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Maharana Pratap Jayanti 2020: वीर महाराणा प्रताप अदम्य साहस की गाथा

आज हम आपको वीर महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की Maharana Pratap Jayanti 2020 (महाराणा प्रताप जयंती) पर उनके बारे में विस्तार से बताएँगे, जैसे Maharana Pratap की death कब तथा कैसे हुई?, Maharana Pratap की Biography (जीवनी) क्या है. हम निम्लिखित बिन्दुओ पर प्रकाश डालेंगे.

  • कौन थे वीर महाराणा प्रताप ?
  • 2020 में कब है महाराणा प्रताप जयंती?
  • महाराणा प्रताप की जीवनी-Maharana Pratap Biography
  • महाराणा प्रताप का शारीरिक व्यक्तित्व
  • महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक
  • महाराणा प्रताप की मृत्यु-Maharana Pratap Death
  • Maharana Pratap Quotes In Hindi
  • वर्तमान समय में कौन है सतगुरु?

कौन थे वीर महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) ?

इतिहास के पन्नों में कई योद्धाओं और वीरांगनाओं की गाथाएँ हमें पढ़ने को मिलती हैं। महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) महान योद्धाओं में से एक थे जो अपने शौर्य, पराक्रम, वीरता और स्वाभिमान के कारण हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों के साथ साथ मेवाड़ में भी अमर हो गए। उनके साहस की कहानियां पढ़कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। महाराणा प्रताप, मेवाड़ के सोलहवीं शताब्दी के एक महान हिंदू शासक थे जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे तथा कभी भी जीवन में हार नहीं मानी। यही कारण है कि इनको वीर महाराणा प्रताप के नाम से भी जाना जाता है।

2020 में कब है महाराणा प्रताप जयंती (Maharana Pratap Jayanti)?

हर साल इस योद्धा को याद करने के लिए इनकी वर्षगांठ मनाई जाती है। इस साल महाराणा प्रताप जयंती 25 मई 2020 को मनाई जाएगी। महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) जैसे वीर योद्धा को इस दिन पूरा देश गर्व से याद करता है, जिन्होंने मुगलों के सामने कभी घुटने नहीं टेके।

महाराणा प्रताप की जीवनी-Maharana Pratap Biography

Maharana Pratap Biography: महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई० को उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा राणा उदय सिंह के यहाँ हुआ। इनकी माता का नाम महाराणी जयवंता बाई था। इनके बचपन का नाम प्रताप था तथा प्यार से इनको “कीका” के नाम से भी पुकारा जाता था। इनके वंशजों में महाराणा की उपाधि प्राप्त करने वाले ये एकमात्र राजा थे।

प्रताप की माता थी इनकी प्रथम गुरु

बहुत सारी प्राथमिक और सांसारिक शिक्षाएं इनको अपनी माता से प्राप्त हुईं जिस कारण इनकी माता को ही इनका प्रथम गुरु कहा जाता है। बचपन से ही महाराणा प्रताप नेतृत्व करने जैसे गुणों से भरपूर थे और अक्सर खेल खेल में अपने साथियों को उनका लक्ष्य समझाकर ये अपने दल का नेतृत्व करते देखे जाते थे। इन सब गुणों से इनके पिता काफी खुश थे तथा इनमें मेवाड़ के अगले उत्तराधिकारी की छवि देखते थे। इसके इलावा प्रताप को तलवारबाज़ी एवं युद्ध विद्या में पारंगत करने के लिए कुशल शिक्षकों की व्यवस्था कराई गई थी। जिसके बाद बहुत कम समय में ही ये एक कुशल योद्धा की तरह निखर कर सामने आए।

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का पारिवारिक संघर्ष

इनकी माता जयवंताबाई के अलावा भी इनके पिता राणा उदय सिंह की कई पत्नियां थीं। इनमें रानी धीरबाई उदय सिंह की सबसे प्रिय पत्नी थी। प्रताप के अन्य तीन सौतेले भाई (जयमाल सिंह, शक्ति सिंह और सागर सिंह) भी थे। इनकी सौतेली माँ धीरबाई उसके बेटे जयमाल सिंह को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी। उसी प्रकार बाकी की रानियों में भी अपने पुत्रों को उत्तराधिकारी बनते देखने की मंशा थी। लेकिन राणा उदय सिंह और मेवाड़ की प्रजा, प्रताप को ही उत्तराधिकारी मानते थे। इस वजह से इनके तीनों सौतेले भाई इनसे घृणा करते थे।

