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Kargil Vijay Diwas 2022: कैप्टन मनोज पांडेय जिसने इंटरव्यू में ही कहा था 'परम वीर चक्र जीतना मेरा सपना'

Kargil Vijay Diwas 2022 : देशवासी आज जिस खुली हवा में सांस ले पाते हैं वो यूं ही नहीं मिली। उसके लिए सेना के जवानों ने अनेक कुर्बानियां दी हैं। 26 जुलाई को जब देश एक बार फिर कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas 2022) मना रहा है तो ऐसे में 'परमवीर चक्र' विजेता कैप्टन मनोज कुमार पांडेय (Captain Manoj Kumar Pandey) के बलिदान को कैसे भूल सकता है। गोरखा रेजिमेंट (Gurkha Regiment) के इस जवान ने अपने इरादे तभी जाहिर कर दिए थे जब उसने एक इंटरव्यू में कहा था, 'परमवीर चक्र जीतना मेरा सपना' है। उस सपने के देश के इस सपूत ने पूरा भी किया।

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय करगिल युद्ध में देश की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान को प्राप्त हुए थे। कैप्टेन मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सीतापुर जिले के रुधा गांव (Rudha village of Sitapur district) में हुआ था। 3 जुलाई 1999 को मात्र 24 साल की उम्र में कैप्टन मनोज पांडे करगिल युद्ध (Kargil War) में वीरगति को प्राप्त हुए। दुश्मन की गोलियां लगने और शहीद होने से पहले कैप्टन मनोज पांडेय ने कारगिल के खालोबार चोटी पर तिरंगा लहराकर उस पूरे युद्ध का रुख ही बदल दिया था। उनके इसी वीरता के लिए उन्हें सेना के सर्वोच्च नागरिक सम्मान परमवीर चक्र (Param Vir Chakra) से सम्मानित किया गया।

पहले सैनिक स्कूल और फिर एनडीए

कैप्टन मनोज पांडेय (Captain Manoj Pandey) का जन्म यूपी के सीतापुर जिले के एक गरीब परिवार में हुए था। उनके पिता का नाम गोपीचन्द्र पांडेय (Gopi Chandra Pandey) और माता का नाम मोहिनी (Mohini) था। लखनऊ सैनिक स्कूल (Lucknow Sainik School) से शिक्षा ग्रहण करने के बाद वो (मनोज पांडेय) ने पुणे (Pune) के करीब खड़कवासला (Khadakwasla) स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defense Academy) में प्रशिक्षण प्राप्त किया। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद कैप्टन पांडेय 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट (11 Gorkha Rifles Regiment) की पहली वाहनी के अधिकारी बने।

सियाचिन से लौटे समय बुलावा

कैप्टन मनोज पांडेय की पहली तैनाती ही सुरक्षा के संबंध में अतिसंवेदनशील माने जाने वाले कश्मीर (Kashmir) में हुई। कैप्टन ने अपनी सेवाएं सियाचिन (Siachen) में भी दी। कहते हैं जब कैप्टन पांडेय सियाचिन से लौट रहे थे, उसी दौरान कारगिल युद्ध (kargil war) छिड़ गया। हालांकि, कैप्टन मनोज पांडेय की गिनती उन कर्मठ अधिकारियों में होती थी जो अपने काम को पूरी शिद्दत से पूरा किया करता था। मनोज पांडेय को जानने वाले बताते हैं वे हमेशा आगे बढ़कर नेतृत्व को तैयार रहते थे। शुरुआत में उन्हें कुकरथांग (kukrathang), जूबरटॉप (zoobertop) जैसी पहाड़ियों को दुश्मन हाथों से आजाद कराने की जिम्मेदारी मिली थी, उसे उन्होंने बखूबी निभाया।

खालोबार चोटी पर कब्जा की मिली जिम्मेदारी

इन शुरुआती सफलताओं के बाद कैप्टन मनोज पांडेय से उम्मीदें काफी बढ़ गई। इसके बाद उन्हें खालोबार चोटी (khalubar Hills) पर कब्जा करने की नई जिम्मेदारी सौंपी गई। बता दें कि, इस पूरे मिशन का नेतृत्व कर्नल ललित राय (Colonel Lalit Rai) के हाथों में था। कर्नल राय कहते हैं, 'उस वक़्त खालोबार हिल फतह करना रणनीतिक नजरिए से बेहद अहम था। उन्होंने बताया भारतीय आर्मी जानती थी, कि इस चोटी पर कब्जा करते ही पाकिस्तानी सेना के दूसरे ठिकाने स्वयं ही कमजोर हो जाएंगे। क्योंकि, इस चोटी पर कब्जे के बाद दुश्मन सेना को रसद पहुंचाने तथा वापसी आदि में परेशानी हो जाएगी।

चोटी पर चढ़ाई, जोखिम भरा फैसला

खालोबार हिल्स पर हमले के लिए अब गोरखा राइफल्स (Gurkha Rifles) की दो कंपनियां तैयार थी। इन टुकड़ियों के साथ कर्नल ललित राय और कैप्टन पांडे भी थे। इन दोनों टुकड़ियों के ऊपर चढ़ने के साथ ही चोटी पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलीबारी शुरू कर दी। जान बचाने के लिए भारतीय सैनिकों को इधर-उधर छुपना पड़ा। आप उस वक्त का नजारा सोचिए जब करीब 60 से 70 मशीन गनें गोलियां बरसा रहीं हों साथ ही दुश्मन सेना गोले भी फेंक रहे हों, ऐसे में भारतीय सैनिकों को चोटी पर तिरंगा लहराना था। कर्नल राय ने कैप्टन मनोज पांडे से कहा था, कि 'तुम अपनी प्लाटून (Platoon) के साथ ऊपर जाओ, वहां चार बंकर दिखाई दे रहे हैं जिन पर धावा बोलकर उन्हें खत्म करना है।'

लहुलूहान मनोज ने भागते पाक सैनिकों को भी नहीं बख्शा

कैप्टन मनोज पांडेय ऊपर चढ़ने लगे। वहां पहुंचकर उन्होंने रिपोर्ट दी, कि वहां चार नहीं छह बंकर हैं। इनमें से दो बंकर कुछ दूरी पर थे। जिन्हें खत्म करने के लिए हवलदार दीवान आगे बढे और दोनों बंकर नष्ट करते हुए शहीद हो गए। शेष बंकरों के लिए मनोज रेंगते हुए अपने साथियों के साथ आगे बढ़े। मनोज ने बंकरों तक पहुंचकर उन्हें ग्रेनेड डालकर नष्ट कर दिया। लेकिन, चौथे बंक में ग्रेनेड फेंकते समय उन्हें गोलियां लग गई। लहुलूहान मनोज के सिर में भी कुछ गोलियां लगी। लेकिन, उन्होंने गिरते हुए कहा 'ना छोड़नूं'। इतने में वो जमीन पर गिर पड़े। चौथे बंकर में फेंका उनका ग्रेनेड भी फट पड़ा। जिससे बचकर भागने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की मौत हो गई। शहीद होते-होते भी कैप्टन मनोज पांडेय अपना काम कर गए।

कैप्टन मनोज पांडेय पांडे मात्र 24 साल की उम्र में देश के लिए शहीद हो गए। अपने पीछे उन्होंने वीरता की ऐसी कहानी लिख दी जो इतिहास बन गया। कैप्टन पांडे के कारनामे ने कारगिल युद्ध में भारत का पलड़ा भारी कर दिया। खालोबार हिल्स फतह के बाद भारतीय सेना ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कैप्टन मनोज पांडेय को उनकी इसविरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।



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