New Delhi : बलूचिस्तान में आजादी की लड़ाई तेज हो गई है। लोग सड़कों पर उतरकर पाकिस्तानी फौज और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।
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बलूच मानवाधिकार ऐक्टिविस्ट फरजाना मजीद बलूच ने बलूचिस्तान में पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन और महिलाओं पर अत्याचार की तुलना 1971 की बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई से की है।
यह कहते हुए कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है, फरजाना ने कहा कि आर्मी का बलूच महिलाओं को निशाना बनाना, 1971 में महिलाओं के साथ हुए रेप और ज्यादती जितना बुरा है।
फरजाना ने बताया, 'पिछले दो दिनों से एक बलूच ऐक्टिविस्ट के घर को पाकिस्तान पैरामिलिटरी फोर्सेज ने महिलाओं और बच्चों समेत घेर रखा है। इसके पहले उन्होंने 40 से ज्यादा महिलाओं को उनके बच्चों के साथ बलूचिस्तान के बोलन इलाके से अगवा कर लिया था।' फरजाना ने कहा कि कोहलू और डेराबुग्ती इलाके में मिलिटरी ऑपरेशन के बाद से जरीना मर्री और दो अन्य महिलाएं अभी तक लापता हैं। फौजी आते हैं और कुंवारी लड़कियों को उठाकर ले जाते हैं।
वहीं लापता स्टूडेंट लीडर जाकिर मजीद की बहन मजीद बलूच ने कहा, '1971 में बांग्लादेश की आजादी के समय बंगाल के लोगों पर हुई ज्यादती की कहानी फिर दोहराई जा रही है। पाकिस्तानी आर्मी बलोच महिलाओं को निशाना बना रही है क्योंकि वे जानते हैं कि महिलाएं राजनीतिक तौर पर मजबूत हैं।'
इस बीच, यूनाइटेड नेशन्स ह्यूमन राइट्स काउंसिल में बलूच रिपब्लिकन पार्टी के प्रतिनिधि अब्दुल नवाज बुग्ती ने कहा कि डेरा बुग्ती के अलग अलग इलाकों से लोगों को अगवा किया जा रहा है क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने यहां नए सिरे से मिलिटरी ऑपरेशन शुरू किया है। इसके पहले बलूचिस्तान पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का स्वागत करते हुए कई बलूच ऐक्टिविस्ट्स ने कहा था कि यहां के लोग मोदी का समर्थन करते हैं और उन्हें यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने उठाना चाहिए।
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