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धूपा आरती

आरती साईं बाबा, सौख्य दातार जीवा
चरण रजताली, द्यावा दासा विसावा, भक्त विसावा - आरती ......
जया मणि जैसा भाव, तय तैसा अनुभव
दाविसी दयाधाना, ऐसी तुझी ही माव - आरती ......
तुमचे नाम ध्याता, हरे संस्कृती व्याथा
अगथ तव करनी, मार्ग दाविसी अनंता - आरती .....
कलियुगी अवतार, सगुण ब्रह्म साचार
अवतीर्ण झालासे, स्वामी दत्ता दिगंबर - आरती......
अथ दिवसा गुरुवारी, भक्त करी तिवारी
प्रभुपद पहावया, भव भय निवारी - आरती......
माझा निज्द्रव्य ठेवा,तव चरणरज सेवा
मागने हेची अत, तुम्हा देवाधिदेवा - आरती.......
इच्छित दिन चातक, निर्मल तोय निज सुख
पाजवे माधवाय, संभाल आपुली बाक - आरती.....

शिर्डी माझे पंढरपुर
साईं बाबा रमावर.............1
शुदा भक्ति चंद्र भगा
भव पुंडलिक जगा...........2
यहोयाहो अवघे जन
करा बाबा सी वंदन..........3
गनु म्हणे बाबा साईं
धाव पाव माजी आयेई.........4

घालीन लोटंगन वंदीन चरण
दोल्यानीपहीं रूप तुझे,
प्रेम आलिंगिन आनंदे पूजीं
भावे ओवालिन म्हंडे नामा......

त्वमेव माता पिता त्वमेव
त्वमेव बंधुचा सक्जा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविण त्वमेव
त्वमेव सर्व मम देव देव......
कायेन वाचा मनासोंद्रियेरुआ
बुध्यात्मना प्रकृति स्वभावत
करोमि यज्द्हत सकलं परस्मै
नारायणा येती समर्पयामि.....
अच्युतम केशवं रामनारायण
कृष्ण दामोधर वासुदेव हरिम
श्री धर माधव गोपिकवाल्लाब्हम
जन्किनायक रामचंद्र भजे...

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे


अनंता तुलाते कसेरे स्तावावे
अनंता तुलाते कसेरे नमावे
अनंता मुखांचा शिने शेष गाता
नमस्कार साष्टांग श्री साईं नाथ......
स्मरावे मणि त्वत्पदा नित्य भावे
उरावे तरी भक्ति साठी स्वभावे
तरावे जगा तारुनी मायताता-नमस्कार....
वसे जो सदा दावया संत लीला
दिसे अग्या लोकापरी जो जनाला
परी अंतरी द्यान कैवल्यदाता - नमस्कार....3
बरा लाघला जन्महा मानवाचा
नरा सार्थक साधनीभूत साचा
धरू साईं प्रेमा गलाया अहंता - नमस्कार...4
धरावे करी सन अल्पग्न्य बाला
करावे आम्हा धन्य चुम्बो निगाला
मुखी घाल प्रेमे खरा ग्रास अत - नमस्कार..
सुरादीक ज्यांच्या पदा वंदिताती
शुकादिक ज्यांते समानत्व देती
प्रयागादी तीर्थे पदी नम्र होता - नमस्कार..
तुज्या ज्यापदा पाहता गोपबाली
सदा रंगली चित्स्वरुपी मिलाली
कई रास्क्रिदा सर्वे कृष्णनाथ -नमस्कार..
तुला मान्गतो मांगने एक धावे
करा जोदितो दीं अत्यन्त भावे
भवि मोहनीराज हातारी आता - नमस्कार
साष्टांग श्री साईंनाथ..........

ऐसा एइबा साईं दिगम्बर
अक्षयरुप अवतार, सर्वही व्यापकतू
श्रुतिसारा, अनुसया त्रिकुमारा...ऐसा....
काशी स्नान जप, प्रति दिवशी
कोल्हापुर भिक्षेसी, निर्मल नदी तुंगा
जल प्राशी, निद्रा माहुर देशी...ऐसा ...2
झोलीलोम बतसे, वाम करी
त्रिशूल डमरू धारी, भक्त वरदा सदा, सुखकारी
देशील मुक्ति चारी...ऐसा...
साई पादुका, जपमाला, कमण्डलु मृगछाला
धारण करिशी बा, नाग जटा , मुकुट शोभतो
माथा...ऐसा.....
तत्पर तुझ्याया जेध्यानी, अक्षय त्यांचे सदवी
लक्ष्मी वासकरी, दिनरजनी
रक्षिसी संकट वारुनी...ऐसा...
या परीध्यान तुझे, गुरुराया
दृश्य करी नया नाया, पूर्ण-नन्द सूखे,
ही काया, लाविसी हरिगुन गाया...ऐसा...

