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शेषनाग क्या हैं और क्यूँ श्री विष्णु शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं

SHESHNAG PROVIDES ENERGY TO EARTH
“पृथ्वी को धारण शेषनाग ने कर रखा है” !
“श्रीविष्णु शेषनाग को शय्या बना कर विश्राम कर रहे हैं, और माता लक्ष्मी उनके चरण दबा रही हैं” !
यह आपने अनेक बार सुना होगा, और कुछ इस प्रकार के चित्र भी देखे होंगे, लकिन कर्महीनता के कारण आपने इससे सम्बंधित प्रश्न अपने गुरु से कभी पूछे नहीं होंगे, और यदि पूछ भी लिए होंगे तो संतोषजनक उत्तर नहीं मिला होगा |
इस पोस्ट पर चर्चा से पहले एक सीढ़ी-साधी सरल बात समझ लें, नाग का अर्थ होता है सांप या ‘जिसके बारे में ज्ञान ना हो’| तथा शेषनाग का अर्थ तो और आसान है, शेष का अर्थ है, ‘बचा हुआ’ अर्थात शेषनाग का अर्थ, बचा हुआ नाग | 

सूचना युग में आप पूछे ना पूछे, लकिन आपको यह मालूम है कि पृथ्वी सौर्य-मंडल में एक निश्चित संतुलन के कारण स्थिर है, सूर्य की परिक्रमा कर रही है, शेषनाग के कहीं भी दर्शन नहीं हो पाते |

लकिन पुराण विज्ञान हैं, और उनकी कोइ काट नहीं है | भौतिक विज्ञान का पूर्ण ज्ञान पुराणों में है, सौर्य-मंडल की उत्पत्ति, उससे सम्बंधित पूर्ण विज्ञान और इतिहास के सन्दर्भ में पूर्ण जानकारी है | निकट भविष्य में आधुनिक संसार के लिए, कम से कम इतना ज्ञान और सूचना अर्जित करना संभव भी नहीं है |

तो पहले तो यह आप मन में बैठा लीजिये कि पूराण मिथ्या(MYTHOLOGY) नहीं है, वास्तविक इतिहास है, विज्ञान है | समस्या सिर्फ इतनी है कि यदि सत्य बता दिया जाए तो समाज का शोषण नहीं हो पायेगा, जो कि संस्कृत विद्वान और धर्मगुरु मिल कर कर रहे हैं |

अब शेषनाग पर आते हैं | सौर्यमंडल में एक तारा(सूर्य) है, तथा अनेक गृह हैं, जैसे पृथ्वी, मंगल, ब्रहस्पति आदि | पुराणों कि अपनी एक अनोखी विशेषता है, आपको उतना ही ज्ञान मिल सकता है जितना आप समझ सकते हैं | 

तो “नाग”, यहाँ पर उस मिश्रित उर्जा को कहते हैं , जो की परिभाषित नहीं हो रही है, तथा जिससे सौर्यमण्डल की उत्पत्ति हुई है, तथा आरम्भ में सूर्य, और बाद में अन्य गृह/चन्द्र और उल्का के जन्म में इस नाग ने, सूर्य के साथ साथ उर्जा प्रदान करी | यह उर्जा सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा का मिश्रण है | 

वैसे भी इसको समझना कोइ कठिन नहीं है | नाग या सर्प को पूर्ण सकारात्मक कभी नहीं माना गया | 

ध्यान रहे यह उर्जा सूर्य, जो कि अपने जन्म और उर्जावान होने के बाद, इस सौर्यमण्डल को उर्जा दे रहा है, उससे भिन है, तथा सूर्य जो उर्जा देता है, वोह इस उर्जा को सक्रिय और कभी कभी उत्तेजित करती है |

