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रवि प्रदोष (भानु वारा) व्रत कथा, पूजा विधि, महत्त्व व मुहूर्त | Ravi Pradosh Vrat Katha

Ravi Pradosh Vrat Katha in Hindi : प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी के दिन संध्याकाल के समय को “प्रदोष” कहा जाता है और इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है।रविवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष ”भानु वारा” कहलाता है। भानु वारा प्रदोष व्रत का लाभ यह है कि भक्त इस दिन उपवास को रखकर आयु वृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य लाभ और शांति प्राप्त कर सकते है।

2018 में रवि प्रदोष / भानु वारा प्रदोष व्रत के दिन व समय  | Ravi Pradosh / BhanuVara Pradosh Vrat Dates and Time in 2018

 2018 में दो  भानु वारा / रवि प्रदोष व्रत पड़ रहे हैं। तिथि के साथ यहाँ उस दिन की पूजा का मुहूर्त दिया जा रहा है –
दिनांक वार प्रदोष व्रत (शुक्ल पक्ष / कृष्ण पक्ष) समय
 14 जनवरी  रविवार  भानु वारा प्रदोष व्रत (कृष्ण)  17:41 to 20:24
 13 मई  रविवार  भानु वारा प्रदोष व्रत (कृष्ण)  18:59 to 21:06

रवि प्रदोष / भानु वारा प्रदोष व्रत की विधि | Ravi Pradosh / Bhanu Vara Pradosh Vrat Puja Vidhi :

प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।  नित्यकर्मों से निवृत होकर भगवान् शिव का नाम स्मरण करना चाहिये। पूरे दिन उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से लगभग एक घंटा पहले स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिये।

प्रदोष व्रत की आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है। गंगाजल से पूजन के स्थान को शुद्ध करना चाहिए और उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।

विभिन्न पुष्पों, लाल चंदन, हवन और पंचामृत द्वारा भगवान शिवजी की पूजा करनी चाहिए। एक प्रारंभिक पूजा की जाती है जिसमे भगवान शिव को देवी पार्वती भगवान गणेश भगवान कार्तिक और नंदी के साथ पूजा जाता है। उसके बाद एक अनुष्ठान किया जाता है जिसमे भगवान शिव की पूजा की जाती है और एक पवित्र कलश में उनका आह्वान किया जाता है। पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए।  इस अनुष्ठान के बाद भक्त प्रदोष व्रत कथा सुनते है या शिव पुराण की कहानियां सुनते हैं। महामृत्यंजय मंत्र का 108 बार जाप भी किया जाता है। पूजा के समय एकाग्र रहना चाहिए और शिव-पार्वती का ध्यान करना चाहिए। मान्यता है कि एक वर्ष तक लगातार यह व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं।

रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha :

