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करगिल विजय दिवस : क्या कारण था कि आखिर भारत को भी युद्ध की घोषणा करनी ही पड़ी !

New Delhi : आज ही के दिन 1999 में भारत के रणबांकुरों ने पाकिस्तानी सैनिकों को करगिल की 1800 फीट उंचाई की चोटियों से खदेड़ कर विजय प्राप्त की थी। इतिहास में ये दिन करगिल विजय दिवस के रूप में जाना जाता है। आज इस विजय को 21 साल पूरे हो गए हैं। इस विजय के पीछे सैकड़ों भारतीय सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी। भारतीय जवानों का ये हौसला देखकर दुश्मन पीठ दिखाकर भागने को मजबूर हो गया था। लगातार 60 दिनों तक चले इस युद्ध को जीतना आसान नहीं था लेकिन इस युद्ध के पीछे आखिर पाकिस्तान की क्या चाल थी जिसके बाद युद्ध अनिवार्य हो गया।

करगिल जो एक पहा़ड़ी इलाका है 1999 में यही युद्ध मैदान में बदल गया था। जिसके बाद करगिल को दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में शुमार किया गया। ये युद्ध 1800 फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया। युद्ध की जड़ें भारत पाकिस्तान के बीच लाहौर समझौते में मिलती हैं। बात शुरू होती है फरवरी 1999 में जब दोनों देश सीमा पर बढ़ रहे लगातार गतिरोध के चलते परमाणु परीक्षण भी कर चुके थे। लेकिन इस तनावपूर्ण स्थिति को शांत करने के लिए देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्थिति सुधारने के प्रयास में पाकिस्तान गए। जहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उनका भव्य स्वागत किया। इसके बाद दोनों देशों ने लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये और संबंध बेहतर बनाने का निर्णय किया।
इस समझौते के तहत दोनों देशों की सीमाओं पर गतिरोध कम करने की बात की गई थी। लेकिन पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ को यह रास नहीं आया। समझौते के कुछ ही दिनों बाद सीमा पर फिर से गतिरोध की स्थिति बनने लगी। मुशर्रफ के आदेश पर पाकिस्तानी सैनिक और अर्धसैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजा गाय। पाक सेना ने इस पूरी घुसपैठ को ‘ऑपरेशन बद्र’ का नाम दिया और उसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था।
मुशर्रफ की इस करतूत की भनक पाक वायुसेना प्रमुख और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री तक को नहीं लगी। भारतीय सेना को जैसे ही पाकिस्तान की सुनियोजित साजिश का पता चला भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ का ऐलान कर दिया। ये अधिकारिक रूप से युद्ध की घोषणा थी जिसके बाद भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाली जगहों पर हमला किया और पाकिस्तानी सेना को भारतीय चोटियों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया। हालांकि इस दौरान भारतीय सेना के 500 से ज्यादा जवान शहीद हुए। आखिरकार 26 जुलाई को वह दिन आया जिस दिन सेना ने इस ऑपरेशन का पूरा कर लिया।

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