Maharana Pratap Jayanti-महाराणा प्रताप का शारीरिक व्यक्तित्व

  • महाराणा प्रताप की लंबाई साढ़े सात फुट तथा वजन 110 किलो था।
  • महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वज़न भी 80 किलोग्राम ही था।
  • कवच, भाला, ढाल और हाथ में तलवार का वज़न कुल मिलाकर 208 किलोग्राम था जिसे अपने शरीर पर रख कर वह युद्ध लड़ा करते थे।
  • उनके वस्त्र, तलवार, ढाल, भाला और कवच आज भी उदयपुर के राजघराने के संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए हैं।
  • इनके पराक्रम तथा ज़ोर का उस समय इतना बोलबाला था कि इनके ज़ोर के आगे सब घुटने टेक देते थे।

महाराणा प्रताप ने अकबर के मुख्य सेनापति बहलोल खान को हल्दी घाटी के युद्ध के दौरान उसके घोड़े समेत एक ही वार में बीच से काट दिया था। इतना बलशाली, पराक्रमी योद्धा होने के बावजूद महाराणा प्रताप को अंत समय में अनेकों कष्ट झेलने पड़े। मानव जीवन का मूल उद्देश्य जो कि परमात्मा प्राप्ति है उससे वो अनभिज्ञ ही रहे और जीवन में उन्हें कोई सच्चा आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला गुरू न मिला।

आये है सो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।
इक सिंहासन चढ़ी चले, इक बंधे जात जंजीर ।।

Kabir Sahib Ji

भावार्थ कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन ज़रूर जाना है। चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे। मनुष्य जीवन रहते ऐसा गुरू या संत जो पूर्ण परमात्मा की भक्ति विधि से ज्ञान समझा कर‌ मानव जीवन का बोध कराए भक्ति के गुण सीखने चाहिए। परमात्मा को धरती जीतने वाले योद्धा से सतभक्ति करने वाला साधारण मानव अधिक पंसद आता है।

चाहे आज भी महाराणा प्रताप अपने पराक्रम के लिए जाने जाते हैं परंतु उस फौलादी शरीर, मुख,शोभा और शौर्य का कोई फायदा नहीं अर्थात सब व्यर्थ है जब तक पूर्ण संत से नाम दीक्षा लेकर पूर्ण परमात्मा की भक्ति ना की‌ जाए।

मेवाड़ रियासत के 54वें शासक बने महाराणा प्रताप

अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम इच्छा मानकर प्रताप ने अपने सौतेले भाई जगमाल को मेवाड़ का राजा बना दिया। लेकिन मेवाड़ के विश्वासपात्र चुनाड़ावत ने मेवाड़ का भविष्य खतरे में देखा और जगमाल का विरोध करा के उसे गद्दी से हटा दिया। इसके पश्चात 28 फरवरी 1567 ई० को 27 वर्ष की उम्र में प्रताप ने 54वें शासक के तौर पर महाराणा की उपाधि के साथ मेवाड़ की राजगद्दी संभाली।

घर‌ का‌ भेदी लंका ढाए

उस समय दिल्ली की गद्दी पर अकबर बैठा था और वह लगभग पूरे हिदुस्तान को अपने अधीन कर चुका था। बड़े बड़े राजा महाराजाओं ने अकबर के आगे घुटने टेक कर उसकी आधीनता स्वीकार कर ली थी। प्रताप के गद्दी पर बैठते ही इनके सौतेले भाई ने अपने अपमान का बदला लेने हेतु अकबर को जाकर मेवाड़ का भेद बता दिया जिसके बदले अकबर ने जगमाल को जहाजपुर का जागीर दे दिया। जगमाल से मेवाड़ का भेद लेकर उसी समय अकबर ने अपनी एक भारी सेना भेज चितौड़ को चारों तरफ से घेर लिया और महाराणा के सौतेले भाई की गद्दारी के परिणामस्वरूप हल्दी घाटी का युद्ध हुआ।

Maharana Pratap Jayanti 2020-हल्दी घाटी का युद्ध

हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 को लगभग 4 घंटों के लिए लड़ा गया जिसमें बहुत सारे सैनिकों का रक्तपात हुआ, जिससे बारिश के बाद खून की नदियाँ हल्दी घाटी मैदान से बह निकलीं। अकबर की कुल सेना के मुकाबले महाराणा प्रताप के पास कम केवल 5000-10,000 सेना थी जिसका नेतृत्व एकमात्र मुस्लिम सेनापति हा़किम खान सूरी कर रहा था।

Maharana Pratap Jayanti 2020: लेकिन फिर भी महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी तथा अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने साहस का परिचय देते हुए पूरी वीरता और अपनी सेना के साथ अकबर के सैन्यदल का सामना किया। ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा की हार हुई। जहां मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति थी।