एक समय सर्व प्राणियों के हितार्थ परम पावन भागीरथी के तट पर ऋषि समाज द्वारा विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया। विज्ञ महर्षियों की एकत्रित सभा में व्यास जी के परम शिष्य पुराणवेत्ता सूत जी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे। सूत जी को आते हुए देखकर शौनकादि अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों ने खड़े होकर दंडवत प्रणाम किया ।महाज्ञानी सूतजी ने भक्ति भाव से ऋषियों को ह्रदय से लगाया तथा आशीर्वाद दिया। विद्वान ऋषिगण और सब शिष्य आसनों पर विराजमान हो गये।
मुनिगण विनीत भाव से पूछने लगे कि हे परम दयालु ! कलिकाल में शंकर की भक्ति किस आराधना द्वारा प्राप्त होगी, हम लोगों को बताने की कृपा किजिए, क्योंकि कलियुग के सर्व प्राणी पाप कर्म में रत रहकर वेद्शास्त्रों से विमुख रहेंगे। दीनजन अनेकों संकटों से त्रस्त रहेंगे। हे मुनिश्रेष्ठ ! कलिकाल में सत्कर्म की ओर किसी की रूचि न होगी। जब पुण्य क्षीण हो जायेंगे तो मनुष्य की बुद्धि असत कर्मों की ओर खुद ब खुद प्रेरित होगी जिससे दुर्विचारि पुरुष वंश सहित समाप्त हो जायेंगे। इस अखिल भूमण्डल पर जो मनुष्य ज्ञानी होकर ज्ञान की शिक्षा नहीं देता, उस पर परमपिता परमेश्वर कभी प्रसन्न नहीं होते हैं।हे महामुने! ऐसा कौन सा उत्तम व्रत है जिससे मनवांछित फल की प्राप्ति होती हो, आप कृपाकर बतलाइये। ऐसा सुनकर दयालु हृदय, श्रीसूत जी कहने लगे- कि हे श्रेष्ठ मुनियों तथा शौनक जी! आप धन्यवाद के पात्र हैं। आपके विचार सराहनीय एवं प्रशंसनीय हैं। आप वैष्णव अग्रगण्य हैं क्योंकि आपके हृदय में सदा परहित की भावना रहती है, इसलिये हे शौनकादि ऋषियों , सुनो – मैं उस व्रत को तुमसे कहता हूँ जिसके करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। धन, वृद्धिकारक, दु:ख विनाशक, सुख प्राप्त करनेवाला, संतान देनेवाला, मनवांछित फल प्राप्ति करने वाला यह व्रत तुमको सुनाता हूँ, जो किसी समय भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था और उनसे प्राप्त यह परम श्रेष्ठ उपदेश मेरे परम, पूज्य गुरु वेदव्यास जी ने मुझे सुनाया था। जिसे आपको समय पाकर शुभ बेला में मैं सुनाता हूँ। बोलो उमापति शंकर भगवान की जय ।
सूतजी कहने लगे कि आयु, वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ हेतु त्रयोदशी का व्रत करें। इसकी विधि इस प्रकार है- प्रात: स्नान कर निराहार रहकर, शिव ध्यान में मग्न हो, शिव मंदिर में जाकर शंकर जी की पूजा करें। पूजा के पश्चात् अर्द्ध पुण्य त्रिपुण्ड का तिलक धारण करें, बेल पत्र चढ़ावें, धूप, दीप, अक्षत से पूजा करें। ऋतु फल चढ़ावें तथा “ ऊँ नम: शिवाय ” मंत्र का रुद्राक्ष की माला से जप करें। ब्राह्मणों को भोजन कर सामर्थ्यानुसार दक्षिणा दें। तत्पश्चात् मौन व्रत धारण करें, व्रती को सत्य वचन बोलना आवश्यक है, हवन और आहुति भी देनी चाहिये।
“ऊँ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा ” मंत्र से आहुति दें। इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। व्रती को पृथ्वी पर शयन करना चाहिये, दिन में एक बार हीं भोजन करे ,इससे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं। श्रावण मास में तो इसका विशेष महत्व है। यह सर्वसुख धन, आरोग्यता देनेवाला एवं सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाला व्रत है।
शौनकादि ऋषि बोले- “हे पुज्यवर महामते ! आपने यह व्रत परम गोपनीय मंगलप्रद, कष्ट निवारक बतलाया है। कृपया यह बताने का कष्ट करें कि यह व्रत सबसे पहले किसने किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ? ”
श्री सूत जी बोले- “हे विचारवान् ज्ञानियों! आप शिव के परम भक्त हैं, आपकी भक्ति को देखकर मैं व्रती मनुष्यों की कथा कहता हूँ। ध्यान से सुनो ।”
एक गाँव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी, उसे एक ही पुत्र रत्न था। एक समय की बात है वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिये गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे, नहीं तो तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो। बालक दीन भाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहाँ है? तब चोरों ने कहा- “तेरे इस पोटली में क्या बंधा है? ” बालक ने नि:संकोच कहा- “मेरी माँ ने मेरे लिये रोटियाँ दी हैं। ”यह सुनकर चोर ने अपने साथियों से कहा- “साथियों ! यह बहुत ही दीन दु:खी मनुष्य है। अत: हम किसी और को लूटेंगे।” इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया। बालक वहाँ से चलते हुए एक नगर में पहुँचा । नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया । उसी समय ,उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुँचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गये। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया। ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था, ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र के कुशलता की प्रार्थना करने लगी। भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली।उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात: काल छोड़ दें, अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जायेगा। प्रात:काल राजा ने शिव जी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया । बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। सारा वृतांत सुनकर, राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राज दरबार में बुलाया। उसके माता पिता बहुत हीं भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा- “आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है । ” राजा ने ब्राह्मण को पांच गाँव दान में दिये, जिससे वे सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके। भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगे। जो भी इस प्रदोष व्रत को करता है ,वह सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता है।

रवि प्रदोष व्रत उद्यापन विधि | Ravi Pradosh Vrat Udyapan Vidhi :

स्कंद पुराणके अनुसार इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

उद्यापन वाली त्रयोदशी से एक दिन पूर्व श्री गणेश का विधिवत षोडशोपचार से पूजन किया जाना चाहिये।  पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है। इसके बाद उद्यापन के दिन प्रात: जल्दी उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध कर लें। इसके बाद रंगीन  वस्त्रों और रंगोली से सजाकर मंडप तैयार कर लें। मंडप में एक चौकी पर शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। और विधि-विधान से शिव-पार्वती का पूजन करें। भोग लगाकर उस दिन जो वार हो उसके अनुसार कथा सुनें व सुनायें।

‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है। हवन में आहूति के लिए गाय के दूध से बनी खीर का प्रयोग किया जाता है। हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है। अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इसके बाद प्रसाद व भोजन ग्रहण करें।

अन्य वारों की प्रदोष व्रत कथायें –

सोमवार की प्रदोष व्रतकथा >>

मंगलवार की प्रदोष व्रतकथा >>

बुधवार की प्रदोष व्रतकथा >>

गुरुवार की प्रदोष व्रतकथा >>

शुक्रवार की प्रदोष व्रतकथा >>

शनिवार की प्रदोष व्रतकथा >>

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