सदा सतस्वरुपम चिदनन्द्कन्दम ,
जगत सम्भवअस्था संहार हेतुम
स्वभाकते छाया मानुष दर्शायनतम
नमामि श्वरम सद्गुरु साईं नाथं
भाव्दभावा विधावंसा मतंद्य मिद्यम
मनोवागाथितं मुनीरध्यान गम्यं
जगत द्यापकम निर्मलं निर्गुणंत्वा नमामि ...
भावाम्बोधी मग्नार्थ्रिताना जनाना
स्वपादा श्रीताना स्वभक्ति प्रियाणं
समुध्राना नारथं कलौ सम्भावानतम नमामि...
सदा निम्बवृक्षश्य, मुलाधिवासत
सुधास्राविनाम तिक्त मापी - अप्रियम तम।
तरुम्कल्पा वृक्षधिकम सांधयंतम नमामि ...
सदा कल्पवृक्षस्य तस्य धिमुले
भवद भाव बुध्या सपर्यादीसेवम
न्रिनाम कुर्वातम भुक्ति मुक्तिप्रदम तम नमामि ...
अनेक श्रुता तर्क्य लीला विलासे
समाविश ता क्रितेशन भास्वा तत प्रभावं
अहम् भाव हीनं प्रसन्नात्वाभावाम नमामि .....
सताम विषरामराम मेवाभिरामम
सदा सज्जने संस तुतम सनामब्धि
जनामोदादम भक्त भद्र प्रदम्तम नमामि....
अज्जन्माद्यमेकम परमब्रह्म साक्षात स्वयं
संभवं रामामेवा वतिर्मम
भवत दर्शानास्तम पुनीतः प्रभोहम नमामि...

श्री साईंश कृपानिधेखेल्न्रिनाम
सर्वार्थ सिद्धि प्रदा
युष्मत पादरज प्रभावमतुलं
धातापि वक्ताषम संतक्षाया शरणम कृतं
जली पुटा सम्प्रप्री तोस्मिनप्रभो
श्रीमत साईं परेश पाद कमला
नान्यं छरंयम मम
सल्रूप धारा रघ्वोत्तामम भक्तकाम
विबुधा द्रुमन प्रभुम
माययो पहत चित्त शुद्धये
चिन्तायाम्ह्माहर्निषम मुदा
शरद सुधाशु प्रतिमम प्रकाशम्
कृपतापत्रम तव साईं नाथ
त्वदीय पदाब्जी समां श्रीतानाम
स्वत्छायायाताप मपा करोतु
उपासना दैवता साईंनाथ
सता वैरामयोपसनिना स्तुत्स्वाम
रामेनामोंमें त्वत पादयुग्मे
भ्रिंगो यथाब्जे मकरंदा लुब्ध
अनेक जन्मर्जितापप संक्षयो
भवेत् भवत पदा सरोज दर्शनत
क्षमास्वा सर्वाना पराध पुन्जकान प्रसिद सैश
गुरु दयानिधे
श्री साईंनाथ चरणामृत पुर्नाचित्ता
स्तत्पाद सेवानरता स्तातेंचा भक्त्या
संसार जन्म्यधुरितो ध्विनिर्गातास्ते
कैवल्य धाम परम समव्प्नुवंती
स्तोत्रमेता पठेद भाकत्य यो नर्स्तान मनः सदा
सद्गुरु साईंनाथस्य कृपा पत्र भवेद ध्रुवं
साईंनाथ कृपा स्वर्दु सत्पध्य कुसुम्वाल्ल्ह
श्रयासेच मनः शुध्ये प्रेम्सुत्रें गुम्फिता
गोविन्द सुरी पुत्रेण कशिनाथ्भिधैना
उपसनित्यु पख्यें श्री साईं गुर्वेर्पिता
इति श्री साईंनाथ महिनमा स्तोत्रं सम्पूर्णं .......