महाराणा प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक (Chetak)

इस पूरे युद्ध के दौरान तथा अंत तक महाराणा प्रताप का चहेता घोड़ा चेतक उनके साथ था। महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक (Chetak) भी काफ़ी बहादुर था। चेतक नीले वर्ण का अरबी मूल का घोड़ा था जो महाराणा प्रताप को अत्यधिक प्रिय था। हल्दी घाटी के युद्ध के दौरान चेतक ने अपनी पूरी स्वामीभक्ति दिखाई।

Maharana Pratap Jayanti 2020: युद्ध के दौरान हाथी के सूंड में लगे तलवार से चेतक का पिछला पैर बुरी तरह से कट गया था परन्तु फिर भी वो तेज़ गति से दौड़ता रहा और मुगल सेना उनके पीछे कुछ दूरी पर ही थी तभी रास्ते में एक 26 फुट की खाई आ गयी जिसे चेतक ने थोड़ा पीछे होकर पूरे बल के साथ एक लंबी छलांग लगाकर पार कर लिया। इससे चेतक के पैर का कटा हुआ भाग उसके पैर से अलग हो गया और वह खाई पार करने के बाद लड़खड़ा कर गिर गया तथा उसके प्राण पखेरू उड़ गए।

यह भी पढें: बुद्ध पूर्णिमा 2020-क्या था महात्मा बुद्ध के गृहत्याग का कारण? 

मुग़ल सेना खाई पार नहीं कर सकी और वापस लौट गई। महाराणा प्रताप जैसा वीर योद्धा बड़ी से बड़ी समस्या आने पर भी कभी नहीं रोया था लेकिन चेतक की मृत्यु के बाद वो खुद को सम्भाल ना सका और चेतक का सिर अपने गोद में रखकर बहुत देर तक रोता रहा। अभी तक ये एकमात्र घोड़ा है जिसका हल्दी घाटी में आज भी एक मंदिर बना हुआ है। वहाँ के लोगों द्वारा उसकी पूजा की जाती है।

सीधे ऊँगली घी जमो, कबसू निकसे नाही ।।

कबीर जी कहते हैं कि परिश्रम से ही परिणाम तक पहुंचना सम्भव होता है, जिस प्रकार जमे हुए घी को सीधी ऊँगली से निकालना असम्भव है ठीक वैसे ही बिना परिश्रम किये किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करना सम्भव नहीं है ।

उपरोक्त्त विवरण से एक बात तो साफ है कि आज भी लोग सच को झुठलाकर मनमाना आचरण अपनाए हुए हैं क्योंकि पूजा के योग्य तो केवल पूर्ण परमात्मा हैं। परंतु आज के तकनीकी युग में भी लोग पशु पक्षियों की साधना में फंसे हुए हैं जिनकी पूजा और धूप बत्ती करने से उन्हें कोई लाभ नहीं मिल सकता। न जीवन रहते और‌ न ही मृत्योपरांत।

महाराणा प्रताप अपने घोड़े चेतक से बच्चों जैसा प्यार करते थे। हमारे अपने परिवार या अन्य के साथ अपने पिछले कर्मों के आधार पर रिश्ते बनते हैं जो कभी भी हमें छोड़कर चले जाते हैं। इसका वर्णन कबीर साहेब ने किया है :

इक लेवा एक देवा दूतम,
कोई किसी का पिता ना पूतम,
ऋण संबंध जुड़े सब ठाठा,
अंत समय फिर बारां बाठा।।

kabir Sahib JI

मनुष्य जीवन में जुड़े और मिले सभी संबंध संस्कारों के कारण होते हैं। इनका निर्वाह कर्त्तव्य मानकर करना चाहिए और अटूट प्रेम केवल एक ईश्वर से करना चाहिए। जो सभी सुखों का दाता है।

Maharana Pratap Jayanti 2020-युद्ध के उपरांत महाराणा प्रताप का जीवन

युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने अरावली की पहाड़ियों में मायरा नामक गुफा में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बहुत ही कष्टदायक जीवन व्यतीत किया। जहाँ उनको घास की रोटियाँ तक खानी पड़ीं, पैरों में जूते नहीं थे, जमीन पर सोना पड़ा, पेड़ के पत्तों पर कच्चा भोजन करते थे। बदलाव तब आया जब वहाँ के जंगलों में निवास करने वाले भीलों से दोस्ती करके राणा ने उनका ऐसा विश्वास जीता। दोस्ती और‌ विश्वास के दम पर भील भी महाराणा प्रताप के लिए अपनी गर्दन तक कटाने को तैयार हो गए।

