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महाशिवरात्रि 2021: क्या Mahashivratri पर व्रत करने से मुक्ति संभव है?

Mahashivratri Puja in Hindi (महाशिवरात्रि 2021 पूजा): भगवान शिव के भक्तों के लिए, महाशिवरात्रि सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है। लेकिन इसकी पवित्रता के अलावा, आइए हम पवित्र शास्त्र के माध्यम से इसके अनुष्ठानों की प्रामाणिकता को जानते हैं।

जानिए कब है महाशिवरात्रि (Mahashivratri) 2021

हर वर्ष की भांति इस वर्ष महाशिवरात्रि हिंदी पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को तथा अंग्रेजी दिनदर्शिका (कैलेंडर) के अनुसार 11 मार्च (गुरुवार) को है।

महाशिवरात्रि पूजा और मुहूर्त कब है?

इस वर्ष महाशिवरात्रि पूजा (Mahashivratri Puja in Hindi) गुरुवार 11 मार्च शाम 06:27 से 12 मार्च प्रातः 06:34 के बीच चार प्रहर में होगी। भोले भक्त शिवजी को प्रसन्न करने के लिए पूजा में बेलपत्र, धतूरा या भांग चढ़ाते हैं। विधवेश्वर संहिता 5:27-30 के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु के मान को दूर करने के लिए निर्गुण शिव ने तेजोमय स्तंभ से अपने लिंग आकार का स्वरूप दिखाया। इसी शिवलिंग की पूजा अज्ञानवश शिव विवाह पर्व पर शिवरात्रि के रूप में की जाने लगी। इस तरह की पूजा का वर्णन वेदों, श्रीमद भगवद्गीता इत्यादि में कहीं नहीं है।

महाशिवरात्रि क्यों मनाते है?

Mahashivratri Puja in Hindi: अधिकांश समाधिस्थ रहने वाले देव, कामदेव को भस्म करने वाले एवं पार्वती को अमरमन्त्र सुनाने वाले तमोगुण प्रधान शिव जी शिवरात्रि के अवसर पर अनन्य रूप से पूजे जाते हैं। भक्तों द्वारा व्रत रखा जाता है और रात भर जागकर शिवजी की पूजा अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शिवजी का विवाह हुआ था। इस दिन लड़कियाँ शिव जैसा पति पाने की आकांक्षा के साथ व्रत रखती हैं। किंतु वास्तविकता यह है कि वेदों का सार कही जाने वाली श्रीमद्भागवत गीता में व्रतादि के लिए मना किया गया है। शिवलिंग पूजा, मूर्ति पूजा करना गलत शास्त्रविरूद्ध साधना है।

क्या शिव लिंग पूजा और व्रत रखना सही है?

कबीर साहेब कहते हैं-

धरै शिव लिंगा बहु विधि रंगा, गाल बजावैं गहले |
जे लिंग पूजें शिव साहिब मिले, तो पूजो क्यों ना खैले ||

Mahashivratri Puja in Hindi: अर्थात शिवलिंग पूजन से अच्छा तो बैल के लिंग की पूजा करना है जिससे गाय को गर्भ ठहरता है और फिर दूध, दही, घी का निमित्त बनता है। गीता अध्याय 6 श्लोक 16 व 17 में प्रमाण है कि योग न बहुत अधिक खाने वाले का और न बिल्कुल न खाने वाले का, न अधिक सोने वाले का और न बिल्कुल न सोने वाले का सफल होता है। योग केवल यथायोग्य सोने, उठने व जागने वाले का सफल है। हमने देखा कि गीता में व्रत आदि साधनाएं मना हैं साथ ही मूर्तिपूजा भी कहीं वर्णित नहीं है। गीता अध्याय 16 के श्लोक 23 में बताया है कि शास्त्रों में वर्णित विधि से अलग साधना जो करता है वह न सुख, गति और न मोक्ष को प्राप्त होता है।
विचारणीय है कि कौन पूर्ण परमेश्वर है जिसकी शरण मे स्वयं गीता ज्ञानदाता अर्जुन को जाने को अध्याय 18 के श्लोक 62 व 66 में कहता है। शास्त्रानुकूल भक्ति मोक्षदायक है इसके विपरीत मूर्तिपूजा, लिंगपूजा, तीर्थ, व्रत आदि शास्त्रविरुद्ध साधनाएं हैं

भगवान शिव की सही भक्ति विधि क्या है?

पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 7 के श्लोक 12 से 15 में गीता ज्ञान दाता बता रहा है कि जो साधक तीन गुण (रजोगुण ब्रह्मा जी, सत्वगुण विष्णु जी, तमगुण शिवजी) की भक्ति करते है वे राक्षस स्वभाव को धारण करने वाले है और वे सर्व मनुष्यों में नीच प्राणी है। पवित्र गीता जी के इसी विधान अनुसार भस्मागिरी नामक एक शिव भक्त ने 12 वर्षो तक एक पैर पर खड़ा होकर घोर तप किया, परिणाम स्वरूप जगत में एक राक्षस की उपाधि को प्राप्त कर मृत्यु के हवाले हो गया।

पवित्र श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के तीसरे स्कंद में भगवान शिव स्वयं कहते है कि उनका जन्म मृत्यु हुआ करता है और वे अविनाशी नही, भस्मागिरि राक्षस जब भस्म कांडा लेकर भगवान शिव को भस्म करने के लिए प्रयत्नशील होता है तब आगे आगे भगवान और पीछे पीछे पुजारी दौड़ते है, यदि भगवान शिव अविनाशी परमात्मा होते तो वे भस्म होने के डर से अपने ही भक्त से डर कर कभी नहीं भागते, बल्कि कहते वत्स में तो अविनाशी हूं, यह भस्म कड़ा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

यह भी पढ़ें: महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) 2020 पर शिवभक्तों के लिए एक विशेष संदेश 

पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 7 के श्लोक 5 और 6 में बताया गया है कि जो साधक मनमाने घोर तप को तपते है वे शरीर के कमलों में बैठे देवताओं और उस अंतर्यामी परमात्मा को दुखी करने वाले मूढ़ व्यक्ति है। यदि भगवान शिव अंतर्यामी परमात्मा होते तो वे भस्मासुर के मन की वृत्ति को जान लेते कि यह असुर स्वभाव वाला व्यक्ति माता पार्वती से विवाह करने हेतु तप कर रहा है और उसे कभी वरदान नहीं देते।

पवित्र श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय 16 के श्लोक 23 और 24 में बताया है कि जो साधक शास्त्र विधि को त्याग कर मनमाना आचरण करता है, अपनी इच्छा से भक्ति क्रियाओं को करता है उसकी साधना व्यर्थ है। भगवान शिव ने पवित्र अमरनाथ धाम में माता पार्वती जी को तारक मंत्र प्रदान किए थे, जिसे पाने के बाद उनकी आयु भगवान शिव के समान हो गई थी। माता पार्वती जी के 107 जन्म हो चुके थे, देवर्षि नारद जी के ज्ञानुपदेश के बाद उन्होंने भगवान शिव को अपने पति नहीं बल्कि एक गुरु के रूप में धारण किया तत्पश्चात् उन्हें उतना अमृत्व मिला जितना भगवान शिव दे सकते थे।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव वेदों में बताए अपने विधान अनुसार अपनी प्यारी आत्माओं को आकर मिलते है उन्हे तत्वज्ञान का उपदेश कर तारक मंत्र बताते है। भगवान शिव के गुरु स्वयं कबीर परमेश्वर ही है, उन्होंने ही इन 5 या वर्तमान में 7 तारक मंत्रों का आविष्कार किया है तथा गीता अध्याय 17 के श्लोक 23 में बताए गए ॐ तत् सत् मंत्रो का आविष्कार भी उन्होंने ही किया है। वर्तमान समय में केवल जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज ही इन तारक मंत्रो के देने के अधिकारी है व भगवान शिव की सत्य साधना भी केवल संत रामपाल जी महाराज जी के पास ही है।

वास्तविक पूजा क्या है?

परमात्मा कबीर साहेब ने पाखंड पूजा तथा शास्त्रविरूद्ध साधना को त्यागकर पूर्ण सतगुरु से सतनाम लेकर सुमिरण करने को कहा है जिससे पूरा परिवार भवसागर से पार उतरकर सुखसागर को प्राप्त होता है। अतः शिवरात्रि जैसी शास्त्रविरुद्ध साधना से दूर रहकर सतभक्ति करना चाहिए। इसी तरह की सतभक्ति करके नाम जी, दादू जी, धर्मदास जी आदि मोक्ष के अधिकारी बने।

तज पाखंड सतनाम लौ लावै, सोई भवसागर से तरियाँ।
कह कबीर मिले गुरु पूरा, स्यों परिवार उधारियाँ।।

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