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सिसोंदिया / गुहिल राजवंश की कुलदेवी “श्री बाण माता ”  

सिसोंदिया / गुहिल राजवंश की कुलदेवी “श्री बाण माता “

 मेवाड़ के राजकुल एवं इस कुल से पृथक हुई सभी शाखाओं की कुलदेवी बाण माता है । अतः मेवाड़ में इसकी प्रतिष्ठा एवं महत्त्व स्वाभाविक है ।

राजकुल की कुलदेवी बायणमाता / बाण माता   सिद्धपुर के नागर ब्राह्मण विजयादित्य के वंशजों के पास धरोहर के रूप में सुरक्षित रही है । जब-जब मेवाड़ की राजधानी कुछ समय के लिए स्थानान्तरित हुई वहीं यह परिवार कुलदेवी के साथ महाराणा की सेवा में उपस्थित रहा । नागदा, आहाड़, चित्तौड़ एवं उदयपुर इनमे मुख्य है ।

चैती एवं आसोजी नवरात्री में भट्ट जी के यहाँ से कुलदेवी को महलों में ले जाया जाता है । उस वक्त लवाजमें में ढ़ोल, म्यानों बिछात अबोगत (नई) जवान 10, हिन्दू हलालदार 4, छड़ीदार 1, चपरासी 1 रहता है ।

महलों में अमर महल (रंगभवन का भण्डार) की चौपड में जिसका आँगन मिट्टी का लिपा हुआ कच्चा है, स्थापना की जाती है । इस अवधि में कालिका, गणेश, भैरव भी साथ विराजते हैं । जवारों के बिच बायण माता के रजत विग्रह को रखा जाता है । इनमें सभी प्रकार के पारम्परिक लवाजमें में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र शस्त्र एवं मुख्य चिन्न यहाँ रखे जाते है । अखण्ड ज्योति जलती है । विधि विधान से पूजा पाठ होते हैं । बाहर के दालान में पण्डित दुर्गासप्तशती के पाठ करते हैं । महाराणा इस अवधि में तीन-चार बार दर्शन हेतु पधारते थे । अष्टमी के दिन दशांश हवन संपन्न होता है । पूर्व में इसी दिन चौक में बकरे की बलि (कालिका के लिए) एवं बाहर जनानी ड्यौढ़ी के दरवाजे में महिष की बलि दी जाती थी , जो अब बंद हो गयी है ,उसके बदले में श्रीफल से बलि कार्य संपन्न किया जाता है । अष्टमी के दिन हवन की पूर्णाहुति के समय महाराणा उपस्थित रहते थे । तीन तोपों की सलामी दी जाती थी । नवमी के दिन उसी लवाजमें के साथ बायण माता भट्ट परिवार के निवास स्थान पर पहुँचा दी जाती थी ।

जय श्री बाण माता

 बाण माता का इतिहास 

बाण माता के इतिहास की जानकारी लेने से पूर्व यह प्रासंगिक होगा कि कुलदेवी का नाम बाण माता क्यों पड़ा ? जैसे राठौड़ों की कुलदेवी नागणेचा माता नागाणा गांव में स्थापित होने के कारण जानी जाती है । वैसे बायणमाता का किसी स्थान विशेष से सम्बन्ध जोड़ना प्रमाणित नहीं है। किन्तु यह सत्य है कि इस राजकुल की कर्मस्थाली गुर्जर देश (गुजरात) रही है ।

सिसोंदिया , गहलौत राजवंश की कुलदेवी का नाम बायण माता या बाण माता इसीलिए है क्योकि जब हमारे पूर्वज सौराष्ट्र ( गुजरात ) से यहा चित्तौडगढ आये तब वहा गुजरात में नर्मदा नदी से जो पाषाण निकलते थे। उनसे जो शिव जी की स्थापना होती थी , उन्हे बाण लिंग कहा जाता था । जिनके नाम से मेवाड में बाणेश्वर जी का मंदिर भी है , उन्ही बाणेश्वर महादेव की देवी पार्वती जी का एक अंश माँ बाण के रूप में प्रगट हुआ । जिन्होने प्राचीनकाल में बाणासुर नामक दैत्य का वध किया था , इसीलिए माँ दुर्गा माता का वह स्वरूप बाण माता के नाम से विख्यात है ।

जय श्री बाण माता

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