Vijayasan Maa Durga Mandir Details: मध्य प्रदेश के सलकनपुर में विंध्यवासिनी विजयासन मां दुर्गा का मंदिर एक पहाड़ पर स्थित है। यह मंदिर इतनी ऊंचाई पर है कि यहां पर पहुंचना आसान नहीं है। यहां पर सड़क, सीढ़ियों और केबल कार द्वारा पहुंचा जा सकता है। यह धाम राजधानी के समीप हैं, सलकनपुर देवी मंदिर में लाखों लोग देवी दर्शन के लिए आते है। इस मंदिर की मान्यता स्थानीय लोगों के साथ देश के सभी श्रद्धालुओं के बीच है। माता के धाम पर लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते है। माता का यह धाम 300 वर्ष प्राचीन है।
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मंदिर का नाम और लोकेशन
मंदिर का नाम: विंध्यवासिनी विजयासन माता मंदिर, सलकनपुर
लोकेशन: सलकनपुर मंदिर रोड,, मध्य प्रदेश
समय: सुबह 4 बजे से दोपहर 12 बजे तक फिर 2 बजे से रात के 8 बजे तक
ऐसे पहुंच सकते है यहां
यह मंदिर भोपाल से 70 किमी दूर स्थित है। मंदिर खूबसूरत पहाड़ पर स्थित है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भोपाल जंक्शन और सीहोर है। आप भोपाल जंक्शन से उतरकर, प्राइवेट कैब या बस का प्रयोग कर सकते है।
मंदिर से जुडी खास मान्यता
सीहोर जिले में विंध्य की मनोहारी पहाड़ी पर विजयासन देवी माता का मंदिर है। माता यह मंदिर सलकनपुर मंदिर के नाम से ये विख्यात है। यहां विराजमान माता को विंध्यवासनी बिजासन देवी भी कहा जाता है। यह देवी मां दुर्गा का अवतार है। दुःख दूर करने वाली माता, मां बिजासन के दरबार में दर्शनार्थियों की भक्ति खाली नहीं जाती हैं। मंत्री हो या गरीब मां की कृपा सब पर रहती हैं। भक्तों के बढ़ते हुए कदम जैसे ही इस धाम के निकट पहुंचते हैं, पूरा शरीर मां बिजासन की शक्ति से भर जाता है। मां विजयासन देवी पहाड़ पर अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं।
मंदिर की पौराणिक कथा
यह मंदिर लगभग 4 हजार फीट की उंचाई पर है। विजयासन देवी की प्रतिमा यहां पर लगभग 4 सौ साल पुरानी और स्वयंभू मानी जाती है। श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार, पौराणिक मान्यता है कि दुर्गा के महिषासुरमर्दिनी अवतार के रूप में देवी ने इसी स्थान पर रक्तबीज नाम के राक्षस का वध कर विजय प्राप्त की थी। फिर जगत कल्याण के लिए इसी स्थान पर रहकर उन्होंने विजयी मुद्रा में तपस्या की थी। इसलिए माता विजयासेन कहलायी। इसलिए इन्हें विजयासन देवी कहा जाता है। सलकनपुर मंदिर आस्था और श्रद्धा का 52 वां शक्ति पीठ कहा जाता है। मंदिर पहुंचने के लिए भक्तों को पत्थर से बनी 1 हजार 451 सीढ़ियों पार करनी होती हैं। मंदिर के गर्भगृह में लगभग 400 साल से 2 अखंड ज्योति प्रज्जवलित हैं। एक नारियल के तेल और दूसरी घी से जलायी जाती है। इन साक्षात जोत को साक्षात देवी रूप में पूजा जाता है। मंदिर में धूनी भी जल रही है। इस धूनी को स्वामी भद्रानंद और उनके शिष्यों ने प्रज्जवलित किया था। तभी से इस अखंड धूनी की भस्म अर्थात राख को ही महाप्रसाद के रूप में दिया जाता है।
मंदिर के निर्माण से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहानी
लगभग 300 साल पहले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और पशुओं के चारे के लिए रूके थे। अचानक उनके पशु गायब हो गए। एक बृद्ध बंजारे को छोटी बच्ची मिली। बच्ची के पूछने पर बंजारे ने सारी बात बता दी। तब बच्ची ने उनसे कहा की आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मन की इच्छा बता सकते हैं। जिस स्थान पर बच्ची ने पत्थर फेंक कर संकेत दिया उसी जगह मां भगवति के दर्शन मिले। बंजारे मां भगवति की पूजा-अर्चना करने लगे। कुछ देर बाद उनके पशु मिल गए। बंजारों के समूह ने मंदिर का निर्माण करवाया। यह घटना बंजारों द्वारा बताये जाने पर लोग अपनी मन्नत लेकर आने लगे।
मंदिर तक का रास्ता तीन तरीकों से किया जा सकता है पूरा
मंदिर के शीर्ष पर पहुंचने के 3 रास्ते हैं, लगभग 1400 सीढ़ियाँ, रस्सी कार और सड़क मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। यहां पर दो पहिया और चार पहिया वाहन से भी पहुंचा जा सकता है। यह रास्ता करीब साढ़े 4 किलोमीटर का है। मानसून और सर्दियों की शाम यहां घूमने के लिए आदर्श समय है।
यह मंदिर एक शांतिपूर्ण स्थान है, श्रद्धालुओं को यहां पर मानसिक शांति मिलती है। यह मंदिर खूबसूरती से बनाया गया है और हरे भरे प्रकृति सुंदरता से घिरा हुआ है। आप छुट्टियों में माता के दर्शन करने का प्रोग्राम बना सकते है।