमृतवाणी महला 1 में है। 

4. कबीर साहेब ही पूर्ण परमात्मा हैं, इसका प्रमाण श्री कुरान शरीफ में भी मिलता है। 

प्रमाण:- पवित्र कुरान शरीफ के सुरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 59 में लिखा है कि कबीर परमात्मा ने छः दिन में सृष्टि की रचना की तथा सातवें दिन तख्त पर जा विराजा। जिससे परमात्मा साकार सिद्ध होता है।

5. पवित्र बाईबल में भी यही प्रमाण है कि उस परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार बनाया। इससे सिद्ध है कि प्रभु भी मनुष्य जैसे शरीर युक्त है उसका नाम कबीर है।

6. आदरणीय दादू साहेब की वाणी में भी यह प्रमाण है जब वह सात वर्ष के थे तो परमात्मा कबीर साहेब उन्हें जिंदा महात्मा के रूप में मिले थे। कबीर जी उन्हें सतलोक लेकर गए और वापिस पृथ्वी पर छोड़ा। 

जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार। 

दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।

7. आदरणीय गरीबदास जी की वाणी में भी कबीर परमेश्वर का प्रमाण है। 

हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया। 

जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।

सच्चे गुरु की क्या आवश्यकता है? 

अब अविनाशी परमात्मा का तो पता चल गया लेकिन कैसे हासिल कर सकते हैं उस सुखदाई परमात्मा को जो सारे संकट हर सकता है। सिर्फ सच्चा संत ही हमें पूर्ण परमात्मा से मिला सकता है क्योंकि गुरु परमात्मा और आत्मा के बीच कड़ी का काम करता है। लेकिन उससे पहले सच्चे गुरु के बारे में जानना जरूरी है, तो चलिए जानते हैं सच्चे गुरु की पहचान क्या है?

श्रीमदभगवत गीता के अध्याय संख्या 15 के श्लोक संख्या 1 से 4 तथा श्लोक संख्या 16 व 17 में प्रमाण है। जो संत उल्टे लटके संसार रूपी वृक्ष के सभी हिस्सों को समझा देगा, वही पूर्ण संत है। कबीर साहेब ने धर्मदास को बताया था कि मेरा संत सतभक्ति बताएगा लेकिन सभी संत व महंत उसके साथ झगड़ा करेंगे। यह सच्चे संत की पहचान होगी। 

जो मम संत सत उपदेश दृढ़ावै (बतावै), वाके संग सभि राड़ बढ़ावै।

या सब संत महंतन की करणी, धर्मदास मैं तो से वर्णी।।

पूर्ण संत का वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ नं. 265 बोध सागर में मिलता है व गीता जी के अध्याय नं. 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या नं. 822 में मिलता है। पूर्ण संत तीन स्थिति में नाम प्रदान करता है। यही उस सच्चे संत की पहचान है। सतगुरु गरीबदास जी ने भी अपनी वाणी में कहा कि वो सच्चा संत चारों वेदों, छः शास्त्रों, अठारह पुराणों आदि सभी ग्रंथों का पूर्ण जानकार होगा अर्थात् उनका सार निकाल कर बताएगा।

”सतगुरु के लक्षण कहूं, मधूरे बैन विनोद। 

चार वेद षट शास्त्रा, कहै अठारा बोध।।“

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