New Delhi: दुनिया की सबसे बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में शुमार 'मूडीज' ने 13 साल बाद भारत की शासकीय(सॉवरिन) क्रेडिट रेटिंग को बढ़ाया है। लेकिन सच्चाई क्या है इससे WALL STREET JOURNAL ने रुबरु कराया है...
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Moody’s ने भले ही भारत को Baa3 से बढ़ाकरक Baa2 की रेटिंग दी हो, लेकिन THE WALL STREET JOURNAL के मुताबिक जमीनी हकीकत कुछ और ही है। वॉल स्ट्रीट जनरल ने मूडीज की रेटिंग को सच्चाई से विमुख करार दिया है। वॉल स्ट्रीट जनरल ने लिखा है कि केंद्रीय बैंक ने अपने 2017 प्रक्षेपण को 7.3% से घटाकर 6.7% कर दिया था। मुद्रास्फ़ीति की समस्या लगातार हो रही है और केंद्रीय बैंक को यह उम्मीद है कि वह अपने लक्ष्यों को पार कर लेगी। लेकिन बड़े बैंक खैरात वित्तीय प्रणाली की समस्याओं को हल करने के लिए अपर्याप्त लग रहा है। माना जा रहा है कि अभी भारत की स्थिती भी मजबूत नहीं है। केंद्रीय बैंक ने पिछले महीने ही चेतावनी दी थी कि इस तरह की सरकारी नीति परिवर्तन मुद्रास्फीति को भी बढ़ा सकते हैं और उधार लेने की लागत पर भी इसका असर पड़ सकता है।
Moody’s ने रेटिंग सुधरने का मुख्य कारण मोदी सरकार के दो अहम फैसले वस्तु एवं सेवा कर(GST) और नोटबंदी बताया है। लेकिन मोदी सरकार के इन्ही दो फैसलों का विपक्ष, निवेशक और कई लोग विरोध कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इन्हीं दो फैसलों ने अर्थव्यवस्था को सबसे नीचे लाया है। बेंचमार्क भारतीय सरकारी बॉन्ड की उपज बढ़ी है जो कि एक साल में सबसे अधिक 7% है। वॉल स्ट्रीट जनरल ने कहा कि मूडीज की एक तरफा रेटिंग पर सबको संदेह है। Moody’s ने सरकार को अच्छी रेटिंग के साथ-साथ चेतावनी भी दी थी। Moody’s ने कहा है कि बैंकों की खराब सेहत और कर्ज की मौजूदा स्थिति देश के लिए चिंताजनक है। सरकारी ऋण, सकल घरेलू उत्पाद का 68% है। लेकिन सरकार की ओर से इस बात पर जोर दिया जाता है कि सुधारों का सकारात्मक प्रभाव समय पर दिखेगा।
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी मूडीज की रेटिंग में सुधार पर मोदी सरकार की खिल्ली उड़ाते हुए कहा है कि जब इस एजेंसी ने रेटिंग घटाई थी तो इसी सरकार ने उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए विरोध में कड़ा पत्र लिखा था। पहले ही मोदी सरकार ने कहा था कि मूडीज का रेटिंग तय करने का तरीका गलत है क्योंकि तब एजेंसी ने भारत की रेटिंग घटा दी थी। रेटिंग कम किए जाने के विरोध में तत्कालीन आर्थिक मामले सचिव शक्तिकांत दास ने मूडीज को एक लंबी चिट्ठी लिखी थी, जिसमें एजेंसी से कहा गया था कि वह रेटिंग तय करने का अपना तरीका बदल दे क्योंकि यह ठीक नहीं है।
Moody’s के अलावा फिच रेटिंग्स और स्टैंडर्ड एंड पुअर्स विश्व की दो अन्य प्रतिष्ठित क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां हैं। फिच ने जून 2013 से भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में अपना अनुमान स्थिर रखते हुए इसे BBB- की रेटिंग दी है। वहीं स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने सितंबर 2014 से यहां की अर्थव्यवस्था को स्थिर बताते हुए इसकी रेटिंग BBB+ पर बरकरार रखी है। आपको बता दें ये तीनों ही एजेंसियां अमेरिका की हैं।
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