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दाँत माता का निराला मन्दिर व महिमा, जमवा रामगढ़ Daant Mata Temple Jamwa Ramgarh

दाँत माता का मंदिर जयपुर शहर से लगभग 23 किलोमीटर दूर जमवारामगढ़ कस्बे में स्थित है। यह मन्दिर कस्बे से गुजर रही अरावली पर्वत श्रृंखला के एक पहाड़ के मध्य में स्थित है। इस कारण यह मन्दिर दूर से ही दिखाई देता है।

Daant Mata Jamwa Ramgarh Jaipur

1000 ईस्वी सन् के आसपास कछवाहा क्षत्रिय कुल के आधिपत्य में आने से पहले जमवारामगढ़ को ‘माँच’ के नाम से जाना जाता था और यहां के शासक सीहरा गोत्र के मीणा थे।

रावत सारस्वत ने मीणा इतिहास में सीहरा वंश के वंश वृक्ष में लिखा है कि “धारा नगरी से सोमो सावंत के पुत्र राजा मांचदेव ने राजस्थान में आकर संवत 252 में माँच राज्य की स्थापना की और किला-कोट-महल बनवाये। राव सींगोजी ने देवी दाँत माता पूजी और देवी का मंदिर बनवाया। संवत 352 में पूर्व की ओर झांकती सीढ़ियां बनाई। 25 पीढ़ी और 795 वर्ष तक राज्य किया। संवत 1047 में कछवाहा कांकिल से झगड़े में राव नाथू से राज्य गया।”

यह मन्दिर जयपुर की कई वर्षों तक प्यास बुझाने वाले प्रसिद्ध रामगढ़ बांध से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मीणा समाज के अलावा अन्य समाजों में भी लोक आस्था का केन्द्र है।

माता की प्राकट्य कथा

दाँत माता के प्राकट्य के विषय में ग्रामवासियों में प्रचलित किंवदंती इस प्रकार है कि एक बार कुछ ग्वाले पहाड़ की तलहटी में अपने पशुओं को चला रहे थे। अचानक एक दिव्य प्रकाश के प्रकट होने साथ ही एक आकाशवाणी हुई कि “हे ग्वालों! मैं शक्ति का रूप हूं। मैं इस स्थान पर प्रकट हो रही हूँ। तुम डरना मत। मेरी भक्ति और आराधना करने से मनवांछित फल प्राप्त होगा।” कुछ ही समय में वहां तूफान आया और घोर अंधकार छा गया तथा गर्जनाएँ होने लगीं। पहाड़ से पत्थर लुढ़क कर नीचे गिरने लगे। पहाड़ के दांते (पहाड़ का खड़ी चट्टानों वाला भाग) में एक अद्भुत प्रकाश हुआ। ग्वालों ने देखा कि उस स्थान पर देवी के रथ का अग्रिम भाग प्रकट हो रहा है। यह देखकर ग्वाले घबरा गए और चिल्लाते हुए कस्बे की ओर भागने लगे। उधर कस्बेवासी भी इस घटनाक्रम से डर गए। तब नाराज होकर माता उसी पहाड़ी के दाँते में अवस्थित होकर रह गई। शान्ति होने के बाद ग्वालों से समस्त वृत्तांत जानकर लोगों ने प्रसन्नतापूर्वक माता की स्तुति व आराधना की। पहाड़ी के दाँते में प्रकट होने के कारण देवी दाँत माता नाम से पूजी जाने लगी।

Daant Mata Temple Jamwa Ramgarh Jaipur

माता का स्वरूप

मन्दिर के गर्भगृह में के दांते से प्रकट होती माता के रथ के सुगन्य की आकृति है जिस पर नेत्र, नासिका मुख आदि मुखांगों के उभार हैं। यह सिंदूर से चर्चित है। श्रीमाताजी ने मुकुट धारण किया हुआ है। इस प्रतिमा के नीचे पिण्डियां स्थापित हैं जो महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती के रूप में पूजी जाती हैं।

दाँत माता की ब्रह्माणी स्वरुप में मान्यता है। सर्वप्रथम पिण्डियों की पूजा-अर्चना की जाती है तत्पश्चात उनके मुख विग्रह की पूजा की जाती है। माता के भवन के नीचे एक गुफा है। ऐसी मान्यता है कि रात्रि में माता यहां विश्राम करती हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार के बाहर एक चबूतरे पर हनुमानजी, भैरव जी और भोमिया जी विराजमान है तथा पार्श्व में एक शिवालय है। सीढ़ियों वाले मार्ग में भैरव जी और केसरसिंह भोमियाजी स्थापित हैं।

दाँत माता मीणा समाज में सीहरा राजवंश अथवा कुल की कुलदेवी हैं। श्रावण व भाद्रपद मास में यहां पर पदयात्राएं आती हैं। नवरात्रों में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। नवरात्र समेत विभिन्न मौकों पर लोग यहां जात-जडूले और सवामणी के लिए आते हैं। माता के मन्दिर में प्रसाद के साथ श्रद्धा के मुताबिक माता की पोशाक, सोलह श्रृंगार की सामग्री भेंट करने की भी परम्परा है।

लोकआस्था के अनुसार जो भी भक्त सच्चे मन से माँ की आराधना करता है तो माँ उनकी समस्त मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यदि आप माँ के दर्शनों के लिए वहां जाएँ तो लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामगढ़ बाँध व जयपुर के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी जमवाय माता के दर्शन भी कर सकते हैं।

कृपया ध्यान दें : यदि आप भी दाँत माता को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं तो कृपया अपना गोत्र समाज आदि कमेंट बॉक्स में लिखें।

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