रूसो मम प्रियाम्बिका मजवरी पिताही रूसो
रूसो मम प्रियांगना प्रिया सुतात्मा जाही रूसो
रूसो भगिनी बन्दुही श्वशुर सासुबाई रूसो
दत्ता गुरु साईंमा, मजवरी कदिहि रूसो.
पुसो सुनाबाईत्य, मजना भ्रात्रुजाया पुसो
पुसो प्रिया सोयरे, प्रिया सग्येना न्याती पुसो
पुसो सुहृदनासखा, स्वजन नापता बंधू पुसो
परिणा गुरु साईंमा मजवरी कदिहि रूसो .
पुसो अबला मुले, तरुण वृधाही, पुसो
पुसो गुरु धाकुटे मजना थोरसाने पुसो
पुसो भले बुरे, सुजन सभुही पुसो
परिन गुरु साईं मा मजवरी कदिही ruso
रूसो चतुर तत्व्वती विबुध प्रद्न्य ज्ञानी रूसो
रूसोही विदुषी स्त्रिया, कुशल पंडिताही रूसो
रूसो महीपति यति मजाक ताप सीही रूसो
दत्ता गुरु साईं मा, मजवरी कदिही रूसो.
रूसो कवि ऋषि मुनि, अनघा सिध योगी रूसो
रूसो ही गृहदेवता नि कुला ग्रामदेवी रूसो
रूसो खल पिशाचही, मलिन डाकिनीही रूसो
दत्ता गुरु साईं मा, मजवरी कदिही रूसो .
रूसो मृगा खग क्रीमी, अखिल जीव जंतु रूसो
रूसो विटप प्रस्तर अचल आपगाब्धि रूसो
रूसो ख्पव्नाग्निवार स्वानी पंचातात्वे रूसो
दत्ता गुरु साईं मा मजवरी कदिही रूसो
रूसो विमल किन्नर अमल यक्षिणीही रूसो
रूसो शशि खगादिही गगन तरकह्ल रूसो
रूसो अमरराज ही अद्य धर्मराज रूसो
दत्ता गुरु साईं मा मजवरी कदिही रूसो .
रूसो मन सरस्वती चपल चित्ततेहि रूसो
रूसो वपु दिशाखिला कठिन काल तोही रूसो
रूसो सकल विश्वाही मयितु ब्रम्हागोल्म रूसो
दत्ता गुरु साईं मा मजवरी कदिही रूसो .
विमूढा म्हणुणि हसो मजना मत्सराही दसो
पदा भी रूचि उल्हसो, जनन करदा मीना फसो
दुर्गा धृतिचा धसो, अशिव भाव मागे खसो
प्रपंची मनहे रूसो दृढ़ विरक्ति चिट्टी ठसो .
कुणाचीही घृणा नसों, नचा स्पृहा कशाची असो
सदैव हृदयी वसो, मन सिध्यानी साईं वसो
दत्ता गुरु साईं मा उपरिया चनेला रूसो .


हरी यज्ञेन जनता देवास्तानि धर्मानी प्र्थ्माहस्संना तेहननाका महिमाना संचत्र यत्र पूर्वाहे
साध्य सन्ति देवा
राजाधिराज प्रस्संना साहिने नमो
वयं वैश्रव्नाया कुर्महे
सा में कामानकामकामाय महयं
कामेश्वरो वैश्रवानो ददातु
कुबेराय वैश्रवनाया महाराजाय नमः
स्वस्ति साम्राज्यं भोज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पार्मेश्ठयम राज्यं महाराज्यम मधिपत्य
मयम समन्त्पर्याया स्यत्सरवा भौमः सर्व्ययुश षाण
अन्तादा परार्धात पृथ्वै समुद्र पर्यन्ताया एकरालिति
तादाप्येश श्लोको भिगितो मरुतः
परिवेष्टारो मरुतः स्यवास्ग्रुहे
आविक्षितस्य कामप्रेर विश्वेदेवाः सभासद इति


करचर्नम कृतं वा कयाजेम कर्मजं वा
श्रवन नयन्जम वा मानसं वा अपराधं
विहितंविहितं वा सर्वमेतत क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री प्रभो साईंनाथा

"श्री सत्च्चिदानंद सद्गुरु साईंनाथ महाराज की जय "
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