अब विशेष बात:
शेषनाग एक मिश्रित उर्जा सोत्र का अवशेष है जिसमें सकारात्मक उर्जा , नकारात्मक की तुलना में बहुत अधिक है, और सूर्य के साथ यह पृथ्वी को उर्जा प्रदान करता है, जिससे पृथ्वी में जीवन है | इसी ‘नाग’ की उर्जा से पूरे सौर्यमण्डल का विकास हुआ है, तथा अब सूर्य इस मंडल को उर्जा प्रदान कर रहा है, ताकि गृह, उल्का, चन्द्र और जो अतिथि आते रहते हैं, वे जीवित, सक्रिय रह सकें | इस बात को विज्ञान भी अनमोदन करता है कि हर जीव-जन्तु तो उत्पत्ति की और बढ़ता है, एक ‘अज्ञात’ उर्जा लेकर आता है, तथा सौर्यमंडल की प्रस्तुत उर्जा से ‘सकारात्मक’ सहायता मिलने से पैदा होता है, पनपता है , फिर समाप्ति से यह कर्म पूरा होता है| 

श्री विष्णु इस शेषनाग पर विश्राम कर रहे हैं, और समृद्धि की देवी/शक्ति उनके चरण दबा रही हैं| इसका अर्थ तो कोइ मुश्किल नहीं है| ईश्वर सदैव सकारात्मक उर्जा के प्रतीक हैं, तो शेषनाग का अर्थ भी आपको स्पष्ट हो जाना चाहिये | शेषनाग वोह बची हुई ऊर्जा है, जिसमें सकारात्मक उर्जा अधिक है, नकारात्मक उर्जा कम है, इसलिए पृथ्वी पर जीवन है, अन्य ग्रहों पर नहीं है | श्री विष्णु इसलिए विश्राम कर रहे हैं कि सकारात्मक उर्जा पृथ्वी को दे दी, तथा समृद्धि की देवी सुनिश्चित कर रही है प्रगति | 

फिर से समझ लें, शेषनाग ने पृथ्वी को धारण कर रखा है का अर्थ है, पृथ्वी अन्य ग्रहों से कुछ अलग है, बाकी बची हुई(शेष) सारी ऊर्जा से पृथ्वी का निर्माण हुआ है, जिसमें सकारात्मक ऊर्जा कही अधिक है, नकारात्मक की तुलना में और इस बात को स्थापित करते हैं, श्री विष्णु जो की निश्चित हो शयन मुद्रा मैं हैं | यही कारण है कि पृथ्वी पर जीवन है |

अब मानव पर है, और धर्मगुरूओ पर है कि प्रगति सकारात्मक होती है या नकारात्मक |

यदि प्रगति अधिक नकारात्मक हो जाती है, जो की सदैव गलत धर्म से होती है, और जिसके लिए विद्वान और धर्मगुरु जिम्मेदार हैं, तो ईश्वर अनेक बार दिशा परिवर्तन के लिए पृथ्वी पर अवतरित होते हैं , क्यूंकि स्वर्ग या अपने लोक में बैठ कर श्रृष्टि-पालक श्री विष्णु समाज मैं सुधार नहीं लाते, यह काम हम सबका है | ईश्वर आपकी व्यक्तिगत समस्या का समाधान तो प्रार्थना से करते हैं , लकिन समाज सम्बंधित समस्या आपको सही कर्म से सुलझानी है, प्रार्थना से नहीं | 
नोट: सौर्यमण्डल में आधुनिक विज्ञान के अनुसार एक तारा है, परन्तु पुराणों के अनुसार दो तारे हैं, एक सूर्य , दूसरा शनि जो की रोग ग्रस्त है, या/और अभी पूरी तरह से पनपने में समय लग रहा है, तथा सूर्य-पुत्र शनि कभी आगे भविष्य में सूर्य अस्त के बाद सूर्य के स्थान पर सौर्य मंडल का भार संभाल सकते हैं |

कृप्या यह भी पढीये :
सुर असुर युद्ध और कथा...भुविज्ञान है तथा सौर्यमंडल उत्पत्ति पर ज्ञान है
पुराण है पुराणिक इतिहास तथा खगोलीय भूगोलिक सूचना पृथ्वी और सौर्यमण्डल की


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