Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

|| श्री एकलिंगनाथ विजयते || Rajputana

||श्री एकलिंगनाथ विजयते||

जिनका श्याम वर्ण है, माथे चंदन तिलक सुशोभित

चंद्र धवल कांति से मुख है जिनका, चन्द्र माथे शोभित

ब्रह्म,इंद्र आदि योगीगण, करते जिनका स्तुति वंदन

मेवाड़ के उन परम परमेश्वर को,हम करते है वंदन।।

ना धन से ना धान्य से,ना काव्य से ना गणमान्य से

एकलिंगनाथ प्रभु प्रसन्न होते है,भक्तो के चित्त माधुर्य से।।

ना रूप से ना रंग से,ना धतूरे से ना भंग से

मिलते है एकलिंगनाथ प्रभु केवल भक्ति रंग से।।

मुंड माल में वो वैरागी है और चंद्र में वो गृहस्थ है

ऐसे एकलिंगनाथ प्रभु के मेवाड़ पर उपकार सहस्त्र है

पूजित होते लिंग में और ॐ कार मूल स्वर है

पुनर्स्वरूप इनका मंगलकारी एकलिंगेश्वर है।।

मेवाड़ की शान सदा रखी है जिन्होंने आज औऱ कल

बाप्पा और वीर प्रताप पर रखी कृपा प्रतिपल।।

केवल बेलपत्र और सच्ची श्रद्धा से प्रसन्न हो जाते

इसलिए परम कृपालु बाबा एकलिंगनाथ पूजे जाते।।

श्री एकलिंगनाथ की महिमा न्यारी जिन्हें पूजे सारे नर नारी

साथ सभी भक्तों का छोड़ ना जाते इसलिए मेवाड़नाथ प्रभु श्री एकलिंगनाथ कहलाते।।

जय एकलिंग जी

रचनाकार शैलेन्द्र पालीवाल

Jai Rajputana, Akhand Rajputana



This post first appeared on Maharana Halisa, please read the originial post: here

Share the post

|| श्री एकलिंगनाथ विजयते || Rajputana

×

Subscribe to Maharana Halisa

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×