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कोचेरिल रमण नारायण की जीवनी | K R Narayanan Biography in Hindi

K R Narayanan – कोचेरिल रमण नारायण भारत के दसवे राष्ट्रपति थे।1992 में उनकी नियुक्ती देश के नौवे उपराष्ट्रपति के रूप में की गयी, फिर 1997 में नारायण देश के राष्ट्रपति बने थे। दलित समुदाय से राष्ट्रपति बनने वाले वे पहले और एकमात्र राजनेता थे।

कोचेरिल रमण नारायण की जीवनी – K R Narayanan Biography in Hindi

नारायण एक स्वतंत्र और मुखर राष्ट्रपति के नाम से प्रसिद्ध थे, जिन्होंने अपने कार्यो की बहुत सी मिसाल स्थापित कर रखी थी। वे खुद को “कार्यकारी राष्ट्रपति” बताते थे जो “संविधान के चारो कोनो में काम करते थे”, उन्होंने “कार्यकारी राष्ट्रपति” जिनके पास पूरी ताकत होती है और “रबर स्टैम्प राष्ट्रपति” जो बिना की प्रश्न और विरोध के सरकार के निर्णयों का समर्थन करते थे, इन दोनों के बीच का रास्ता चुना। वे अपनी विवेकाधीन शक्तियों का उपयोग राष्ट्रपति के रूप में करते थे, पने निर्णयों से उन्होंने देश के राजनीतिक इतिहास में बहुत सी मिसाले कायम की है, जिनमे त्रिशुंक संसद भवन में प्रधानमंत्री की नियुक्ती करना भी शामिल है, जहा सरकार कारगिल युद्ध के समय यूनियन कैबिनेट की राय पर राष्ट्रपति शासन लागु करवाना चाहती थी। उनकी अध्यक्षता में ही भारत की आज़ादी का गोल्डन जुबली सेलिब्रेशन किया गया और 1998 के जनरल चुनाव में वे कार्यालय में वोट करने वाले पहले राष्ट्रपति बने, इस तरह उन्होंने एक और नयी मिसाल कायम की।

प्रारंभिक जीवन –

के. आर. नारायण का जन्म उज्हवूर के पेरुमथानम में एक छोटी सी फूस की झोपडी में कोचेरिल रमण विद्यार के सात बच्चो में से चौथे बच्चे के रूप में हुआ था, वे सिद्धा और आयुर्वेद की पारंपरिक भारतीय औषधि प्रणाली के व्यवसायी थे। उनका परिवार काफी गरीब था, लेकिन चिकित्सा के क्षेत्र में उनके पिता कुशाग्र बुद्धि के होने की वजह से उनका बहुत सम्मान किया जाता था। 4 फरवरी 1921 में उनका जन्म हुआ था लेकिन उनके अंकल को उनके वास्तविक जन्मतिथि के बारे में नही पता और इसीलिए मनमाने ढंग से उनका जन्म 27 अक्टूबर 1920 को ही माना गया, नारायण ने भी इसी जन्म तारीख को अधिकारिक रखने का निर्णय लिया था।

कुरिचिथानाम की गवर्नमेंट लोअर प्राइमरी स्कूल से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की थी और इसके बाद उज्हवूर की लौर्डस अप्पर प्राइमरी स्कूल से उन्होंने बाद की शिक्षा (1931-1935) ग्रहण की। स्कूल जाने के लिए वे रोज धान के खेत से 15 किलोमीटर पैदल चलकर जाते थे और उस समय वे स्कूल की फीस देने में भी असमर्थ थे। कयी बार उन्हें कक्षा के बाहर खड़े रहकर ही पढाये जा रहे पाठ को सुनना पड़ता था क्योकि फीस पूरी ना भरने की वजह से उन्हें कक्षा में प्रवेश नही दिया जाता था। उनके परिवार के पास नारायण की किताबे खरीदने के लिए भी पैसे नही थे और उनके बड़े भाई के.आर. नीलकांतन, अस्थमा की बीमारी की वजह से घर पर ही रहते थे, वे दुसरे विद्यार्थियों से किताबे उधार लेते थे, उनकी कॉपी करते थे और फिर उन किताबो को नारायण को देते थे। कूथात्तुकुलम कुरविलंगद की सेंट जॉन हाई स्कूल से उन्होंने मेट्रिक की पढाई पूरी की। इसके बाद कोट्टायम के सी.एम.एस. कॉलेज से उन्होंने माध्यमिक पढाई पूरी की और त्रवंकोर शाही परिवार से उन्हें शिष्यवृत्ति भी मिली थी।

