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स्वामी दयानंद सरस्वती | Swami Dayanand Saraswati In Hindi

उन्नीसवीं शताब्दी के महान समाज-सुधारकों में स्वामी दयानंद सरस्वती – Swami Dayanand Saraswati का नाम अत्यंत श्रध्दा के साथ लिया जाता है. जिस समय भारत में चारों ओर पाखंड और मुर्ति-पूजा का बोल-बाला था, स्वामी जी ने इसके खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने भारत में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए 1876 में हरिव्दार के कुंभ मेले के अवसर पर पाखण्डखंडिनी पताका फहराकर पोंगा-पंथियों को चुनौती दी. उन्होंने फिर से वेद की महिमा की स्थापना की. उन्होंने एक ऐसे समाज की स्थापना की जिसके विचार सुधारवादी और प्रगतिशील थे, जिसे उन्होंने आर्यसमाज के नाम से पुकारा.

स्वामी दयानंद सरस्वती – Swami Dayanand Saraswati In Hindi

पूरा नाम       – मूलशंकर अंबाशंकर तिवारी.
जन्म            – 12 फरवरी 1824
जन्मस्थान   – टंकारा (मोखी संस्थान, गुजरात).
पिता             – अंबाशंकर.
माता             – अमृतबाई.
शिक्षा            – शालेय शिक्षा नहीं ले पाये.
विवाह           – शादी नहीं की.

जीवन पलट देनेवाली घटना – एक बार शिवरात्री थी. पिताजी ने कहा, “मुलशंकर, आज सभी ने उपवास करके रातभर मंदीर में जगना और शिवजी की पूजा करना.” ये सुनकर मुलशंकर ने उपवास किया. दीन खतम हुवा, रात हुयी. मुलशंकर और पिताजी शिवजी के मंदीर गये. उन्होंने पूजा की. रात के बारा बज गये. पिताजी को नींद आने लगी. पर मुलशंकर जागता रहा. मेरा उपवास निरर्थक जायेगा इस से वो सोया नही. मंदिर में के चूहे बिल में से बाहर आये. और शिव जी के पास घूमने लगे. वहा के प्रसाद खाने लगे. ये नजारा देखकर जो मूरत चूहों से अपनी रक्षा नहीं कर सकती. वो भक्तो को संकट में कैसी रक्षा करेगी. मूरत में कोई सामर्थ्य नही होता, तो मुर्ति पूजा को भी कोई अर्थ नहीं, ऐसे अनेक विचार उनके मन आने लगे उस समय से उनके मन में धर्म के विषय में जिज्ञासा जागृत हुयी. भगवान का शाक्ष्वत स्वरूप और धर्म का सच्चा अर्थ जानने की इच्छा और बढी.

जीवन क्या है? मृत्यु क्या है? इन सवालों के जवाब सक्षम महात्मा से समझ लेना चाहिये, ऐसा उन्हें लगा. इस ध्येय प्राप्ती के लिये उन्होंने 21 साल की उम्र में अपना घर छोड़ा. उनके परिवार के बड़े सदस्योने उनकी विवाह के बारे में चलाये विचार ये उनके इस निर्णय के दलील हुयी. भौतिक सुख का आनंद लेने के अलावा खुद की आध्यात्मिक उन्नत्ती करवा लेना उन्हें अधिक महत्त्वपूर्ण लगा. उन्होंने मथुरा में स्वामी विरजानंद जि के पास रहकर वेद आदि आर्य-ग्रंथों का अध्ययन किया. गुरुदक्षिणा के रूप में स्वामी विरजानंद जी ने उनसे यह प्रण लिया कि वे आयु-भर वेद आदि सत्य विद्याओं का प्रचार करते रहेंगे. स्वामी दयानंद जी ने अंत तक इस प्रण को निभाया.

स्वामी दयानंद जी का कहना था कि विदेशी शासन किसी भी रूप में स्वीकार करने योग्य नहीं होता. स्वामी जी महान राष्ट्र-भक्त और समाज-सुधारक थे. समाज-सुधार के संबंध में गांधी जी ने भी उनके अनेक कार्यक्रमों को स्वीकार किया. कहा जाता है कि 1857 में स्वतंत्रता-संग्राम में भी स्वामी जी ने राष्ट्र के लिए जो कार्य किया वह राष्ट्र के कर्णधारों के लिए सदैव मार्गदर्शन का काम करता रहेगा. स्वामी जी ने विष देने वाले व्यक्ति को भी क्षमा कर दिया, यह बात उनकी दयाभावना का जीता-जागता प्रमाण है.

