New Delhi: उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस के महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को नामंजूर करने में जल्दबाजी दिखाने के आरोपों को सिरे से खारिज किया है
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उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को नामंजूर करने का फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया गया. एक महीने से ज्यादा समय तक विचार विमर्श करने के बाद भारतीय संविधान और Judges Inquiry Act-1968 के प्रावधानों के अनुरूप यह निर्णय लिया गया है। राज्यसभा के सभापति नायडू ने कहा कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन किया है और वो इससे पूरी तरह संतुष्ट भी हैं। इस मसले पर चर्चा करने को लेकर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के 10 वकीलों ने उपराष्ट्रपति नायडू से मुलाकात की, जिसके बाद उनका यह बयान सामने आया है। वकीलों ने कहा कि यह पहली बार है, जब संसद के किसी सदन के प्रमुख ने चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को खारिज किया है।
वैंकेया नायडू ने कहा कि मैं इस बात की फिक्र नहीं करता हूं कि इससे प्रशंसा मिलेगी। मुझसे जो उम्मीद थी, मैंने वही किया। राज्यसभा के सभापति के रूप में यही फैसला लेने की उम्मीद थी। सदन के कुछ सदस्यों का अपना नजरिया है और इस पर बात रखने का अधिकार भी है, लेकिन मेरे ऊपर इस पर फैसला लेने की जिम्मेदारी है। मैंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया और इस फैसले से संतुष्ट हूं। उन्होंने कहा कि मीडिया में एक महीने से ज्यादा समय से चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव को लेकर चर्चा हो रही है। नायडू ने कहा, ''मीडिया में खबर आने के बाद से ही मैं महाभियोग प्रस्ताव के प्रावधानों, प्रक्रिया और ऐसे गंभीर मुद्दे पर पहले के मामलों का अध्ययन कर रहा हूं. साथ ही महाभियोग प्रस्ताव पर समय पर फैसला लेने पर भी काम कर रहा हूं।
बता दें कांग्रेस के नेतृत्व में सात विपक्षी दलों की ओर से चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के लिए नोटिस दिया गया था, जिसको राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया था। इसके बाद से मामले को लेकर उन पर सवाल उठाए जा रहे हैं. कांग्रेस के कई नेताओं ने महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस पर लिए गए उनके निर्णय को जल्दबाजी में लिया गया करार दिया है। कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की भी बात कही है।
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