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श्राद्ध क्यूँ करें और कैसे; तथा पितृदोष क्या है, और क्या उसका निवारण है?

श्राद्ध एक महत्वपूर्ण विधि है, आपका अपने अतीत और भविष्य, जिसके बीच की आप एक कड़ी हैं, को सक्रिय करने का | ध्यान दें, जो बड़े, बुजुर्ग शरीर छोड़ चुके हैं, उनके लिए आप कुछ कर तो सकते नहीं , लकिन इस कड़ी को सक्रीय करके, आप भविष्य को सुधार सकते हैं, अपना दाइत्व निभा सकते हैं !
पितृदोष शब्द के अर्थ पर कृप्या ना जाएं, आप गलत निर्णय ले लेंगे, और यही हो रहा है |
क्या है पितृदोष?

आप जीवित हैं, इसका अर्थ है कि आपमें उर्जा है , और यह उर्जा दोनों प्रकार की है, सकारात्मक और नकारात्मक| ध्यान रहे दोनों उर्जा, सकारात्मक और नकारात्मक, की आवश्यकता होती है, तभी प्रगति और उत्थान दोनों सुचारू रूप से हो सकता है; यहाँ प्रगति और उत्थान की बात हो रही है, सही, गलत, किस दिशा में आप जा रहे हो, इसकी बात नहीं |
पितृदोष जब माना जाता है जब वेदान्त ज्योतिष के सिद्धांतो के अनुसार आपकी कुंडली से ऐसा लगता है कि आपके जीवन में नकारात्मक उर्जा अधिक है | ध्यान रहे आवश्यक नहीं कि यदि नकारात्मक उर्जा अधिक है तो भौतिकता के आधार पर आपका जीवन सुखी और सफल नहीं हैं, लकिन यह भी सत्य है कि नकारात्मक उर्जा का सुख और सफलता स्थाई नहीं हो सकता ! 

वेदान्त ज्योतिष पुराणिक ग्रंथो का ही अंग है; सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुद्ध, ब्रहस्पति, शुक्र, और शनि सुर हैं, यानी कि सकारात्मक उर्जा के प्रतीक, और राहू, केतु नकारात्मक उर्जा के |
पितृदोष है कि नहीं, यह किसी निपुर्ण ज्योतिषाचार्य से कराना चाहीये, लकिन तबभी मुख्य गृह स्तिथि , जो पितृदोष का संकेत देता है, वोह इस प्रकार है:
• राहू लग्न, चन्द्रमा या ब्रहस्पति से केंद्र में; इसमें गंभीर दोष , सबसे अधिक ब्रहस्पति से, फिर चन्द्रमा से, फिर लग्न से है |
• कालसर्प योग
स्वाभाविक है अधिकाँश लोग पितृदोष से प्रभावित होते हैं, और, जैसा कि पितृदोष शब्द से समझ में आता है, इसका एक प्रभाव यह भी होता है, कि आपकी संतान भी पितृदोष से प्रभावित होजाति है ! पितृदोष निवारण का अब आप पूरा अर्थ(ध्यान दें, अभी आप निवारण का अर्थ समझ रहे हैं, तरीका नहीं) भी समझ लीजिये, जो कि शब्द से ही मिल रहा है :-
इस पृथ्वी पर जितनी भी महान हस्तियाँ हुई हैं, तथा जिस स्थान पर आप रहते हैं, या/और निवासी हैं, वहां की महान हस्तियाँ जो शरीर त्याग चुकी हैं, तथा आपके परिवार के बड़े, वंशज जो शरीर त्याग चुके हैं ,
उन सबको याद करना, उनकी आत्मा कि शान्ति के लिए प्रार्थना करके उनको मुक्त करना | ध्यान रहे ‘उनको मुक्त करना’ का अर्थ अभी आप नहीं समझे होंगे, और अधिकाँश लोग नहीं समझ पाते, इसीलिए समस्या का समाधान नहीं हो पाता !
चलिए ‘उनको मुक्त करना’ का अर्थ भी समझ लें | जितनी भी विश्व की महान हस्तियाँ थी, उन सबने विकास के साथ साथ श्रृष्टि के संतुलन पर विशेष ध्यान दिया है, समाज की प्रगति के बारे मैं सोचा है, जिसका केंद्रबिंदु सदा परिवार ही रहा है | और इधर आपके बड़े और बुजुर्ग, जो शरीर त्याग चुके हैं, उन्होंने भी आपके परिवार, अपने समाज हित दोनों को विशेष स्थान दिया है| अपने समाज और कुटुम्भ, दोनों के हित के लिए कष्ट भी सहे हैं, त्याग भी करे हैं | यह उनसब की वचनबद्धता थी |
अब आप उनको इससे मुक्त कैसे करेंगे ? 

