Kamyavan Fisalni Shila of Shree Krishna: भारत की भूमि पर परमात्मा ने अलग अलग युग में विश्व के कल्याण के लिए जन्म लिया है। जिसमें श्रीकृष्ण और प्रभु श्रीराम की कहानीयां तो विश्व प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण के बचपन की कहानियां सभी को जानने और सुनने में बहुत अच्छी लगती है। श्रीकृष्ण का बालरूप बहुत ही नटखट और लुभावना था। भगवान विष्णु ने जब धरती पर द्वापर युग में श्रीकृष्ण रूप में जन्म लिया। तब उनकी बाल क्रीडाएं पूरे आर्यवर्त(भारत) में प्रसिद्ध थी। नटखट कान्हा गोकुल और वृदावन में घूमकर बहुत उत्पात मचाया करते थे। वो भी अन्य बच्चों की तरह झूले पर झूलना और पेड़ो पर चढ़कर खेलने जैसी कई गतिविधियां किया करते थे। उस दौरान के, हजारों वर्ष पूर्व के कुछ साक्ष्य वर्तमान में भी हमारे बीच विद्यमान है। आज हम श्रीकृष्ण के बालरूप से जुड़ी एक जगह के बारे में बात करेंगे।
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भगवान श्री कृष्ण की फिसलनी शिला
श्री कृष्ण और उनके मित्र गाय चराने के लिए जिस जगह पर जाया करते थे वह है काम्यवन। यहां पर कान्हा अपने दोस्तों के साथ कई घंटों तक इस पत्थर के स्लाइड जिसे फिसलनी शिला कहते है, उस पर खेलने का आनंद लिया करते थे। 'फिसलनी' शब्द का अर्थ है 'फिसलने वाला' और 'शिला' का अर्थ है 'पत्थर' या 'चट्टान'।
यहां पर है फिसलनी शिला
भगवान श्रीकृष्ण की फिसलनी शिला, जिस पहाड़ी पर पाई गई है, उसे इंद्रसेन पर्वत के नाम से जाना जाता है। लेकिन स्थानीय रूप से इसे फ़िसलनी पिहारी के नाम से जाना जाता है। 'पिहारी' शब्द का अर्थ है 'पहाड़ी'। स्थानीय लोग इस रॉक स्लाइड को ख़िसासिनी-शिला या फिशालिनी-शिला भी कहते हैं, जो दोनों फ़िसलनी-शिला शब्द का अपभ्रंश हैं।
पता:- कामयावन (कामा), भरतपुर, राजस्थान में भोजन थाली स्थली के पास फिसलनी शिला
शिला के निर्माण से जुड़ी पौराणिक कथा
शिला के निर्माण से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहानी है। जो स्थानीय लोगों द्वारा सुनाई जाती है। पौराणिक कहानी के अनुसार, श्रीकृषण अपने ग्वाल बाल सखे – बंधुओं के साथ इसी काम्यवन में गाय चराने के लिए आया करते थे। लेकिन इतनी दूर ने में वे सभी थककर मुंह उदास कर बैठ जाते थे। तब श्रीकृष्ण ने सोचा कि कुछ सा किया जाए जिससे सब आनंदमय हो जाए। इसका उपाय़ उन्होंने ढूंढ निकाला और इस शिला का निर्माण किया। जो आज भी उसी अवस्थ में यहां पर पड़ी हुई है। जहां बच्चे बूढ़े यहां पर फिसलकर अपने बचपन को दोबारा जीते है।
शिला से जुड़ी है ये मान्यता
इस शिला से लोगों की अटूट आस्था जुड़ी हुई है। जिससे यहां पर बच्चे बूढ़े सभी आते है। ऐसा कहा जाता है कि जो लोग भी इस फिसलनी शिला पर फिसलते है। वो सर्प की योनी से मुक्त हो जाते है। अर्थात् वे कभी साप की प्रजाति में जन्म नहीं लेते है। जिससे इस शिला का महत्व और भी बढ़ जाता है।