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यादव कुल में एकता के अंकुर की अकुलाहट

मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: इसे पूरे देश में चल रही मोदी की आंधी का असर कहे या लोकसभा चुनाव के बाद बसपा सुप्रीमों मायावती से मिले कड़वे सबक का नतीजा कि अब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और संप्रग अध्यक्ष शिवपाल यादव को फिर पारिवारिक एकता याद आने लगी है। कल तक एक-दूसरे को फूंटी आंख न सुहाने वाले चाचा-भतीजे को एक बार फिर परिवार की एकता की फिक्र होने लगी है।

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चाचा शिवपाल ने जहां मैनपुरी में कहा कि कुछ षड़यंत्रकारी लोग परिवार की एकता में बाधक है और उनकी तरफ से सुलह की पूरी गुंजाइश है तो इधर लखनऊ में भतीजे अखिलेश ने भी चाचा को निराश नहीं किया। अखिलेश ने कहा कि सबके लिए दरवाजे खुले है, जो आना चाहे, आ सकता है। आंख बंद करके पार्टी में शामिल कर लेंगे।

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दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की पूरे देश में चल रही प्रचंड आंधी का मुकाबला करने के लिए अब विपक्षी दलों ने अपनी रणनीतियां बदलनी शुरू कर दी है। यूपी में आगामी विधानसभा उपचुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए ही अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल ने एक बार फिर साथ आने के संकेत दिए है।

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वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के पहले समाजवादी पार्टी में हुए विवाद के बाद जहां अखिलेश, सपा पर काबिज हो गये तो शिवपाल ने अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली। दोनों ही 2019 का लोकसभा चुनाव अलग-अलग लड़े। बीते लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ महागठबंधन बना कर चुनाव लड़ा लेकिन इससे फर्श पर आ चुकी बसपा को तो फायदा हो गया लेकिन सपा की सीटों में कोई इजाफा नहीं हुआ।

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बल्कि, सपा अध्यक्ष की पत्नी डिम्पल यादव और भाई धर्मेंद्र यादव भी चुनाव हार गये। लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद बसपा सुप्रीमों ने हार का ठीकरा भी सपा के सिर फोड़ दिया। इधर, शिवपाल यादव ने अपनी अलग पार्टी बना तो जरूर ली लेकिन कुछ सपा का वोट काटने और भाजपा को फायदा पहुंचाने के अलावा कुछ खास नहीं हासिल कर पाये।

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अब यूपी में 13 सीटों पर विधानसभा का उपचुनाव होना है। ऐसे में जहां सपा को बहुत मजबूत हो चुकी भाजपा से मोर्चा लेना है तो वहीं बसपा ने उपचुनाव लड़ने का ऐलान करके उसकी मुसीबत बढ़ा दी है। सपा मुखिया अखिलेश इस बड़ी मुश्किल से बाहर निकलना तो चाहते है लेकिन वह यह भी जानते है कि वह अकेले इस मुश्किल से नहीं निपट सकते है।

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इसके साथ ही पूर्व में कांग्रेस और हाल ही में बसपा से गठबंधन के कड़वे अनुभव के बाद अब वह किसी भी दल से गठबंधन करने में हिचक रहे है। इस मुश्किल घड़ी में ही अखिलेश को फिर अपने चाचा की याद आ गई है।

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पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अखिलेश यादव की रणनीति है कि पहले सपा को मजबूत कर ले उसके बाद ही किसी भी दल से गठबंधन किया जाएं। खबर है कि ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभाषपा से गठबंधन की भी सभी बाते तय हो गयी है लेकिन यह गठबंधन चाचा-भतीजे के साथ आने के बाद ही सामने आयेगा। इसी तरह कुछ और छोटे राजनीतिक दलों के साथ भी सपा की गठबंधन की बात चल रही है।

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