इसके बाद त्रवंकोर (वर्तमान केरला यूनिवर्सिटी) यूनिवर्सिटी से उन्होंने इंग्लिश साहित्य में बी.ए. और एम.ए. की उपाधि ग्रहण की, उस समय पूरी यूनिवर्सिटी से वे प्रथम स्थान पर आए थे, और साथ ही त्रवंकोर में फर्स्ट क्लास में पास होकर इस डिग्री को हासिल करने वाले पहले दलित भी बने।
समय के साथ-साथ उनके परिवार को गंभीर समस्याओ का सामना करना पड़ रहा था, इसीलिए वे तुरंत दिल्ली चले गये और कुछ समय तक जौर्नालिस्ट के रूप में दी हिन्दू और दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया (1944-45) तक काम करते रहे। इस समय में उन्होंने अपनी इच्छा से ही 10 अप्रैल 1945 को महात्मा गाँधी का इंटरव्यू भी लिया था। नारायण इसके बाद इंग्लैंड चले गये और लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में राजनीती विज्ञान का अभ्यास करने लगे। कार्ल पापर, लिओनेल रॉबिन्स और फ्राइडरिच हायेक के लेक्चर भी सुनते थे। इसके बाद जे.आर.डी. टाटा द्वारा प्राप्त शिष्यवृत्ति से राजनीती विज्ञान में बीएससी (अर्थशास्त्र) में डिग्री हासिल की। लन्दन में बिताये हुए समय में, वे अपने सहयोगी के.एन. राज के साथ इंडियन लीग में सक्रीय थे।के.एम. मुंशी द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका सामाजिक कल्याण में वे लन्दन के संवाददाता भी थे।

परिवार –

बर्मा के रंगून में के.आर. नारायण मा टिंट टिंट से मिले, जिनसे उन्होंने दिल्ली में 8 जून 1951 को शादी कर ली। मा टिंट टिंट YWCA के सक्रीय सदस्य थे। भारतीय लॉ के अनुसार उनकी शादी को नेहरु से विशेष व्यवस्था चाहिए थी क्योकि नारायण उस समय आईएफएस में थे और वह फॉरेनर बनी। माँ टिंट टिंट ने इसके बाद उषा का नाम अपना लिया और भारतीय नागरिक बने। उषा नारायण (1923-2008) बहुत से सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में महिलाओ और बच्चो के लिए काम करती थी और नयी फिल्ली की सामाजिक कार्य शाला से उन्होंने सोशल वर्क में मास्टरी भी कर रखी थी। साथ ही उन्होंने बहुत सी बर्मी लघु कथाओ को परिवर्तित कर प्रकाशित भी किया। उन्हें दो बेटियाँ भी है, चित्रा नारायण (स्विट्ज़रलैंड में भारतीय एम्बेसडर) और अमृता।

राजनीतिक दीक्षा –

इंदिरा गांधी की प्रार्थना पर ही नारायण ने राजनीती में प्रवेश किया था और 1984, 1989 और 1991 में केरला के पलक्कड़ की ओट्टापलम निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए कांग्रेस की सीट से लगातार तीन जनरल चुनाव जीते। साथ ही वे राजीव गाँधी की यूनियन कैबिनेट में राज्य के मिनिस्टर भी थे, जिन्होंने योजना (1985), एक्सटर्नल अफेयर (1985-86) और विज्ञान और तंत्रज्ञान (1986-89) जैसे विभाग में उन्होंने काम किया था। संसद के सदस्य के रूप में , भारत में पेटेंट कण्ट्रोल पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव का उन्होंने विरोध किया था। लेकिन फिर 1991 में जब कांग्रेस के हातो में ताकत आयी थी तब नारायण को कैबिनेट में शामिल नही किया गया। केरला के कांग्रेस मुख्यमंत्री के. करुणाकरण उनके राजनीतिक सलाहकार ने उन्हें मिनिस्टर ना बनाने की वजह को बताते हुए उन्होंने नारायण को “कम्युनिस्ट साथी यात्री” बताया।

इसके बाद 21 अगस्त 1992 को शंकर दयाल शर्मा के राष्ट्रपति काल में उनकी नियुक्ती भारत के उप-राष्ट्रपति के रूप में की गयी। उनके नाम की सिफारिश भूतपूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल ले लीडर व्ही.पी. सिंह ने की थी। बाद में पी.व्ही नरसिम्हा राव की सहायता से बिना कीसी विरोध के उन्हें चुना गया था। लेकिन फिर बाद में नारायण और नरसिम्हा राव के रिश्तो की बाद करते हुए यह पता चला की उनमे कोई कम्युनिस्ट अंतर नही बल्कि वैचारिक अंतर था, लेकिन फिर भी नरसिम्हा उन्हें उपराष्ट्रपति बनने के लिए सहायता रहे, और बाद में राष्ट्रपति पद के लिए भी नरसिम्हा ने नारायण की काफी सहायता की थी। नरसिम्हा की सहायता से नारायण को काफी फायदा हुआ था, और बाद में सभी राजनेताओ ने उपराष्ट्रपति के रूप में उन्हें स्वीकारा था।

राष्ट्रपति पद –

चुनाव में कुल 95% वोट हासिल करते हुए 14 जुलाई के राष्ट्रपति पद पोल में 17 जुलाई 1997 को के.आर. नारायण की नियुक्ती भारत के राष्ट्रपति के रूप में की गयी। देश का यह एकमात्र राष्ट्रपति चुनाव था जिसमे माइनॉरिटी सरकार को भी मत डालने का अधिकार था। टी.एन. सेशन एकमात्र उनके विरोधी उम्मेदवार थे और बाकी सभी पार्टियों ने उनके नाम का समर्थन किया था।

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