New Delhi : अभी बप्पा को सब बाय-बाय बोलकर इमोशनल हुए ही थे कि नवरात्रों ने दस्तक दे खुशियां वापिस लौटा दी । 29 सितंबर से शुरू होने वाले नवरात्रों का क्रेज भक्तजनों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। कोलकाता हो या गुजरात भारत के हर कोने में नवरात्रों की अलग ही धूम देखने को मिलती है। इसी धूम धड़ाके के लिए मशहूर है बिहार का भागलपुर।
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भागलपुर की डयूढ़ी में तीन सौ वर्षों से अधिक समय से मां की पूजा की जा रही है। यहां आज भी मेढ़ चढ़ाने की परंपरा है। यहां लगभग एक महीने तक मेला लगता है।
भागलपुर का महाशय परिवार ये सारी पूजा संपन्न करवाता है। 1604 में इनका परिवार भागलपुर आया था। यहां पर पहली बार पूजा श्री राम घोष ने शुरू की थी। आज भी उनका परिवार बिना चंदा लिए पूजा संपन्न करवाता है।
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परिवार से जुड़े शेखर घोष का कहना है कि यहां की जाने वाली पूजा बंगाली पद्धति से होती है। 1975 तक बंगाल के कारीगर हारू दा की टीम मूर्ति और पंडाल की सजावट का ध्यान रखते थे। उनके निधन के बाद से पारो कारीगर मूर्ति का निर्माण करने लगे हैं।
1952 में जमींदारी प्रथा के खत्म हो जाने के बाद मां की पूजा में बहुत बदलाव आ गया। शेखर घोष कहते हैं भागलपुर के लोगों को दुर्गा पूजा का हमेशा इंतजार रहता था। पूजा के दौरान कई लोगों की जिंदगी बदल जाती थी। पहली से लेकर दशमी तक की पूजा में कंगली भोज का आयोजन होता था। साथ ही महाशय परिवार गरीबों के बीच अनाज और भूमि दान में देते थे। सूफी संतों का जमावड़ा लग जाया करता था। मगर अब सब बदल गया है।
पहले आतिशबाजी देखने के लिए यहां लोग दूर दूर से आते थे लेकिन अब न सूफी संतों का कार्यक्रम होता है न आतिशबाजी और न ही कंगली भोज।
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