उनकी आत्मा की शान्ति के लिए यह आवश्यक है कि जिस वचन में वे बंधे हुए थे, उससे उनको मुक्त करा जाय | और उससे मुक्ति देने लिए यह वचनबद्धता आपको स्वंम निभानी पड़ेगी | विश्वास करिये यह बहुत ही सकारात्मक विचार है, और आपकी अधिकाँश पितृदोष की समस्या के निवारण के लिए पर्याप्त है |
अब पितृदोष के निवारण पर आते हैं |

सबसे पहले आपके परिवार के जो बड़े-बुजुर्ग शरीर त्याग चुके हैं, उनका पितृपक्ष में श्राध अवश्य करें | यह अवश्यक नहीं की दिखावा करा जाए, बहुत बड़े स्तर पर हो, लकिन जल अर्पित करें, उनकी आत्मा की शान्ति की कामना और अपने पास के मंदिर में श्रद्धा अनुसार फल-फूल और कुछ धन भी दें | इतना पर्याप्त है|

जैसा पहले भी कहा गया है कि पितृदोष का निवारण किसी ज्योतिषाचार्य(पंडित जी) से कराना चाहीये, और विधि पूरी आस्था से करना आवश्यक है | यदि पंडित जी कह रहे हैं कि यह विधि मंदिर में अधिक उपयुक्त होगी तो आप मंदिर में जा कर करा दें | जितनी भी शिव सिद्ध-शक्ति पीठ हैं, वहां पितृदोष का निवारण विधिवध होता है, गढ़गंगा(गढ़मुक्तेश्वर), गया तथा अनेक स्थान हैं जहाँ यह विधि कराने से विशेष लाभ है |

लेकिन विधि की अपनी सीमाएं हैं , वे मानव की सोच को बदलने की प्रेरणा तो अवश्य देती हैं, लकिन बदलना तो मानव को ही पड़ता है | इसलिए पितृदोष का पूरा निवारण आपकी सोच पर निर्भर है | 

यदि जीवित बुजुर्ग जो आपके परिवार में हैं, उनका ध्यान तक नहीं रखा जा रहा है, तो पितृदोष का निवारण तो नहीं हो पाया | और यह सिर्फ कहने की बात नहीं है, ऐसे लोगो की संतान की कुंडली मैं भी पितृदोष बन जाता है |

यदि आपके कुटुम्भ में भाई, बंधू, बड़े कष्ट में हैं, और उनपर आपका ध्यान तक नहीं है , तो निवारण कहाँ हुआ | में मानता हूँ कि अब छोटे परिवार रह गए हैं, एक भाई का दुसरे से सम्बन्ध कम रह गया है, लकिन उनकी समस्या में आप सहायता के लिए प्रयास तो करीये | कैसे आप मुक्त करेंगे अपने बुजुर्गो को उनके वचन से यदि आप अपने कुटुम्भ, समाज के लिए कुछ नहीं कर रहे | यह कहने से काम नहीं चलेगा कि समय नहीं है; यह भौतिक धर्म है जो भावनात्मक धर्म(पूजा पाठ, मंदिर जाना) से अधिक महत्वपूर्ण है |

विषय बहुत बड़ा है, अक्सर देखा गया है कि दहेज़ के लिए कन्या को तंग करा जाता है; सुसराल वालो को रुला दिया जाता है | क्या यही संकल्प आपके बुजुर्गो का था? बिलकुल नहीं | 

उसी तरह से कन्या पति के घर आकर अपने मायके के हित के बारे में सोचने लगती है, पति के परिवार से पति को दूर करने की कोशिश करती है | अब उन महिलाओ का पितृदोष का निवारण कैसे होगा ?

समय के इम्तिहान को बार बार पास करने के बाद जो भौतिक मानक हिन्दू समाज मैं हैं, उनको मानीये, विकास के साथ उनमें भी बदलाव हो रहा है वोह स्वीकार है, लकिन उन मानको को मानीये तो | पितृदोष निवारण के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है |

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