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Ahoi Ashtami Vrat Katha In Hindi (होई आठे की कहानी)

Ahoi Ashtami Vrat Katha In Hindi (होई आठे की कहानी) – अहोई अष्टमी का व्रत (Ahoi Ashtami Ka Vrat) कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। अपने अपने पुत्रों की दीर्घायु और उनकी सुख समृद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है। अहोई अष्टमी के व्रत के दिन पुत्रवती माताएं दिन भर व्रत रखती हैं और शाम के समय जब तारे निकल जाते हैं होई माता की पूजा की जाती है। इस व्रत को होई आठे (Hoi Aathe) का व्रत भी कहा जाता है। इस दिन तारों को करवे से अर्ध्य दिया जाता है। होई को गेरू द्वारा दीवार पर काढ़ा जाता है और होई माता की पूजा की जाती है।

Ahoi Ashtami Vrat Katha

Ahoi Ashtami Vrat 2019 date 21 October, 2019 (Monday)
अहोई अष्टमी अन्य नाम होई आठे (Hoi Aathe)

होई की चित्रकारी में आठ कोष्ठकों की एक पुतली होती है। इसी के साथ मे ही साही तथा इसके बच्चों की चित्रकारी भी होती है। करवा चौथ के व्रत के ठीक 4 दिन बाद ही अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत (Ahoi Ashtami ka Vrat) किया जाता है। होई माता की पूजा और अष्टमी के दिन के कारण इसे अहोई अष्टमी कहा जाता है।

अहोई अष्टमी की पूजा कैसे करें? (Ahoi Ashtami Vrat Puja Vidhi)

  • प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
  • इस दिन माता पार्वती की पूजा की जाती है।
  • अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाए और साथ ही साही और उसके सात पुत्रों का चित्र भी बनायें।
  • चित्र के सामने एक कटोरी मे चावल, सिंघाड़े और मूली रखते हैं।
  • दीपक जलाकर अहोई माता की कहानी (Ahoi Mata Ki Kahani/Ahoi Ashtam Vrat Katha) कहते हैं।
  • होई आठे की कहानी (Ahoi Ashtami Vrat Katha) कहते समय हाथ में थोड़े से चावल लेते हैं और उसे साड़ी के पल्ले मे बाँध लेते हैं।
  • सुबह के समय पूजा में करवा चौथ का करवा एक जल से भरे लोटे के ऊपर रखा जाता है और ये करवा लोटे के उपर रखते हैं साथ ही इसमे भी जल भरते हैं।
  • इस करवे का पानी छोटी और बड़ी दिवाली के दिन घर में छिड़कते हैं।
  • शाम के समय की पूजा में पक्के खाने का भोग अहोई माता (Ahoi Mata) को लगाया जाता है जिसमें 14 पूड़ी और 8 पूए होते हैं।
  • 14 पूड़ी, मठरी या काजू का बायना निकाला जाता है।
  • शाम को तारे निकलने के बाद चावल और लोटे के जल से तारों को अर्ध्य दिया जाता है।
  • सिंघाड़े, मूली और पक्का खाना सामने रखकर दीपक जलाकर पूजन करे और पूजा के बाद यह सारा सामान किसी ब्राह्मण को दे दें।
  • पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं। पूजा के पश्चात सासु मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करें।

अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha)

एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके 7 बेटे, बहुएं और एक बेटी थी। कार्तिक के महीने में दीवाली से पहले अष्टमी को अपने मकान की लिपाई पुताई करने के लिए सातों बहुएं अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में जाकर खदान में मिट्टी खोद रही थी।

वहां पर स्याहू की मांद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से कुदाल स्याहू के बच्चे को लग गई। और वह तुरन्त मर गया। इससे स्याहू माता बहुत नाराज हो गई और बोली कि मैं तेरी कोख बांधूगी।


ननद अपनी सातो भाभियों से बोली कि तुममें से कोई अपनी कोख बंधवा लो। तब छः भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से मना कर दिया लेकिन छोटी भाभी सोचने लगी कि यदि मैंने भी अपनी कोख नहीं बंधवाई तो सासू जी नाराज होंगी।

यह सोचकर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवा ली। इसके बाद छोटी बहू के जो बच्चा होता वह 7 दिन का होकर मर जाता। एक दिन उसने पंडित जी को बुलाकर पूछा कि मेरी सन्तान सातवें दिन मर जाती है इसके लिए मैं क्या करूं?

तब पंडित जी ने कहा कि तुम सुरही गाय की सेवा करो। सुरही गाय स्याहू माता की भाएली है। वह तेरी कोख खुलवा देगी। तब ही तेरा बच्चा जियेगा। अब वह बहुत जल्दी उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे साफ सफाई कर आती।

गाय एक पैर से लंगड़ी थी। गौ माता बोली कि हर रोज उठकर कौन मेरी सेवा कर रहा है, मैं आज देखूंगी। गौ माता खूब सवेरे उठी तो क्या देखती है कि साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे साफ सफाई कर रही है। गौ माता बहु से बोली कि क्या मांगती है?

