Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

कान्हा के वात्सल्य और श्रृंगार का ऐसा सजीव वर्णन सिर्फ सूरदास ही कर सकते थे

New Delhi : भक्ति काल के कृष्ण भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का स्थान सर्वोपरि है। वे कृष्ण के अनन्य उपासक थे। “मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे कहनेवाले” सुर भगवान् कृष्ण के प्रति पूर्णतः समर्पित थे। सुरसागर में कृष्ण की महिमा में उन्होंने करीब दस हजार दोहों कि रचना की है। कहा जाता है कि सुर जन्मांध थे फिर भी वात्सल्य और श्रृंगार का ऐसा सजीव वर्णन उन्होंने किया है कि अनेक विद्वान तो उन्हें जन्मान्ध मानने को भी तैयार नहीं हैं। सुर की काव्यगत विशिष्टता को देखते हुए डॉ रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है “सूरदास श्रृंगार और वियोग दोनों क्षेत्रों का कोना-कोना झांक आये हैं।” सूरदास ने श्रीकृष्ण की कथा तो श्रीमद्भभाग्वत से ही ली है किन्तु अनेक नवीन प्रसंगों की झलक से चारुता लाने का जो प्रयास उन्होंने किया है वह अद्वितीय है।
बालपन में कृष्ण की चंचलताओं के बहाने विभिन्न असुरों तथा भक्तों के उद्धार की कथा तो श्रीमद्भागवत में भी है लेकिन “मैया मोरी में नहीं माखन खायो या मैया हों न चरिहों गाये” की चारुता तो सुर की अपनी मौलिक देन है। बालकों के आपसी विवाद से उत्पन्न आक्रोश निम्न पंक्तियों में द्रष्टव्य है- खेलत मैं काको गुसैयां, हरि हारे जीते श्रीदामा बरबस ही कत करत रिसैयाँ। सूरदास के वात्सल्य की यह विशेषता है कि इसका भी वर्णन उन्होंने सर्वांगपूर्णता से किया है। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता की प्रतिक्रियाओं का भी वर्णन सुर ने बहुत सुन्दर किया है। सूत मुख देखि जसोदा फूली, हर्षित देखि दुधि की दंतिया, प्रेम मगन तन की सुधि भूली। बाल कृष्ण के मनमोहक सूरत पर रिझती माता यशोदा को उन्होंने एक सामान्य माता के रूप में चित्रित किया है। यही नहीं जसोदा हरि पालन झुलावै,हलरावै दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै । पुत्र प्रेम में यशोदा इतनी स्वार्थी हो गयी है कि देवकी से कृष्ण का रिश्ता जानते हुए भी अपनी सहज मातृत्व को रोक नहीं पाती है और कहती हैं “संदेशों देवकी सो कहियो, हौं तो धाय तिहारे सुत की,कृपा करति ही रहियो। श्रृंगार के क्षेत्र में भी सुर ने संयोग और वियोग दोनों प्रसंगों का स्वाभाविक चित्रण किया है। कृष्ण की किशोरावस्था से लेकर युवावस्था तक ब्रज की गोपियों के साथ क्रीडाओं का जितना सुन्दर प्रस्तुतिकरण उन्होंने किया है उतना न तो उनके पूर्ववर्ती या बाद के कवियों ने किया है।

The post कान्हा के वात्सल्य और श्रृंगार का ऐसा सजीव वर्णन सिर्फ सूरदास ही कर सकते थे appeared first on Live India.

Share the post

कान्हा के वात्सल्य और श्रृंगार का ऐसा सजीव वर्णन सिर्फ सूरदास ही कर सकते थे

×

Subscribe to विराट कोहली ने शहीदों के नाम की जीत

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×