Credit: News18 Rajasthan

Maharana Pratap Jayanti 2020: दानवीर भामाशाह ( बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे) ने पूरा खज़ाना महाराणा प्रताप को समर्पित कर दिया, लेकिन सैन्य सहायता के अलावा महाराणा ने उस खजाने की एक पाई भी लेने से इन्कार कर दिया।

प्रताप जंगल में सेना बना कर‌ रहे

ये जंगलों में अपनी सेना बनाकर रहे, बार बार किसी ना किसी हमले से अकबर की नाक में दम करते रहे। अकबर महाराणा प्रताप के स्वाभिमान से इतना आहत था कि एक बार उसने पूरे हिंदुस्तान का आधा भाग का प्रस्ताव देकर महाराणा प्रताप से पराधीनता स्वीकार करने के लिए संदेशा भिजवाया, लेकिन उसका ये प्रस्ताव भी महाराणा ने ठुकरा दिया। मरते दम तक ये अपनी मातृभूमि के लिए संघर्ष करते रहे और अपने जीते जी उसे कभी पराधीन नहीं होने दिया।

महाराणा प्रताप की मृत्यु-Maharana Pratap Death

महाराणा प्रताप की मृत्यु एक हिंसक जानवर का शिकार करने के दौरान हुई। उस जानवर के प्रहार से राणा को गहरी चोटे आईं । गहरे ज़ख्म होने के कारण 19 जनवरी 1597 को चावंड नामक स्थान पर महाराणा की मृत्यु हुई। ऐसा कहा जाता है कि इनकी मृत्यु की खबर सुनकर अकबर भी रोने लगा था।

भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप का नाम वीरता और दृढ़ प्रण के लिए जाना जाता है, परंतु जब तक हम पूर्ण संत से नाम दीक्षा लेकर भक्ति नहीं करते तब तक आवागमन (बार बार कर्म आधार पर जन्म लेना और मृत्यु को प्राप्त होना) के चक्कर में फंसे रहते हैं। जन्म मृत्यु के चक्र से देवी देवता भी अछूते नहीं हैं।

गरीबदास जी महाराज ने सदग्रन्थ साहिब के पृष्ठ संख्या 690 पर कर्म आधार पर जन्म होने का उल्लेख किया है:-

यो हरहट का कुआं लोई,
या गल बंध्या है सब कोई।
कीड़ी कुजंर और अवतारा,
हरहट डोरी बंधे कई बारा।
अरब अलील इन्द्र हैं भाई,
हरहट डोरी बंधे सब आई।।
शेष महेश गणेश्वर ताहिं,
हरहट डोरी बंधे सब आहिं।
शुक्रादिक ब्रह्मादिक देवा,
हरहट डोरी बंधे सब खेवा।
चतुर्भुजी भगवान कहावैं,
हरहट डोरी बंधे सब आवैं।।

संत गरीबदास जी महाराज

महाराणा प्रताप एक साहसी, सच्चे, कर्मठ योद्धा थे, लेकिन सच्चा सतगुरु ना मिलने से वह अपने अनमोल मानव जीवन का मूल उद्देश्य पूरा नहीं कर सके जो कि सिर्फ मोक्ष प्राप्ति है।

लख बर सूरा जूझ ही लख बर सावत देह।
लख बर यती जहान में तब सतगुरु शरना लेह।।

कबीर साहेब जी

यानी जब कोई लाखो बार शूरवीर की तरह जन्म जिए, लाखो जन्मों में उसकी घुटनों तक बाजु हुई हो, लाखो बार उसने यति का जीवन जिया हो तब जाकर सतगुरु उसे आत्मा को अपनी शरण देते है। इसलिए कबीर साहेब कहते है कि

सतगुरु मिला तो सब मिले, ना तो मिला न कोय ।
मात पिता सूत बान्धवा, यह तो घर घर होय ।।

अर्थात जिसने एक सच्चा गुरु पा लिया, उसने मानो सारा संसार पा लिया। माता, पिता, बच्चे और दोस्त तो सभी के जीवन में होते हैं, लेकिन सच्चे गुरु का भाग्य सबको नहीं मिलता ।

सतगुरु मिलै तो इच्छा मिटैं, पद मिल पदै समाना।
चल हंसा उस लोक पठाउं, जो आदि अमर अस्थाना।।

सतगुरू मिलने के बाद पृथ्वी जीतने, सांसारिक सुख भोगने, राजपाट की आस ,कोठी,बंगले,धन, संपत्ति,जीत हार , अधिक बालक की कामना नहीं रहती। केवल परमात्मा प्राप्ति, आध्यात्मिक ज्ञान की जानकारी और मोक्ष प्राप्त करना उद्देश्य रहता है। सतगुरू मिलने के बाद जीवन व्यर



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