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केतु

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु एक छाया ग्रह है जो स्वभाव से पाप ग्रह भी है। केतु के बुरे प्रभाव से व्यक्ति को जीवन में कई बड़े संकटों का सामना करना पड़ता है। हालांकि यही केतु जब शुभ होता है तो व्यक्ति को ऊंचाईयों पर भी ले जाता है। केतु यदि अनुकूल हो जाए तो व्यक्ति आध्यात्म के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करता है। आमतौर पर माना जाता है कि हमारी जन्मकुंडली हमारे पिछले जन्म के कर्मों तथा इस जन्म के भाग्य को बताती है। फिर भी ज्योतिषीय विश्लेषण कर हम अशुभ ग्रहों से होने वाले प्रभाव तथा उनके कारणों को जानकर उनका सहज ही निवारण कर सकते हैं।*

राहू एवं केतु छाया ग्रह माने गए है जिनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता है। इन्हें इनके कार्य करने की वास्तविक शक्ति कुंडली में अन्य ग्रहों के सम्मिलित प्रभाव से मिलती है। ज्योतिष में माना जाता है कि किसी जानवर को परेशान करने पर, किसी धार्मिक स्थल को तोड़ने अथवा किसी रिश्तेदार को सताने, उनका हक छीनने की सजा देना ही केतु का कार्य है। झूठी गवाही व किसी से धोखा करना भी केतु के बुरे प्रभाव को आमंत्रित करता है।

जब भी व्यक्ति पर केतु का अशुभ प्रभाव शुरू होने वाला होता है तो उसके अंदर कामवासना एकदम से बढ़ जाती है। किसी अन्य पापग्रह यथा राहू, मंगल की युति मिलने पर व्यक्ति किसी महिला/ लड़की से दुष्कर्म तक करने का जोखिम उठा सकता है। इसके अलावा मुकदमेबाजी, अनावश्यक झगड़ा, वैवाहिक जीवन में अशांति, भूत-प्रेत बाधाओं द्वारा परेशान होना भी केतु के ही कारण होता है। शारीरिक प्रभावों में व्यक्ति को पथरी, गुप्त व असाध्य रोग, खांसी तथा वात एवं पित्त विकार संबंधी रोग हो जाते हैं।

सभी ग्रहों में राहु-केतु मायावी ग्रह हैं इन पर सटीक फलित करना अत्यधिक जटिल है। राहु पर थोडा बहुत लिखा हुआ मिल भी जाता है, लेकिन जब केतु की बात आती हैं उस समय या तो राहु के समान उसके फल बतायें गये हैं या मंगल के गुणों की समानता दे दी जाती है। लेकिन मेरे अनुभव में केतु के बिल्कुल अलग फल है। केतु सभी ग्रहों में सबसे तीक्ष्ण व पीडा दायक ग्रह है। मायावी होने के कारण प्राय: केतु में लगभग सभी ग्रहों की झलक देखने को मिल जाती है। सूर्य के समान जलाने वाला, चंद्र के समान चंचल, मंगल के समान पीडाकारी, बुध के समान दूसरे ग्रहों से शीघ्र प्रभावित होने वाला, गुरु के समान ज्ञानी, शुक्र के समान चमकने वाला एवं शनि के समान एकांतवासी ग्रह है। केतु के कुछ अनुभव सिद्ध फल-

1- केतु हमेशा अपना प्रभाव दिखाता ही है। केतु का प्रभाव जिस भाव पर होगा जातक को उस भाव से सम्बंधित अंग में किसी प्रकार की चोट या निशान, तिल, वर्ण अवश्य देगा।

2- केतु पर यदि षष्ठेश का प्रभाव हो तो पीडा दायक रोग होते हैं। यदि साथ में मारकेश का भी प्रभाव होतो ऐसा केतु ऑपरेशन आदि करवाता हैं अथवा अंगहीन बनाता है।

3- केतु का प्रभाव लग्न या तृतिय स्थान पर हो तथा कुछ क्रूर या पापी ग्रह का प्रभाव भी हो तो ऐसे जातक अत्यधिक गुस्सैल व अनियंत्रित होते हैं। ऐसे जातक जल्दबाज होते हैं जिनके कारण अधिकतर गलत निर्णय लेते हैं। यदि केतु पर पाप प्रभाव अधिक हो तो ऐसे जातक हत्या तक कर बैठते है।

