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झांसी मंडलायुक्त डॉ.अजय शंकर पांडेय की अभूतपूर्व विदाई: राज्यमंत्री ने तोड़ा प्रोटोकॉल, आंखें हो गई नम

Jhansi Divisional Commissioner Farewell: देश में कई ऐसे अधिकारी रहे हैं, जो सीधे जनता से जुड़कर काम करते रहे। ऐसे अधिकारियों की छाप सदैव क्षेत्र के लोगों के मन में रच-बस जाती है। ऐसे ही एक अधिकारी रहे झांसी के मंडलायुक्त डॉ. अजय शंकर पांडेय। वो अब रिटायर हो गए। मंडलायुक्त के प्रति बुंदेलखंड के लोगों में इतना सम्मान का भाव रहा कि उन्होंने इस विदाई को यादगार बना दिया।    

अक्सर बड़े अधिकारियों-पदाधिकारियों से मिलने और अपनी समस्याएं बताने में जहां लोग झिझकते हैं, वहीं डॉ. अजय शंकर पांडेय के बारे में कहा जाता है कि, वो क्षेत्र के लोगों को सम्मान पूर्वक बैठाते, उनकी समस्याएं सुनते और उसका निदान करते थे। दरअसल, अजय शंकर पांडेय की गिनती बेहद ईमानदार आईएएस अफसर के रूप में रही है। ये तब भी सुर्ख़ियों में आए थे जब निर्धारित वक्त पहले पहुंचकर खुद ही झाड़ू लगाकर दफ्तर साफ़ करने में जुट गए थे। 

111 वर्ष पुरानी कमिश्नरी में रचा इतिहास 

आपको बता दें कि, झांसी में ब्रिटिश काल के समय ही कमिश्नरी बिल्डिंग बनी थी। इस दौरान न जाने कितने ही अफसर आए और गए, लेकिन 111 वर्ष बाद इतिहास रचा डॉ. अजय शंकर पांडेय ने। हुआ यूं कि, कमिश्नरी न्यायालय में राजस्व व आर्म्स एक्ट मामलों में सुनवाई हुई। मंडलायुक्त डॉ.अजय शंकर पांडेय ने दो फैसले संस्कृत भाषा में लिखे। जानकार बताते हैं कि, प्रदेश के राजस्व न्यायालय का ये अपनी तरह का पहला फैसला था, जो संस्कृत भाषा में लिखा गया। डॉ. अजय शंकर पांडेय का मंडलायुक्त के रूप में यह कदम संस्कृत को सम्मान दिलाने की दिशा में 'मील का पत्थर' माना गया। इस फैसले के बाद डॉ. अजय पांडेय मीडिया में छा गए। 

कम समय में किया अभूतपूर्व काम  

मंडलायुक्त डॉ.अजय शंकर पांडेय का झांसी में कार्यकाल करीब 13 महीनों का ही रहा। मगर, इस छोटी अवधि में उन्होंने जिस तरह बुंदेलखंड की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और कृषि के उत्थान की दिशा में कार्य किया, वो अभूतपूर्व है। यही वजह है कि मंडलायुक्त के रिटायरमेंट को बुंदेलखंड के लोगों ने यादगार बना दिया। इस दौरान लोक कलाकारों ने कई तरह की प्रस्तुतियां दी। इनमें राई, ढिमरिया इत्यादि नृत्यों की बेजोड़ प्रस्तुति हुई। लोक कलाकारों के 07 दलों ने अपनी कला के प्रदर्शन से मंडलायुक्त डा. अजय शंकर पाण्डेय सहित वहां उपस्थित अन्य अतिथियों का मन मोह लिया। इसके बाद विभिन्न अधिकारियों तथा जनप्रतिनिधियों और उपस्थित लोगों ने मंडलायुक्त को माल्यार्पण एवं बुके भेंट कर सम्मानित किया।

डीएम-एसएसपी ने उनके कार्यों को याद किया 

विदाई मौके पर झांसी के डीएम रविन्द्र कुमार, एसएसपी शिवहरि मीणा ने इस कार्यक्रम में मंडलायुक्त के कार्यों की सराहना की। जिले के इन दोनों वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों ने डॉ. अजय शंकर पांडेय के काम को याद किया और प्रेरणादायी बातें की। मंडलायुक्त डॉ. अजय शंकर पांडेय ने उपस्थित सभी अधिकारियों और अन्य लोगों का आभार जताया। 

मंडलायुक्त के लिए राज्यमंत्री ने तोड़ा प्रोटोकॉल 

इस मौके पर राज्य मंत्री श्रम एवं सेवायोजन विभाग, मनोहर लाल पंथ (Manohar Lal Panth) ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए मंडलायुक्त आवास जाकर डॉ. अजय शंकर पांडेय का माल्यार्पण कर उनका अभिनन्दन किया। राज्यमंत्री ने डॉ. पांडेय का स्वागत कर उनके भविष्य के लिए स्वास्थ्य, सुकीर्ति तथा यश कामना की। उनके लिए एक सम्मान-पत्र पढ़ा और श्रीफल व अंगवस्त्र भेंट किया। मंडलायुक्त के इस अंतिम कार्यकाल को उन्होंने अविस्मरणीय बताया। बुंदेलखंड सांस्कृतिक समिति के संयोजक आर.एन. शुक्ला ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि, मंडलायुक्त की इस अभिनव सोच का अनुसरण अन्य अधिकारियों को भी करना चाहिए।

लोगों के साथ रहा गहरा जुड़ाव

इस मौके पर डॉ. नीति शास्त्री ने कहा, कि वो सन 1962 से मंडलायुक्त कार्यालय के संपर्क में रहीं हैं, मगर अभी तक मंडल में डॉ. अजय शंकर पांडेय जैसी वृहद सोच वाले आयुक्त नहीं आए। उन्होंने कहा, मंडलायुक्त का लोगों के साथ गहरा जुड़ाव रहा। कोई भी व्यक्ति बड़ी आसानी से मंडलायुक्त से उनके दफ्तर में मिलकर अपनी समस्याओं का सकारात्मक निदान प्राप्त कर सकता था। उनकी इसी सहजता के फलस्वरूप उनके विदायी समारोह में आमलोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। 

'बिसरी बुंदेली कलाओं को नव जागृति किया' 

आपको बता दें कि, झांसी के मंडलायुक्त रहते हुए डॉ. अजय शंकर पांडेय (Dr. Ajay Shankar Pandey) ने बुंदेलखंड के साहित्य, कला एवं संस्कृति समितियों में सक्रिय भूमिका निभाई। मंडलायुक्त के साथ काम करने वाले वरिष्ठ कवि, लोक भूषण पन्ना लाल असर (Lokbhushan Shri Pannalal Asar) ने सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि मंडलायुक्त ने बिसरी हुई बुन्देली कलाओं को नव जागृति व पहचान प्रदान की है। उनके जाने के बाद शासन-प्रशासन को भी इस परंपरा को आगे ले जाना चाहिए। साथ ही, बुन्देली धरोहरों का देश और विदेश में प्रचार-प्रसार होना चाहिए।



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