New Delhi : साल 1969 में Independence Day यानि 15 अगस्त का दिन भारतीय इतिहास में सुनहरे पन्नों में दर्ज है। इस दिन भारत ने अपने Space Project की शुरुआत की थी।
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डॉ. विक्रम साराभाई ने इस दिन इसरो की स्थापना कर एक ऐसा इतिहास लिख दिया जो भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। डॉ. साराभाई ने साइकिल और बैलगाड़ी के जरिये आसमान मुट्ठी में करने का जो संकल्प लिया था, वो आज भी जारी है। आज भारत कई मायनों में चीन और रूस सरीखे देशों से आगे निकल चुका है।
गौरतलब है कि इसरो भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है जिसका मुख्यालय बेंगालुरू कर्नाटक में है। संस्थान में लगभग 70000 कर्मचारी एवं वैज्ञानिक कार्यरत हैं। अन्तरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य उद्देश्यों में उपग्रहों, प्रमोचक यानों, परिज्ञापी राकेटों और भू-प्रणालियों का विकास शामिल है।
इसरो ने पिछले दिनों एक ही रॉकेट से 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष विज्ञान में वह मुकाम हासिल कर लिया है जो अमेरिका, रूस, चीन जैसे विकसित देशों के वैज्ञानिकों के लिए सपना है। यह पहली बार नहीं जब इसरो ने हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया हो, बल्कि कई ऐसे मिशन भी पूरे किये हैं, जिनके आसपास चीन और रूस को पहुंचने में बरसों लग जायेंगे। चलिये आज हम आपको बताते हैं इसरो के अब तक का रोमांचकारी सफर।
ऐसे हुई शुरुआत : डॉ. विक्रम साराभाई ने 15 अगस्त 1969 को इसरो की स्थापना की थी। उन्होंने आसमान मुट्ठी करने के सफर पर साइकिल और बैलगाड़ी के जरिए निकले थे। पहले रॉकेट को साइकिल पर लादकर वैज्ञानिक ने प्रक्षेपण स्थल पर ले गए थे। इस मिशन का दूसरा रॉकेट काफी बड़ा और भारी था, जिसे बैलगाड़ी के सहारे प्रक्षेपण स्थल पर ले जाया गया था। इससे भी ज्यादा रोमांचकारी बात यह है कि पहले रॉकेट के लिए भारत ने नारियल के पेड़ों को लांचिंग पैड बनाया था। हमारे वैज्ञानिकों के पास अपना दफ्तर नहीं था, वे कैथोलिक चर्च सेंट मैरी मुख्य कार्यालय में बैठकर सारी प्लानिंग करते थे। पूरे भारत में इसरो के 13 सेंटर हैं।
डॉ. कलाम ने दी नई पहचान : मुश्किल हालातों में हमारे वैज्ञानिकों ने पहला स्वदेशी उपग्रह एसएलवी-3 18 जुलाई 1980 को लांच किया था। इसमें दिलचस्प बात तो यह है कि इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम थे। रोहिणी उपग्रह को कक्षा में इस लांचर के माध्यम से स्थापित किया गया। इसरो ने अब तक के सफर में कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन इनमें से 4 ऐसी हैं जो हमें दुनिया के नक्शे पर खास बनाते हैं।
उपलब्धियों पर एक नजर डालें
रूस की बराबरी की : दुनिया में केवल रूस ऐसा कर पाया था कि 1990 में वैज्ञानिकों ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान तैयार किया। पहली बार ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण के जरिए 1993 में पहला उपग्रह ऑर्बिट में भेजा गया।
दूर नहीं रह गए 'चंदा मामा' : दादी-नानी अक्सर बच्चों को लोरियों में सुनाती हैं, चंदा मामा दूर के ... हमसे पहले केवल 6 देश ऐसा कर पाए थे कि 2008 में इसरो के वैज्ञानिकों ने इसी दूरी को खत्म करते हुए चंद्रयान को अंतरिक्ष में भेजा। वैज्ञानिकों ने दुनिया में सबसे सस्ता चंद्रमा मिशन पूरा किया। उन्होंने इसपर काफी पैसे खर्च किए थे। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि अमेरिका का नासा जितने पैसे 1 साल में खर्च करता है इसरो उतने में 40 साल तक काम करता है।
मंगल का सफर एक ही प्रयास में किया पूरा : दुनिया में पहली बार पहले प्रयास में इसरो के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह के सफर को पूरा कर लिया। अमेरिका, रूस और यूरोपीय स्पेस एजेंसियों को कई प्रयासों के बाद मंगल ग्रह पहुंचने में सफलता मिली।
मात्र 1 रॉकेट से प्रक्षेपित किए 104 सैटेलाइट : अपने सबसे सफल रॉकेट पीएसएलवी की मदद से इसरो ने हाल ही में 104 सैटेलाइट को प्रक्षेपित किया। इसमें 101 विदेश सैटेलाइट हैं। भारत और अमेरिका के अलावा इजरायल, हॉलैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान के छोटे आकार के सैटेलाइट शामिल हैं। ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया।
इस अभियान के बारे में इसरो के चेयरमैन एएस किरण कुमार ने बताया कि एक उपग्रह का वजन 730 किलो का है, जबकि बाक़ी के 2 का वजन 19-19 किलो है। इनके अलावा हमारे पास 600 किलो और वजन भेजने की क्षमता थी, इसलिए हमने 101 दूसरे सैटेलाइटों को भी लांच करने का निर्णय लिया।
उपग्रह छोड़ना पक्षी उड़ाने जितना आसान : इसरो प्रमुख किरण कुमार ने कहा था कि उपग्रहों को अंतरिक्ष में छोड़ना एक तरह से पक्षियों को आसमान में उड़ाने जैसा है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे इसरो के वैज्ञानिक कितने काबिल हैं जो अंतरिक्ष के क्षेत्र में सिमित संसाधनों से विकसित देशों को पीछे छोड़ रहे हैं। इसरो में कई ऐसे वैज्ञानिक हुए, जिन्होंने अपना पूरा जीवन संगठन को समर्पित कर दिया। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया।
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