New Delhi: प्रयागराज (Prayagraj Kumbh 2019) के संगम तट पर स्थित अक्षय वट को आम लोगों के दर्शन की इजाजत को लेकर लंबे समय से मांग उठाई जा रही थी।
श्रद्धालुओं की इस मांग को आखिरकार मानते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे कुंभ में आने वाले तीर्थयात्रियों को अमूल्य उपहार दिया है। प्रयागराज (Prayagraj Kumbh 2019) में संगम तट पर स्थित अकबर के किले के अंदर पौराणिक अक्षयवट वृक्ष का संबंध सृष्टि की रचना से जुड़ा माना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी पर प्रलय के दौरान जब सब कुछ जलमग्न हो जाता है, उस दौरान अक्षय वट वृक्ष कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। कहते हैं कि इसी अक्षय वट के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय शब्द का अर्थ ही होता है, जिसका कभी क्षय ना हो। जबकि वट का अर्थ होता है बरगद। इसे मनोरथ और मोक्षदायक वृक्ष भी कहा गया है।
मान्यता है कि सृष्टि की रचना को सुरक्षित रखने के लिए भगवान ब्रह्मा जी ने किले के प्रांगण में स्थित पातालपुरी मंदिर में बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में पुरोहित के रूप में भगवान विष्णु, यजमान के रूप में भगवान शिव शामिल हुए थे। यज्ञ के पश्चात् इन तीनों देवताओं की शक्ति पुंज से एक वृक्ष उत्पन्न हुआ, जिसे अक्षय वट कहते हैं।
संगम तट पर स्थित इस अक्षय वट वृक्ष के बारे में सबसे पहले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 644 ई में वर्णन किया है। पौराणिक व वर्तमान इतिहासकारों के अनुसार एक समय किले में स्थित इसी वट वृक्ष जिसे अक्षयवट कहा जाता है, पर चढ़ कर मोक्ष की कामना व पाप से मुक्ति के लिए यमुना नदी में कूद कर आत्महत्या करते थे। जिस परंपरा पर अकबर ने बाद में रोक लगा दी थी।
बहरहाल, मोदी सरकार द्वारा आम जनता के लिए अक्षय वट के दर्शन की इजाजत मिलने के बाद अब असली-नकली अक्षय वट को लेकर सवाल पैदा हो गया है। कुछ लोग किले के भीतर सेना के अधीन वट वृक्ष को ही असली अक्षय वट मानते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि पातालपुरी मंदिर स्थित वट वृक्ष की शाखा ही असली अक्षयवट है, जिसके दर्शन अभी तक वे करते आए हैं।
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