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हजारों साल पुराना है भारतीय रूपए का इतिहास,जानिए सिक्के से उसके कागज के नोट बनने की पूरी कहानी

New Delhi: आपकी जेब में मौजूद रूपए का एक बहुत ही गौरवशाली और रहस्यमयी अतीत है। 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व से चली रूपए की इस विकास यात्रा के पीछे काफी लंबा संघर्ष है। रूपए पर मौजूद महात्मा गांधी के मुस्कराते हुए चेहके के तस्वीर के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।

रुपए शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द रुपिया से हुई है जिसका अर्थ है सही आकार एवं मुहर लगा हुआ मुद्रित सिक्का। इसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द "रुपया" से भी हुई है जिसका अर्थ चांदी होता है। रुपये के संदर्भ में संघर्ष, खोज और संपत्ति का बहुत लंबा इतिहास रहा है, जो प्राचीन भारत के 6ठी सदी ईसा पूर्व से चला आ रहा है। 19वीं सदी में ब्रिटिशों ने इस उपमहाद्वीप में कागज के पैसों की शुरुआत की। पेपर करेंसी कानून 1861 ने सरकार को ब्रिटिश भारत के विशाल क्षेत्र में नोट जारी करने का एकाधिकार दिया था।

प्राचीन भारत में रूपए का स्वरूप-
प्राचीन भारतीय, चीनी और लीडियंस(मध्य पूर्व) के लोगों के साथ सिक्के की शुरूआत करने वाले पहले भारतीय थे। सर्वप्रथम भारतीय सिक्कों को पुणना, करशपान या पाना नाम दिया गया था जो महाजनपद काल के थे। ये सिक्के चांदी के थे लेकिन इनके आकार अलग-अलग थे। साथ ही इनको अलग तरीके चिन्हित किया गया था। उदाहरण के तौर पर सौराष्ट्र के सिक्कों पर सांड का निशान था, दक्षिण पंचाल के सिक्कों पर स्वास्तिक और मगध के सिक्कों पर कई निशान थे। 

मौर्य वंश के शासनकाल में पहली पर राजसी सिक्कों का प्रचलन शुरू हुआ। सम्राठ चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चाणक्य ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ में अर्थशास्त्र में 3 तरह के सिक्कों का वर्णन किया है। जिनको स्वर्णरूपा, रूपयरूपा, ताम्ररूपा, और सिसारूपा कहा जाता था। यहां रूपा का मतलब सिक्कों के आकार से था। गुप्त काल में जिन सोने के सिक्कों की शुरूआत की गई वो दिल्ली सल्तनत के आते-आते जारी रहे। 

दिल्ली सल्तनत में रूपए का स्वरूप- 
दिल्ली सल्तनत की शुरूआत होते ही भारतीय सिक्कों का रूप भी बदल गया। सिक्कों पर इस्लामिक आकृतिया उकेरी गई। सल्तनत काल में सोने, चांदी और तांबे के सिक्के जारी किए गए। जिन्हें टंका और जीतल नाम दिया गया। 

मुगल काल में भारतीय रूपए का स्वरूप- 
रुपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम शेर शाह सूरी ने भारत मे अपने शासन  के दौरान किया था। शेर शाह सूरी ने अपने शासन काल में जो रुपया चलाया वह एक चाँदी का सिक्का था जिसका भार 178 ग्रेन (11.534 ग्राम) के लगभग था। उसने तांबे का सिक्का जिसे दाम तथा सोने का सिक्का जिसे मोहर कहा जाता था, को भी चलाया। मुगल शासन के दौरान पूरे उपमहाद्वीप में मौद्रिक प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए तीनों धातुओं के सिक्कों का मानकीकरण किया गया।शेर शाह सूरी के शासनकाल के दौरान आरम्भ किया गया 'रुपया' आज तक प्रचलन में है। भारत में यह ब्रिटिश राज के दौरान भी प्रचलन में रहा।

ब्रिटिश काल में भारतीय रूपए का स्वरूप-
19वीं सदी में ब्रिटिशों ने भारतीय उपमहाद्वीप में कागज के पैसों की शुरुआत की। पेपर करेंसी कानून 1861 ने सरकार को ब्रिटिश भारत के विशाल क्षेत्र में नोट जारी करने का एकाधिकार दिया था। वर्ष 1862 में महारानी विक्टोरिया के सम्मान में, विक्टोरिया के चित्र वाले बैंक नोटों और सिक्कों की श्रृंखला जारी की गई थी। अंततः 1935 ई. में भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई और उसे भारत सरकार के नोटों को जारी करने का अधिकार दिया गया। रिजर्व बैंक ने 10,000 रुपयों का भी नोट छापा और स्वतंत्रता के बाद इसे बंद कर दिया। आरबीआई द्वारा जारी की गई पहली करेंसी नोट 5 रुपये की नोट थी जिस पर किंग जॉर्ज VI की तस्वीर थी। यह नोट 1938 में छापा गया था।

आजादी के बाद भारतीय रूपए का स्वरूप-
वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद और 1950 के दशक में जब भारत गणराज्य बन गया, भारत के आधुनिक रुपये ने अपना डिजाइन फिर से प्राप्त किया। कागज के नोट के लिए सारनाथ के चतुर्मुख सिंह वाले अशोक के शीर्षस्तंभ को चुना गया था। इसने बैंक के नोटों पर छापे जा रहे जॉर्ज VI का स्थान लिया। इसप्रकार स्वतंत्र भारत में मुद्रित पहला बैंक नोट 1 रुपये का नोट था।