4- केतु का नवम, दशम व एकादश प्रभाव शुभ होता है इसके अतिरिक्त बुध व गुरु की राशि में स्थित केतु भी मारक प्रभाव न रखकर व्यक्ति को उच्च शिक्षा देने वाला या सफल बनाने वाला होता है। ऐसे जातक प्रबुध होते है, डॉक्टर, वकील या रक्षा विभाग में प्रयास करने से सफलता शीघ्र प्राप्त होती है।

5- केतु के अंदर अध्यात्मिक शक्ति होती है, शास्त्रों में वर्णित है की गुरु संग केतु की युति मोक्ष दायक होती है। अत: शुभ केतु का प्रभाव व्यक्ति को धर्म से जोडता है। लग्न या नवम भाव पर केतु का शुभ प्रभाव होतो ऐसे लोग कट्टर धर्मी होते हैं।

6- केतु का संकेत चिन्ह झंडा होता है जो की उच्चता का सूचक है। योगकारक ग्रह के संग या लग्नेश संग केतु का प्रभाव व्यक्ति को प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्रदान करता हैं।

केतु को सूर्य व चंद्र का शत्रु कहा गया हैं। केतु मंगल ग्रह की तरह प्रभाव डालता है। केतु वृश्चिक व धनु राशि में उच्च का और वृष व मिथुन में नीच का होता है।

जन्म कुंडली में लग्न, षष्ठम, अष्ठम और एकादश भाव में केतु की स्थिति को शुभ नहीं माना गया है | इसके कारण जातक के जीवन में अशुभ प्रभाव ही देखने को मिलते है |

जन्मकुंडली में केतु यदि केंद्र-त्रिकोण में उनके स्वामियों के साथ बैठे हों या उनके साथ शुभ दृष्टि में हों तो योगकारक बन जाते हैं। ऐसी स्थिति में ये अपनी दशा-भुक्ति में शुभ परिणाम जैसे लंबी आयु, धन, भौतिक सुख आदि देते हैं।

केतु के कारक है -मोक्ष, पागलपन, विदेश प्रवास, कोढ़, आत्महत्या, दादा-दादी, गंदी जुबान, लंबे कद, धूम्रपान, जख्म, शरीर पर धब्बे, दुबलापन, पापवृत्ति , द्वेष, गूढ़ता, जादूगरी, षडयंत्र, दर्शनशास्त्र, मानसिक शांति, धैर्य, वैराग्य, सरकारी जुर्माने, सपने, आकस्मिक मौत, बुरी आत्मा, वायुजनित रोग, जहर, धर्म, ज्योतिष विद्या, मुक्ति, दिवालियापन, हत्या की प्रवृत्ति , अग्नि-दुर्घटना आदि का कारक केतु ग्रह है।

सूर्य जब केतु के साथ होता है तो जातक के व्यवसाय, पिता की सेहत, मान-प्रतिष्ठा, आयु, सुख आदि पर बुरा प्रभाव डालता है।

चंद्र यदि केतु के साथ हो और उस पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो व्यक्ति मानसिक रोग, वातरोग, पागलपन आदि का शिकार होता है।

वृश्चिक लग्न में यह योग जातक को अत्यधिक धार्मिक बना देता है।

मंगल केतु के साथ हो तो जातक को हिंसक बना देता है। इस योग से प्रभावित जातक अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते और कभी-कभी तो कातिल भी बन जाते हैं।

बुध केतु के साथ हो तो व्यक्ति लाइलाज बीमारी ग्रस्त होता है। यह योग उसे पागल, सनकी, चालाक, कपटी या चोर बना देता है। वह धर्म विरुद्ध आचरण करता है।

केतु गुरु के साथ हो तो गुरु के सात्विक गुणों को समाप्त कर देता है और जातक को परंपरा विरोधी बनाता है। यह योग यदि किसी शुभ भाव में हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखता है।