साहूकार की बहू बोली कि स्याहू माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बाँध रखी है, तुम मेरी कोख खुलवा दो। गौ माता ने कहा – अच्छा। गौ माता साहूकार की बहू को अपनी भाएली के पास लेकर चली।

रास्ते में कड़ी धूप थी। वे दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गयी। थोड़ी देर में एक साँप आया। उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी के बच्चे को डसने लगा। साहूकार की बहू ने साँप ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चे को बचा लिया।


थोड़ी देर में पंखनी वहां आयी तो वहां खून देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी। साहूकार की बहू ने कहा कि मैंने तो तेरे बच्चे को नहीं मारा, बल्कि साँप तेरे बच्चे को मारने आया था मैंने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है।

यह सुनकर गरुड़ पंखनी बोली कि मांग, तू क्या मांगती है? वह बोली 7 समुद पार स्याहू माता रहती है हमे तुम उसके पास पहुंचा दो। गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याहू माता के पास पहुंचा दिया।

स्याहू माता उनको देखकर बोली कि, आ बहन आ, बहुत दिनों में आयी है। बाते करते समय स्याहू माता ने बीच में कहा कि बहन मेरे सिर में जुए पड़ गई हैं। सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने उसके सिर की सारी जुए निकाल दी।

इस पर स्याहू माता ने प्रसन्न होकर कहा तूने मेरे सिर में बहुत सलाई फेरी है इसलिए 7 बेटे और 7 बहू होंगी। वह बोली मेरे तो एक भी बेटा नहीं सात बेटे कहां से होंगे? साहू माता बोली वचन दिया है। वचन से फिरूँ तो धोबी की कुंड पर कंकड़ी होऊँ।

साहूकार की बहू बोली कि मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी है। यह सुन स्याहू माता बोली कि तूने तो मुझे ठग लिया। मैं तेरी कोख खोलती तो नहीं थी पर अब खोलनी पड़ेगी। जा, तेरे घर पर तुझे 7 बेटे 7 बहुएं मिलेगी। तू जाकर 7 उद्यापन करियो, 7 होई बनाकर 7 कड़ाही करियो।

वह लौटकर घर आयी तो वहां देखा कि सात बेटे और सात बहुएं बैठी है। उसने सात होई बनाई, सात उद्यापन किए, सात कड़ाही करी। शाम के समय जेठानियां आपस में कहने लगी कि जल्दी जल्दी धोक पूजा कर लो। कहीं छोटी बच्चों को याद करके रोने लगे।

थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा अपनी चाची के घर जाकर देखकर आओ कि आज वह अभी तक रोई क्यों नहीं? बच्चों ने आकर कहा कि चाची तो होई बना रही है। खूब उद्यापन हो रहा है यह सुनते ही जेठानियां दौड़ी दौड़ी वहां आयी और आकार कहने लगीं कि तूने कोख कैसे खुलवाई?


उसने कहा तुमने तो कोख बंधवाई नहीं थी सो मैंने कोख बंधवा ली थी। परन्तु अब स्याहू माता ने दया करके मेरी कोख खोल दी है। हे स्याहू माता! जैसे साहूकार के बेटे की बहू की कोख खोली वैसे ही हमारी और सब परिवार की बहुओं की कोख खोलती जाना। अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Ashtami Vrat Katha) कहता की, सुनता की, हुंकार भरता की। इसके बाद विनायक जी की कहानी (Vinayak Ji Ki Kahani) भी कह सुन लेते हैं।

बिन्दायक जी की कहानी (Bindayak Ji Ki Kahani)

एक बार बिन्दायक जी महाराज एक चुटकी में चावल और एक मे दूध लेकर घूम रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दे। एक बुढ़िया माई बोली कि ला मैं खीर बना दूं। वह एक कटोरी ले आयी। तब बिन्दायक जी बोले कि बुढ़िया माई कटोरी क्यों लायी है? भगोना लाकर चढ़ा दे।

तब बुढ़िया माई बोली कि इतने बड़े भगोने का क्या करेगा, कटोरी ही बहुत है। बिन्दायक जी ने कहा कि तू चढ़ाकर तो देख। बुढ़िया माई ने भगोना चढ़ा दिया और चढ़ाते ही दूध से भर गया। फिर बिन्दायक जी ने कहा मैं बाहर जाकर आता हूं तू खीर बनाकर रखियो।

खीर बनकर तैयार हो गई। परन्तु बिन्दायक जी महाराज नहीं आए तो बुढ़िया माई का मन ललचा गया और वह दरवाजा बंद करके खीर खाने लगी। और बोली कि बिन्दायक जी महाराज भोग लगाओ और खीर खाने लगी।

इतने मे विंदायक जी आए और बोले, बुढ़िया माई खीर बना ली? बुढ़िया बोली, हां आकर जीम लो। बिन्दायक जी बोले मैंने तो जीम लिया। जब तू जीमने लगी तभी मैंने भोग लिया था।

तब बुढ़िया माई बोली कि तुमने तो मेरा पर्दा हटा दिया परंतु किसी और का पर्दा मत हटाना। तब बिन्दायक जी महाराज ने खूब धन दौलत भर दिया। हे बिन्दायक जी महाराज जैसा बुढ़िया माई को दिया वैसा कहते सुनते सब परिवार को देना।

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रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha In Hindi)

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