New Delhi: आपने भोलेनाथ की हर तस्वीर में देखा होगा कि उनकी जटाओं से मां गंगा निकल रहीं हैं। लेकिन क्या आप इस बाद को जानते हैं कि इसके पीछे क्या रहस्य है।
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दरअसल वेद-पुराणों में बताए गए पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी पर गंगा नदी का आगमन राजा सगर भागीरथ की कठोर तपस्या से हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि सूर्यवंशी राजा सगर भगवान राम के पूर्वज थे।
एक समय की बात है जब राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ कराया, इस यज्ञ में एक घोड़े को भ्रमण के लिए अलग-अलग राज्यों में छोड़ दिया जाता है, और जब घोड़ा वापस आ जाता है तब पूरा राज्य अश्वमेघ यज्ञ करवाने वाले राजा का हो जाता है। इस बात से चिंतित होकर इन्द्रदेव ने अपना राज छीन जाने की वजह से राजा सगर के घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में छिपा दिया। तब राजा सगर के 60 हजार पुत्रों ने घोड़े की खोज में कपिल मुनि को परेशान और अपमानित भी किया, जिससे परेशान होकर कपिल मुनि ने सभी को जलाकर भस्म कर दिया।
इस बात की जानकारी जब राजा सगर हुई तो वह कपिल मुनि से क्षमा-याचना करने लगे, इसके बाद कपिल मुनि ने बताया कि राजा सगर के पुत्रों की आत्मा को तभी मुक्ति मिलेगी जब गंगाजल उनका स्पर्श करेगा। सगर के कई वंशज गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने की आराधना करते हुए मृत्युलोक चले गए लेकिन गंगा ने अवतरित होना अस्वीकार कर दिया। तब राजा सगर के वंशज राजा भागीरथ ने गंगा को अवतरित करने के लिए 5500 सालों तक घोर तप किया, इसके बाद गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया।
लेकिन गंगा अगर स्वर्ग से सीधे पृथ्वी पर गिरेगी तो पृथ्वी उसका वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जायेगी, यह जानकर भागीरथ सोच में पड़ गए और उन्होंने इस समस्या से निजात पाने के लिए भोलेनाथ का तप शुरू कर दिया। संसार के दुखों को हरने वाले भोलेनाथ इस तप से प्रसन्न हुए और उन्होंने भागीरथ से वर मांगने को कहा, भागीरथ ने गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने की पूरी बात शिव को बताई।
इसके बाद जैसे ही गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरने लगी तब गंगा का वेग दूर करने के लिए शिव जी ने उन्हें अपनी जटाओं में कैद कर लिया। इस तरह से गंगा का वेग पृथ्वी की जटाओं में समा गया और शिव ने एक छोटे से पोखर में गंगा को छोड़ दिया। जहाँ से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुई और इस तरह से गंगाजल के स्पर्श से सगर के वंशजों की आत्मा को शांति भी मिल गई।
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