शुक्र केतु के साथ हो तो जातक दूसरों की स्त्रियों या पर पुरुष के प्रति आकर्षित होता है।

शनि केतु के साथ हो तो आत्महत्या तक कराता है। ऐसा जातक आतंकवादी प्रवृति का होता है। अगर बृहस्पति की दृष्टि हो तो अच्छा योगी होता है।

किसी स्त्री के जन्म लग्न या नवांश लग्न में केतु हो तो उसके बच्चे का जन्म आपरेशन से होता है। इस योग में अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो कष्ट कम होता है।

भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं उनका हक छीनने पर केतु अशुभ फल देना है। कुत्ते को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर, किसी भी मंदिर को तोड़ने अथवा ध्वजा नष्ट करने पर इसी के साथ ज्यादा कंजूसी करने पर केतु अशुभ फल देता है। किसी से धोखा करने व झूठी गवाही देने पर भी केतु अशुभ फल देते हैं।

अत: मनुष्य को अपना जीवन व्यवस्िथत जीना चाहिए। किसी को कष्ट या छल-कपट द्वारा अपनी रोजी नहीं चलानी चाहिए। किसी भी प्राणी को अपने अधीन नहीं समझना चाहिए जिससे ग्रहों के अशुभ कष्ट सहना पड़े।

समय रहते यदि शुभ-अशुभ योगों को पहचान लिया जाए तो जीवन को सभी ओर सकारात्मक दिशा देने में आसानी हो सकती है।केतु के अधीन आने वाले जातक जीवन में अच्छी ऊंचाइयों पर पहुंचते हैं, जिनमें से अधिकांश आध्यात्मिक ऊंचाईयों पर होते हैं।

केतु ग्रह के उपाय -दान और वैदिक मंत्र :-
केतु शांति हेतु लहसुनिया रत्न धारण करने का विधान है।
केतु ग्रह की उपासना के लिए निम्न में किसी एक मंत्र का नित्य श्रद्धापूर्वक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए।
जप का समय रात्रि ८ बजे के बाद तथा कुल जप-संख्या 17000 है।
हवन के लिए कुश का उपयोग करना चाहिए।

वैदिक मंत्र-
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। सुमुषद्भिरजायथाः॥
बीज मंत्र- जप-संख्या 17000
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥
बीज मंत्र-जप-संख्या 17000
ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः।
सामान्य मंत्र-जप-संख्या 17000
ॐ कें केतवे नमः।

केतु ग्रह का दान :-केतु की प्रसन्नता हेतु दान की जाने वाली वस्तुएँ इस प्रकार बताई गई हैं-

वैदूर्य रत्नं तैलं च तिलं कम्बलमर्पयेत्।शस्त्रं मृगमदं नीलपुष्पं केतुग्रहाय वै॥

वैदूर्य नामक रत्न, तेल, काला तिल, कंबल, शस्त्र, कस्तूरी तथा नीले रंग का पुष्प दान करने से केतु ग्रह साधक का कल्याण करता है।

अश्वगंधा की जड़ को नीले धागे में बांधकर मंगलवार को धारण करने से भी केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होने लगते है |

केतु से पीड़ित व्यक्ति को मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए

तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ या सवा किलो आटे को भुनकर उसमे गुड का चुरा मिला दे और ४३ दिन तक लगातार चींटियों को डाले,रोज कौओं को रोटी खिलाएं।

अपना कर्म ठीक रखे तभी भाग्य आप का साथ देगा और कर्म ठीक हो इसके लिए आप मन्दिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए जाएं।

माता-पिता और गुरु जानो का सम्मान करे ,अपने धर्मं का पालन करे, भाई बन्धुओं से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखें।

यदि सन्तान बाधा हो तो कुत्तों को रोटी खिलाने से घर में बड़ो के आशीर्वाद लेने से और उनकी सेवा करने से सन्तान सुख की प्राप्ति होगी।

गौ ग्रास. रोज भोजन करते समय परोसी गयी थाली में से एक हिस्सा गाय को, एक हिस्सा कुत्ते को एवं एक हिस्सा कौए को खिलाएं आप के घर में हमेशा बरक्कत रहेगी।



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