New Delhi:
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है, मैं तुझसे दूर कैसा हूं, तू मुझसे दूर कैसी है! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है!! यह कविता किसने नहीं सुनी? इनके रचयिता हैं, कुमार विश्वास।
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हिंदी कविता के रचयिता कुमार विश्वास आज 47 साल के हो गए हैं। 10 फरवरी 1970 को गाजियाबाद के पिलखुआ में जन्मे कुमार विश्वास के पिता डॉ. चंद्रपाल शर्मा हैं। जो वहां के आरएसएस डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर हैं, और मां का नाम रमा शर्मा है। वह अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। साल 1994 में राजस्थान के एक कॉलेज से लेक्चरर के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले कुमार विश्वास हिंदी कविता के जाने-माने कवियों में से एक हैं।
बता दें कि कुमार विश्वास की शुरुआती शिक्षा पिलखुआ के लाला गंगा सहाय विद्यालय में हुई है, जहां उन्होंने राजपुताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज से 12वीं पास की। इनके पिता चाहते थे कि कुमार इंजीनियर बनें, लेकिन इनका इंजीनियरिंग की पढ़ाई में मन नहीं लगता था। कुछ अलग करने की चाहत में उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और हिंदी साहित्य में स्वर्ण पदक के साथ ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। एमए करने के बाद उन्होंने 'कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना' विषय पर पीएचडी की।
कुमार विश्वास कविता मंच के सबसे व्यस्ततम कवियों में से एक हैं। उन्होंने कई कवि सम्मेलनों की शोभा बढ़ाई है और पत्रिकाओं के लिए वह भी लिखते हैं। बता दें कि कुमार मंचीय कवि होने के साथ-साथ विश्वास हिंदी सिनेमा के गीतकार भी हैं और आदित्य दत्त की फिल्म चाय गरम में उन्होंने अभिनय भी किया है।
साथ ही ये भी बता दें कि शुरुआती दिनों में जब कुमार विश्वास कवि सम्मेलनों से देर से लौटते थे, तो पैसे बचाने के लिए ट्रक में लिफ्ट लिया करते थे। अगस्त, 2011 में कुमार जनलोकपाल आंदोलन के लिए गठित टीम अन्ना के लिए सदस्य रहे। तो वहीं कुमार विश्वास 26 जनवरी, 2012 को बनी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य हैं।
कुमार विश्वास ने वर्ष 2014 में अमेठी से राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें बाजी नहीं मार पाए। उनकी कविताएं पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपने के अलावा दो काव्य-संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं- 'एक पगली लड़की के बिन' और 'कोई दीवाना कहता है'. विख्यात लेखक धर्मवीर भारती ने कुमार विश्वास को अपनी पीढ़ी का सबसे ज्यादा संभावनाओं वाला कवि कहा था।
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कुमार को 1994 में काव्य कुमार और 2004 में डॉ सुमन अलंकरण अवार्ड, 2006 में 'श्री साहित्य' अवार्ड और 2010 में 'गीत श्री' अवार्ड से सम्मानित किया गया। साथ ही बता दें कि कुमार की लोकप्रिय कविताएं हैं- 'कोई दीवाना कहता है', 'तुम्हें मैं प्यार नहीं दे पाऊंगा', 'ये इतने लोग कहां जाते हैं सुबह-सुबह', 'होठों पर गंगा है' और 'सफाई मत देना'
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