Swami Dayanand Saraswati Biography In Hindi :

दयानंद सरस्वती का जन्म एक हिंदु धर्म के नेता के रूप में हुआ, वे आर्य समाज के संस्थापक थे. हिन्दुओ में वैदिक परंपरा को मुख्य स्थान दिलवाने के अभियान में उनका मुख्य हात था. वे वैदिक विद्या और संस्कृत भाषा के विद्वान थे. वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने स्वराज्य की लड़ाई शुरू की जिसे 1876 में “भारतीयों का भारत” नाम दिया गया, जो बाद में लोकमान्य तिलक ने अपनाया. उस समय हिन्दुओ में मूर्ति पूजा काफी प्रचलित थी, इसलिए वे उस समय वैदिक परंपरा को पुनर्स्थापित करना चाहते थे. परिणामस्वरूप महान विचारवंत और भारत के राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन ने उन्हें “आधुनिक भारत के निर्माता” कहा, जैसा की उन्होंने श्री औरोबिन्दो को कहा था.

जिनपर दयानंद का बहोत प्रभाव पड़ा, और उनके अनुयायियों की सूचि में मॅडम कामा, पंडित लेख राम, स्वामी श्रद्धानंद, पंडित गुरु दत्त विद्यार्थी, श्याम कृष्णन वर्मा (जिन्होंने इंग्लैंड में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का घर निर्मित किया था), विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मैडम लाल धींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, महादेव गोविन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय और कई लोग शामिल थे. दयानंद सरस्वती द्वारा किया गया सबसे प्रभावी कार्य मतलब ही उनकी किताब “सत्यार्थ प्रकाश” थी. जिसमे भारतीय स्वतंत्रता की नीव रखी गयी. वे लकड़पन (Boyhood) से ही सन्यासी और विद्वान थे, जो वेदों की अपतनशील शक्तियों पर भरोसा रखते थे.

महर्षि दयानंद कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत के अधिवक्ता थे. वे वैदिक क्रिया जैसे ब्रह्मचर्यं और भगवान की भक्ति पर ज्यादा ध्यान देते थे. अध्यात्म विद्या विषयक समाज और आर्य समाज को 1878 से 1882 तक एकजुट किया गया. जो बाद में आर्य समाज का ही भाग बना. महर्षि देवानंद के महान कार्यो में महिलायों के हक्को के लिए लड़ना भी शामिलहै. महिलाओ के हक्क जैसे- पढाई करने का अधिकार, वैदिक संस्कृति पढने का अधिकार इन सब पर उन्होंने उस समय ज्यादा जोर दिया, ताकि सभी लोग हिंदु संस्कृति को अच्छी तरह से जान सके. दयानंद वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दलितों को स्वदेशी और हरिजन अजिसे नाम दिए और महात्मा गाँधी से पहले अछूत परंपरा को दूर किया था.

भारतीय स्वतंत्रता के अभियान में महर्षि दयानंद सरस्वती का बहोत बड़ा हात था. उन्होंने अपने जीवन में कई तरह के समाज सुधारक काम किये. और साथ लो लोगो को स्वतंत्रता पाने के लिए प्रेरित भी किया. आर्य समाज को स्थापित कर के उन्होंने भारत में डूब चुकी वैदिक परम्पराओ को पुनर्स्थापित किया और विश्व को हिंदु धर्म की पहचान करवाई. उनके बाद कई स्वतंत्रता सेनानियों ने उनके काम को आगे बढाया. और आज ऐसे ही महापुरुषों की वजह से हम स्वतंत्र भारत में रह रहे है.

ग्रंथ संपत्ती – Swami Dayanand Saraswati Book’s
‘सत्यार्थ – प्रकाश’,
‘ॠग्वेद भूमिका’,
वेदभाष्य,
संस्कार निधी,
व्यवहार भानू आदी ग्रंथ उन्होंने लिखे.

मृत्यु – Swami Dayanand Saraswati Death :  30 अक्टूबर 1883 मे स्वामी दयानंद का विष प्रयोग से देहांत हुवा.

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