सर फिरोजशहा मेहता – Pherozeshah Mehta एक पारसी भारतीय राजनितिक नेता, कार्यकर्त्ता और मुंबई भारत के वकील थे. जो उनके तरीको से ब्रिटिश सरकार से लढते थे. उनके भारतीय इतिहास में महत्त्व को हम इस तरह समझ सकते है की इतिहास के कई नेता उनसे क़ानूनी सलाह लेते थे और फिरोजशहा मेहता जी की नीतियों को अपनाकर ब्रिटिश अधिकारियो को धुल चटाते थे. फिरोजशहा मेहता जी कभी सीधे तरीके से ब्रिटिशो से नहीं लडे बल्कि वे क़ानूनी दावपेचो से ब्रिटिशो को धुल चटाते थे.
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फिरोजशहा मेहता जीवनी – Pherozeshah Mehta Biography In Hindi
पूरा नाम – फिरोजशहा मेहरवांजी मेहता
जन्म – 4 अगस्त 1845
जन्मस्थान – बम्बई
पिता – मेहरवांजी
शिक्षण – 1864 में बंम्बई के एल्फिस्टन विश्वविद्यालय से बी.ए. और छे महीने बाद एम.ए. की परिक्षेमें उत्तीर्ण. 1868 में बॅरिस्टर की उपाधि संपादन की.
1873 में वे बॉम्बे नगरपालिका के नगरीय कमिश्नर बने साथ ही 1884, 1885, 1905 और 1911 में अध्यक्ष भी बने. 1890 में उन्हें भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भी चुना गया.
फिरोजशहा मेहता का प्रारंभिक जीवन – Feroz Shah Mehta Early Life Information In Hindi
फेरोजशाह मेर्वंजी मेहता का जन्म जन्म 4 अगस्त 1845 को बॉम्बे (मुंबई) में पारसी व्यापारी परिवार में हुआ था. मेहता Elphinstone College से ग्रेजुएट हुए और 1864 में उन्होंने M.A . की परीक्षा पास की, और इसी सम्मान के साथ 6 महीने बाद वे पारसी परिवार से मुंबई विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बने. बाद में वे लॉ की पढाई करने के लिए इंग्लैंड गये जहा लन्दन में लिंकोन इन् में उन्होंने शिक्षा प्राप्त की.
1868 में वे भारत वापिस आये और उन्होंने अपनी वकिली का प्रशिक्षण भी शुरू किया जहा वे हमेशा से ही ब्रिटिश वकीलों पर हावी रहे.
आर्थर क्रावफोर्ड के क़ानूनी प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने बॉम्बे नगरपालिका को पुनर्निर्मित करने की ठानी, और अपना प्रस्ताव भी उनके सामने रखा था. और इसी और देखते हुए उन्होंने मुंबई नगरपालिका एक्ट 1872 पारित किया, और तभी से वे मुंबई महानगरपालिका के जनक कहलाते है.
और अंत में अचानक राजनीती में शामिल होने के लिए उन्हें अपना वकिली का प्रशिक्षण छोड़ना पड़ा.
सर फेरोजशाह मेहता इतिहास के महान क्रांतिकारियों में से ही एक थे. वे अपने क़ानूनी दावपेचो से बड़े से बड़े अंग्रजी अधिकारी को भी धुल चटा देते. उन्होंने अपने क़ानूनी ज्ञान की बदौलत उस समय कई राजनीतिज्ञों की सहायता की और उन्हें ब्रिटिश अधिकारियो से बचाया भी. ब्रिटिश राज होने के बावजूद उस समय कई ब्रिटिश अधिकारी सर मेहता से डरते थे.
एक नजर में फिरोजशाह की जानकारी – Pherozeshah Mehta History In Hindi
1868 में बंम्बई उच्च न्यायलय में वो वकिली करने लगे.
1872 में वो बंम्बई महापालिके के सदस्य बने. तीनबार वो अध्यक्ष भी बने. उनका 38 साल बंम्बई महापालिकेपर वर्चस्व था.
1885 में ‘बॉम्बे प्रेसिडेंसी असोसिएशन’ की स्थापना उन्होंने कि. वो उसके सचिव हुवे.
1886 में ‘बंम्बई लेजिस्लेटिव्ह कॉन्सिल’ के वो सदस्य बने.
1889 में बंम्बई विद्यापिठ्के सिनेटके सदस्य बने वैसेही बंम्बई में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेसके स्वागत समितीके अध्यक्ष हुये.
1890 (कलकत्ता) और 1909 (लाहोर) यहाके भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के अधिवेशन के उन्होंने अध्यक्षस्थान पर थे.
1892 में पांचवे बंम्बई प्रांतीक समेंलनके अध्यक्षस्थान पर थे.
1911 में ‘सेंट्रल बॅक ऑफ इंडिया’ के स्थापना में उनको महत्वपूर्ण योगदान था.
1913 में ‘द बॉम्बे क्रॉनिकल’ नामके अखबार का प्रकाशन उन्होंने किया.
फिरोजशाह मेहता संवैधानिक तरीकों से आजादी पाने की दिशा में सतत प्रयत्न करते रहे, इनके योगदान को आज भी याद किया जाता है, 5 नवंबर, 1915 के दिन उनका देहावसान हो गये.
Pherozeshah Mehta Death – मृत्यु : 5 नव्हंबर 1915 में बंम्बई में उनका निधन हुवा.
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