महात्मा गांधी की फोटो के साथ जारी हुआ पहला रूपया- 
वर्ष 1969 में भारतीय रिजर्व बैंक ने 5 और 10 रुपयों के नोट पर महात्मा गांधी जन्मशती स्मारक डिजाइन वाली श्रृंखला जारी की थी।और दिलचस्प बात यह है कि चलती नाव का चित्र 10 रुपए के नोट पर 40 से भी अधिक वर्षों तक चलता रहा। 

महात्मा गांधी की मुस्कराती फोटों के साथ जारी हुआ नोट- 
हम हमेशा हमारे नोटों पर महात्मा गांधी की मुस्कुराती हुई तस्वीर देखते हैं जो करेंसी नोटों पर भी होती है। कुछ लोगों का कहना है कि महात्मा गांधी की यह तस्वीर उनके एक कार्टून का है लेकिन यह सच नहीं है। वास्तव में यह तस्वीर 1946 में एक अज्ञात फोटोग्राफर ने ली थी और वहीं से इसे क्रॉप किया गया और हर जगह इस्तेमाल किया जाने लगा। महात्मा गांधी इस फोटो में लॉर्ड फ्रेड्रिक विलियम पेथिक लॉरेंस के साथ खड़े हुए हैं। जो एक महान राजनेता थे और ग्रेट ब्रिटेन में महिला मताधिकार आंदोलन के भी नेता थे। यह तस्वीर भूतपूर्व वायसराय हाउस जो वर्तमान में राष्ट्रपति भवन है, में ली गई थी। इस तस्वीर का इस्तेमाल आरबीआई द्वारा 1996 में महात्मा गांधी सीरीज के बैंक नोटों पर किया गया।

5 रूपए और 10 रूपए के नोट की कहानी-
नवंबर 2001 में, 5 रुपये के नोट, जिसमें सामने महात्मा गांधी जी की तस्वीर होती थी और पीछे की तरफ मशीनीकृत खेती प्रक्रिया यानि कृषि के माध्यम से प्रगति, दिखाई देती थी, को जारी किया गया था। वहीं जून 1996 में, दस रुपये का नोट जारी किया गया। इसमें सामने की तरफ गांधी जी की तस्वीर और पीछे की तरफ भारत के जीवों की तस्वीर थी जो यहाँ की जैवविविधता का प्रतिनिधत्व करती है।

20 और 50 रूपयों के नोटों के पीछे कहानी-
अगस्त 2001 में 20 रु. का नोट जारी किया गया। इसमें सामने की तरफ गांधी जी की तस्वीर थी और पीछे की तरफ पोर्टब्लेयर के मेगापोड रिसॉर्ट से दिखाई देने वाले माउंट हैरिएट के खजूर के पेड़ और पोर्ट ब्लेयर लाइटहाउस की तस्वीर थी। इससे पहले 1983-84 में, 20 रु. के नोट जारी किए गए थे जिसके पीछे की तरफ बौद्ध चक्र बना हुआ था। मार्च 1997 में, 50 रु. का नोट जारी किया गया जिसमें सामने की तरफ महात्मा गांधी और पीछे की तरफ भारत के संसद की तस्वीर थी।

100 और 500 के रूपए की पीछे की कहानी-
जून 1996 में 100 रु. का नोट जारी कया गया। इसमें सामने की तरफ महात्मा गांधी और पीछे की तरफ हिमालय पर्वत श्रृंखला की तस्वीर थी। अक्टूबर 1997 में 500 रुपये. का नोट जारी किया गया। इसमें सामने की तरफ महात्मा गांधी और पीछे की तरफ दांडी मार्च यानि नमक सत्याग्रह की तस्वीर थी। इस सत्याग्रह की शुरूआत 12 मार्च, 1930 को गांधीजी ने भारत में अंग्रेजों के नमक वर्चस्व के खिलाफ कि थी, जिसे सबसे व्यापक सविनय अवज्ञा आंदोलन माना जाता है। इस आंदोलन में गांधीजी और उनके अनुयायियों ने अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम गुजरात के नवसारी स्थित तटीय गांव दांडी तक की पद यात्रा की और ब्रिटिश सरकार को कर का भुगतान किए बगैर नमक तैयार किया। इस तरह गांधी जी ने 5 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोड़ा था।

 1000 के रूपए के पीछे की कहानी-
नवंबर 2000 में, 1000 रुपये का नोट जारी किया गया। इसमें सामने की तरफ गांधीजी और पीछे की तरफ भारत की अर्थव्यवस्था को दर्शाती अनाज संचयन यानि कृषि क्षेत्र, तेल, विनिर्माण क्षेत्र, अंतरिक्ष उपग्रह, विज्ञान और अनुसंधान, धातुकर्म, खान और खनिज एवं कंप्यूटर पर काम करती लड़की की तस्वीर है।

500 और 2000 के नए नोटों के पीछे की कहानी-
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी द्वारा की गई ऐतिहासिक नोटबंदी के बाद 500 और 2000 के नए नोटों का रूप हमारे सामने आया। नोटबंदी की घोषणा के साथ ही 500 और 1000 के पुराने नोट अवैध घोषित हो गए। भारतीय अर्थव्यवस्था और रूपए के विमुद्रीकरण की दिशा में किया गया ऐसा ऐतिहासिक कदम था जिसने देश ही नहीं दुनिया का भी ध्यान खींचा। नोटबंदी की इस घोषणा का देश में काफी विरोध भी हुआ लेकिन सरकार अपने फैसले पर कायम रही। 

इस तरह भारतीय रूपए ने सोने के सिक्कों से लेकर नए करेंसी नोटो तक एक लंबी यात्रा तय की है। जो काफी उतार-चढ़ाव भरी रही है। भारतीय रूपए का इतिहास दुनिया के सभी मुद्राओं में सबसे पुराना है। 
 

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